डॉ मुकेश 'असीमित'
Dec 12, 2025
Cinema Review
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“दि फैमिली मैन का पहला सीज़न एक साधारण परिवार वाले आदमी और एक टॉप–लेवल गुप्त एजेंट की दोहरी ज़िंदगी का ऐसा चित्र खींचता है, जिससे थ्रिल और भावनाएँ बराबर टकराती हैं। नर्व गैस अटैक की साज़िश, पारिवारिक खिंचाव, सिस्टम की सच्चाइयाँ और श्रीकांत के भीतर का संघर्ष—सब मिलकर एक गहरी, रियलिस्टिक और तीखी कहानी बनाते हैं।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Dec 12, 2025
Cinema Review
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Criminal Justice Season 2 बंद दरवाज़ों के भीतर दबी उन चीखों का सच खोलता है जिन्हें दुनिया अक्सर सम्मान के आवरण में छिपा देती है। यह एक ऐसे रिश्ते की कहानी है जहाँ प्रेम नहीं, नियंत्रण साँस लेता है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Dec 11, 2025
Culture
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सर्दियों की पहली ठंड आते ही खीच की महक घर-आँगन में फैल जाती है। राजस्थान का यह देसी व्यंजन सिर्फ भोजन नहीं, एक सामुदायिक परंपरा, एक सर्दियों का उत्सव और तीन पीढ़ियों से चली आ रही रसोई की विरासत है। तिल के तेल, सोडा बाईकार्ब और हाथ से खाने की रस्म इसमें एक ऐसा स्वाद जोड़ते हैं जिसे केवल खाया नहीं, महसूस किया जाता है।
डॉ मुकेश 'असीमित'
Dec 10, 2025
व्यंग रचनाएं
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“डॉक्टर के चेंबर में आज मरीजों से ज़्यादा भीड़ चंदा-वसूली दल की है। रसीद बुकें पिस्टल की तरह निकली हैं, तारीफ़ के गोले चल रहे हैं, और दिनभर की कमाई ‘सेवा’ के नाम पर समर्पित की जा रही है। ‘चंदा का धंधा’ न मंदा है, न गंदा—बस भारी डॉक्टर पर पड़ता है।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Dec 9, 2025
Cinema Review
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“नोलन की ‘ओपेनहाइमर’ एटॉमिक बम का इतिहास नहीं, उस आदमी की नैतिक ग्लानि और दार्शनिक उथल-पुथल की कहानी है जिसने विज्ञान को देवत्व भी दिया और विनाश भी।”“यह फिल्म बाहरी विस्फोट नहीं दिखाती—यह उस Scientist के भीतर की आग दिखाती है, जिसे दुनिया ने ‘डिस्ट्रॉयर ऑफ वर्ल्ड्स’ कहा और जिसने खुद को जीवनभर कटघरे में खड़ा रखा।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Dec 9, 2025
Poems
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“कचरा —
बन बैठा है मानवीय संबंधों का नया व्याकरण।
वह चाय के प्यालों में बहस बनकर उफनता है,
और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ‘ज्ञान’ में
अवधारणाओं को सड़ा देता है।”
Ram Kumar Joshi
Dec 9, 2025
व्यंग रचनाएं
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“भोजन चाहे जितना लजीज़ हो, पर यदि खाने वाले रौनकशुदा न हों तो सब बेकार—जैसे मुर्दे भोजन करने आ गए हों।”“साहबों, सूची में किसे बुलाना और किसे काटना—यही सबसे बड़ी भूख है। जो जितना बड़ा, उतना ही ज़्यादा भूखा।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Dec 9, 2025
Blogs
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अब बधाई कोई रस्म नहीं—पूरी इंडस्ट्री है। दरवाज़ा बंद, खिड़की के पर्दे गिराकर लोग ‘डोंट मूव’ की मुद्रा में जम जाते हैं, मानो खुशी नहीं, छापा पड़ने वाला हो।”
डॉ मुकेश 'असीमित'
Dec 8, 2025
व्यंग रचनाएं
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"जितना सफेद बाल छुपाते हैं, वो उतनी ही तेजी से अपनी असलियत दिखाता है—जैसे व्यवस्था की कालिख सफ़ेदपोशों पर।"
Excerpt 2:
vinit sharma lamba
Dec 7, 2025
Blogs
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राजस्थान के एक छोटे-से कस्बे में रहने वाली आर्या को बचपन से ही किताबें पढ़ने का शौक था। उसके कमरे की दीवारों पर लगी लकड़ी की अलमारियाँ उन कहानियों से भरी थीं जो उसे दूसरी दुनिया में ले जाती थीं। लेकिन एक किताब ऐसी थी जो उसने कभी पढ़ी नहीं — उसकी दादी की पुरानी […]