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A golden cosmic figure symbolizing ‘Purusha’ floats in deep space, surrounded by nebula clouds and galaxies, with glowing Vedic symbols and radiant consciousness threads connecting to the universe.

पुरुष सूक्त और सृष्टि–चिन्तन : पर्यवेक्षक की चेतना में जन्मा ब्रह्मांड

“पुरुष सूक्त हमें बताता है कि ब्रह्मांड कोई जड़ मशीन नहीं, बल्कि एक ऐसे प्रेक्षक की चेतना में जागता हुआ दृश्य है, जिसके ‘सहस्र सिर’…

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“ब्रह्मांड के आरंभ का प्रतीक—एक चमकता हुआ स्वर्ण-अंडाकार प्रकाश-गोला, जिसके चारों ओर घूमती आकाशगंगाएँ, धुंधले नेब्यूला बादल और ऊर्जा की लहरें बह रही हैं। केंद्र में मौजूद ‘हिरण्यगर्भ’ एक धड़कते हुए सूर्य-बीज जैसा दिख रहा है, जिससे प्रकाश की पतली धाराएँ ब्रह्मांड में फैल रही हैं।”

हिरण्यगर्भ का रहस्य : सृष्टि से पहले के अंधकार में चमकती एक स्वर्ण-बूँद

“जब कुछ भी नहीं था—न आकाश, न पृथ्वी—तब भी एक चमकता बीज था, ‘हिरण्यगर्भ’। यही वह आदिम स्वर्ण-कोष है, जहाँ ब्रह्मांड समय और स्थान बनने…

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“पुराने जमाने के सिनेमा हॉल का भीड़भाड़ वाला दृश्य—आगे की सीटों पर बैठे बच्चे गद्दी की रुई निकालते हुए, बीच में घूमते चाय-कुल्फी-पापड़ वाले विक्रेता, खुले आँगन वाले सामूहिक वॉशरूम का अव्यवस्थित दृश्य, दीवारों पर तंबाकू की पिचकारी से बने एब्सट्रैक्ट निशान, और बाहर चमकती धूप में आँखें मिचमिचाते दर्शक—एक व्यंग्यात्मक, नॉस्टेल्जिक भारतीय सिनेमा संस्कृति को दर्शाते हुए।”

भारतीय सिनेमा जगत — जाने कहाँ गए वो दिन

“सिनेमाघर कभी मनोरंजन का देवालय था, जहाँ चाय-कुल्फी की आवाजें, तंबाकू की पिचकारियाँ, आगे की सीटों की रुई निकालने की परंपरा और इंटरवल का महाभारत—सब…

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“धर्मेंद्र का एक कलात्मक कार्टून कैरिकेचर—चौड़ी मुस्कान, देहाती ठाट वाली पगड़ी, कंधे पर हल्का-सा शॉल, पीछे सुनहरी फिल्म-रील की आकृति और सामने की ओर झांकती उनकी विशिष्ट चमकती आंखें जो गांव की मिट्टी और स्टारडम की चमक दोनों साथ लिये हुए हैं।”

धर्मेंद्र: वह आख़िरी देहाती शहंशाह, जो परदे पर नहीं—दिलों में बसता था

“धर्मेंद्र सिर्फ परदे के हीरो नहीं थे—वे देहात की माटी, रोमांस की रूह और इंसानियत की नरम धूप थे। खेतों की खुशबू, फिल्मों की चमक…

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“रेलवे टिकट विंडो की लंबी लाइन में खड़ा एक मध्यमवय व्यक्ति, मोबाइल स्क्रीन में डूबा हुआ, चारों ओर चॉकलेट-केक-सेल के विज्ञापनों की नोटिफिकेशन बौछार, पृष्ठभूमि में धीमा चलता गर्म पंखा, चिड़चिड़े यात्री, और एक जर्दा-चबाते दलाल की कोहनी से परेशान—सब मिलकर भारतीय लाइन-तंत्र की व्यंग्यात्मक अराजकता दिखाते हुए।”

मोबाइल और लाइन का लोकतंत्र : एक व्यंग्यात्मक संस्मरण

“इस देश में लाइनें कभी खत्म नहीं होतीं, इसलिए आदमी ने मोबाइल को जीवन-संगिनी बना लिया है। टिकट विंडो की कतार हो या दिवाली की…

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स्वर्णिम रोशनी में नहाया हुआ भारतीय संसद भवन, सामने खुले पन्नों वाला भारतीय संविधान, ऊपर हल्का-सा तिरंगा आकाश में लहराता हुआ, और नीचे धुंधली-सी सिल्हूट में खड़े आम लोग जो “हम भारत के लोग” का प्रतीक बनकर दिख रहे हैं।

संविधान दिवस: शब्दों से अधिक, एक जीवित प्रतिज्ञा

26 नवंबर सिर्फ कैलेंडर की तारीख़ नहीं, भारत की लोकतांत्रिक आत्मा की धड़कन है। संविधान दिवस हमें याद दिलाता है कि यह दस्तावेज़ क़ानूनों की…

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an abstract, coloured line-caricature portrait of Dharmendra as an iconic Bollywood He-Man: simplified continuous line-art with expressive contours; include symbolic elements—Veeru standing on a water tank, a faint outline of a wheat field with wind, a gentle heart symbol representing romance, and a subtle film reel curve in the background. The face should be minimal yet recognizable through strong jawline, soft smile, and nostalgic eyes. Use warm pastel colours—amber, soft brown, retro orange. Overall tone should evoke memory, warmth, and cinematic nostalgia.”

धरम पाजी-फ़िर नहीं आएँगे ऐसे “ही-मैन

धर्मेंद्र सिर्फ़ परदे के हीरो नहीं थे—वे देहाती मासूमियत, पंजाबी दिलेरी और रोमांटिक चमक का चलता-फिरता रूपक थे। वीरू की टंकी, खेतों की पगडंडियाँ, शोले…

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an abstract, coloured line-caricature illustration showing the evolution of warfare in a single flowing timeline: on the left, a prehistoric king holding a blunt stone mace (Narmar-style silhouette); in the center, shifting forms of weapons—bronze spear, iron sword, cannon, tank; on the right, modern drones, satellites, and a hyper-sonic missile streaking across the sky. The whole image should be minimalistic, continuous line-art style, pastel colour accents, symbolic rather than realistic, with a sense of movement and transformation across eras.”

युद्ध का नित नया बदलता चेहरा

युद्ध का इतिहास दरअसल मनुष्य नहीं, तकनीक की कहानी है। नरमार की भोथरी गदा से लेकर ड्रोन, AI, सैटेलाइट और हाइपरसोनिक मिसाइलों तक—हर दौर में…

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एक व्यंग्यात्मक भारतीय कार्टून दृश्य जिसमें एक लेखक मेज पर बैठा लिख रहा है और उसके कंधे पर दो-तीन लोग चोरी-चोरी बंदूक जैसी चीज़ रखकर उससे ‘क्रांति’ करवाने की कोशिश कर रहे हैं। पीछे टीवी, सड़क, टूटे तार और मोहल्ले का अराजक माहौल दिख रहा है। बाकी लोग दूर बैठकर चाय में बिस्कुट डुबोते हुए तमाशा देख रहे हैं।”

आप तो बस लिखते रहिए..

“आप लिखते हैं तो लोग आपको क्रांतिकारी समझ लेते हैं—खुद रिमोट बदलने से डरते हैं पर क्रांति की बंदूक आपके कंधे पर रखकर चलाना चाहते…

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