चंदा का धंधा — न मंदा, न गंदा

डॉ मुकेश 'असीमित' Dec 10, 2025 व्यंग रचनाएं 0

“डॉक्टर के चेंबर में आज मरीजों से ज़्यादा भीड़ चंदा-वसूली दल की है। रसीद बुकें पिस्टल की तरह निकली हैं, तारीफ़ के गोले चल रहे हैं, और दिनभर की कमाई ‘सेवा’ के नाम पर समर्पित की जा रही है। ‘चंदा का धंधा’ न मंदा है, न गंदा—बस भारी डॉक्टर पर पड़ता है।”

ओपेनहाइमर : हीरो, विलन और बीच में फँसा एक बेचैन ज़मीर

डॉ मुकेश 'असीमित' Dec 9, 2025 Cinema Review 0

“नोलन की ‘ओपेनहाइमर’ एटॉमिक बम का इतिहास नहीं, उस आदमी की नैतिक ग्लानि और दार्शनिक उथल-पुथल की कहानी है जिसने विज्ञान को देवत्व भी दिया और विनाश भी।”“यह फिल्म बाहरी विस्फोट नहीं दिखाती—यह उस Scientist के भीतर की आग दिखाती है, जिसे दुनिया ने ‘डिस्ट्रॉयर ऑफ वर्ल्ड्स’ कहा और जिसने खुद को जीवनभर कटघरे में खड़ा रखा।”

कचरा कचरा ही रहेगा-व्यंग्य कविता

डॉ मुकेश 'असीमित' Dec 9, 2025 Poems 0

“कचरा — बन बैठा है मानवीय संबंधों का नया व्याकरण। वह चाय के प्यालों में बहस बनकर उफनता है, और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ‘ज्ञान’ में अवधारणाओं को सड़ा देता है।”

गरीमा बचा ली गयी-

Ram Kumar Joshi Dec 9, 2025 व्यंग रचनाएं 1

“भोजन चाहे जितना लजीज़ हो, पर यदि खाने वाले रौनकशुदा न हों तो सब बेकार—जैसे मुर्दे भोजन करने आ गए हों।”“साहबों, सूची में किसे बुलाना और किसे काटना—यही सबसे बड़ी भूख है। जो जितना बड़ा, उतना ही ज़्यादा भूखा।”

बधाई हो बधाई-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Dec 9, 2025 Blogs 0

अब बधाई कोई रस्म नहीं—पूरी इंडस्ट्री है। दरवाज़ा बंद, खिड़की के पर्दे गिराकर लोग ‘डोंट मूव’ की मुद्रा में जम जाते हैं, मानो खुशी नहीं, छापा पड़ने वाला हो।”

बधाई हो, शर्मा जी अंकल बन गए!

डॉ मुकेश 'असीमित' Dec 8, 2025 व्यंग रचनाएं 0

"जितना सफेद बाल छुपाते हैं, वो उतनी ही तेजी से अपनी असलियत दिखाता है—जैसे व्यवस्था की कालिख सफ़ेदपोशों पर।" Excerpt 2:

आख़िरी पन्ना

vinit sharma lamba Dec 7, 2025 Blogs 0

राजस्थान के एक छोटे-से कस्बे में रहने वाली आर्या को बचपन से ही किताबें पढ़ने का शौक था। उसके कमरे की दीवारों पर लगी लकड़ी की अलमारियाँ उन कहानियों से भरी थीं जो उसे दूसरी दुनिया में ले जाती थीं। लेकिन एक किताब ऐसी थी जो उसने कभी पढ़ी नहीं — उसकी दादी की पुरानी […]

“हम आपका लेख छापेंगे… किसी दिन!”

Wasim Alam Dec 7, 2025 Blogs 0

लेखक लेख भेज देता है, पर जवाब का इंतज़ार ही उसका असली रोमांच बन जाता है। ‘यथासमय’ जैसे रहस्यमय शब्दों, संपादकों की कवि-सुलभ भाषा और अनंत प्रतीक्षा के बीच लेखक खुद ही व्यंग्य का विषय बन जाता है—पेपर पर नहीं, अपने मन की डायरी में।

नेता जी का इंटरव्यू – हम झूटन के बाप

डॉ मुकेश 'असीमित' Dec 7, 2025 व्यंग रचनाएं 0

नेता जी का यह इंटरव्यू लोकतंत्र के नाम पर एक शानदार हास्य-नाट्य है। हर सवाल का जवाब वे इतनी आत्मा-तुष्ट गंभीरता से देते हैं कि सच्चाई उनसे सावधान दूरी बनाकर खड़ी रहती है। बेहतरीन व्यंग्य, तीखे संवाद और कैमरे के सामने झूठ की अग्निपरीक्षा—सब कुछ यहाँ मौजूद है।

महँगी फ्लाइट, मनमाना किराया और एयरपोर्ट पर बस अड्डे जैसे हालात

डॉ मुकेश 'असीमित' Dec 6, 2025 समसामयिकी 0

हवाई जहाज़ के टिकट बुक करते समय हम लोग बड़े भोले होते हैं। वेबसाइट पर लिखा होता है – “ऑन टाइम इज़ अ वन्डरफुल थिंग” और हम मान लेते हैं कि यह कोई वादा नहीं, वेद मंत्र है। क्रेडिट कार्ड से पैसा कटते ही हमें लगता है कि हमने अपने भाग्य पर भी एक “कन्फर्म […]