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Category: Blogs

“Rigveda’s Nasadiya Sukta — mystical depiction of universe emerging from cosmic darkness with a meditating sage symbolizing creation and consciousness.”

नासदीय सूक्त की दार्शनिक व्याख्या

ऋग्वेद का नासदीय सूक्त ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर विश्व के सबसे प्राचीन दार्शनिक चिंतन में से एक है। यह कहता है कि जब न अस्तित्व…

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In the infinite cosmic darkness, a glowing seed of light rests in shadowed hands — symbolizing the birth of dawn within night; the Divine Feminine form subtly emerging from the void, bathing half the Earth in golden radiance.

सावित्री: कथा से परे, चेतना का महागान

श्री अरविन्द का ‘सावित्री’ महज़ किसी पुराणकथा का काव्यात्मक पुनर्सृजन नहीं है; यह मनुष्य-चेतना की सीमाओं को लाँघने वाली आध्यात्मिक यात्रा का मंत्रमय महाकाव्य है—ऐसा…

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स्वामी विवेकानंद ध्यानमग्न मुद्रा में खड़े हैं — एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में उठी हुई उँगली जैसे वेदान्त का उपदेश दे रहे हों। पृष्ठभूमि में उगता सूर्य भारतीय समाज, शिक्षा, और आधुनिक जीवन में “प्रायोगिक वेदान्त” के पुनर्जागरण का प्रतीक बनकर चमक रहा है। दृश्य में युवा, शिक्षक, और किसान जैसे पात्र भी हैं जो कर्म, सेवा, और आत्मविश्वास से प्रेरित दिखाई दे रहे हैं।

विवेकानंद और आधुनिक प्रायोगिक वेदान्त की प्रासंगिकता

स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त को ग्रंथों से निकालकर जीवन के प्रत्येक कर्म में उतारा — उन्होंने कहा, “यदि वेदान्त सत्य है, तो उसे प्रयोग में…

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“लाइन कैरिकेचर जिसमें एक मोटा-सा रिटायर्ड सज्जन रंगीन ट्रैक सूट पहनकर जिम में भारी डम्बल उठाने की कोशिश कर रहे हैं, पास में उनकी पत्नी बाँहें बाँधे देख रही हैं, जिम में बाकी नौजवान हँसते हुए एक्सरसाइज़ कर रहे हैं — सेवानिवृत्ति के बाद ‘यौवन पुनर्जागरण’ पर व्यंग्यात्मक दृश्य।”

गालों की लाली- हो गई गाली

“कभी सूर्योदय से पहले नहीं उठने वाले अब मुंह-अंधेरे ‘हेलो हाय’ करते जॉगिंग पर हैं। ट्रैक सूट, डियोडरेंट और महिला ट्रेनर ने जैसे रिटायरमेंट में…

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“कार्टून चित्र जिसमें एक युवा इमोजी और संक्षिप्त चैट शब्दों (‘LOL’, ‘BRB’, ‘TTYL’) से घिरा मोबाइल चला रहा है, और पास ही एक बुज़ुर्ग व्यक्ति हैरान होकर उस चैट को देख रहा है — दो पीढ़ियों के बीच भाषा की खाई का व्यंग्यात्मक चित्रण।”

जीनीयस जनरेशन की ‘लोल’ भाषा

“जेन ज़ी की ‘लोल भाषा’ ने व्याकरण के सिंहासन को हिला दिया है। अब भाषा नहीं, भावना प्राथमिक है। अक्षरों का वजन घट रहा है,…

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एक कार्टून चित्र जिसमें एक उल्लू सोने की परात थामे अमीरों के महलों की LED रोशनी में उड़ता हुआ दिख रहा है, नीचे एक आम आदमी खाली वॉलेट लिए दीये के पास बैठा है। दृश्य में दिवाली की रोशनी, पर व्यंग्य का अंधकार झलक रहा है।

जा तू धन को तरसे — एक व्यंग्यात्मक धनतेरस कथा

धनतेरस के शुभ अवसर पर जब जेबें खाली हैं और बाज़ार भरा पड़ा है, तब लेखक हंसी और व्यंग्य से पूछता है — “धनतेरस किसके…

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सूर्य की प्रथम किरणों में शाखा मैदान में खड़े स्वयंसेवक, जिनके पीछे खुली पुस्तकों, पन्नों और डिजिटल प्रतीकों (ई-पुस्तकें, स्क्रीन, पर्चे) का समावेश दिखता है—जो संघ-साहित्य की परंपरा से लेकर आधुनिक संवाद तक की निरंतरता को दर्शा रहा है।

संघ-साहित्य की विरासत, विचार की निरंतरता और आधुनिक भारत में उसकी वैचारिक प्रासंगिकता

संघ-साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि आत्मसंयम और सेवा की जीवंत साधना है। यह परंपरा के मौन और आधुनिकता के संवाद के बीच बहने…

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एक रेखाचित्र जिसमें आरएसएस की शाखा में स्वयंसेवक सूर्य की रोशनी में प्रार्थना की मुद्रा में खड़े हैं; पीछे खुले मैदान में किताबों, पम्फलेट्स और पत्रिकाओं के प्रतीक हवा में उड़ते हुए दिख रहे हैं, मानो विचारों का प्रवाह समय में बह रहा हो।

संघ-साहित्य: शब्दों में अनुशासन, विचारों में संवाद

संघ-साहित्य केवल प्रचार का उपकरण नहीं, बल्कि विचार की निरंतरता का प्रमाण है। यह शाखाओं से निकलकर पुस्तकों, पत्रिकाओं और डिजिटल संवादों में प्रवाहित होती…

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कार्टून चित्र में एक व्यंग्यात्मक दृश्य: मंच पर नेता लोग बयानों के बम फोड़ रहे हैं, न्यायाधीश आत्मावलोकन का दीप जलाए बैठे हैं, और नागरिक कानों में रुई डालकर प्रदूषण से बच रहे हैं। ऊपर पटाखों की जगह “लोकतंत्र ज़िंदाबाद” और “सेवा का उजाला” लिखे बैनर लहराते हैं।

शुभ लाभ-फटूकड़ियां – 2025

दीपावली की यह व्यंग्यात्मक ‘फटूकड़ियां 2025’ केवल रोशनी का उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र, राजनीति, न्याय और समाज की मानसिकता पर तीखा हास्य है। लेखक…

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An abstract minimalist illustration showing the contrast between Indian literature’s soulful depth and the distant world of Western literary recognition, separated by the invisible wall of translation and cultural dialogue.

नोबेल, भारतीय लेखक और वैश्विक संवाद की सीमाएँ

“भारतीय साहित्य में गहराई की कमी नहीं, पर संवाद और अनुवाद की दीवार उसे वैश्विक कानों तक पहुँचने नहीं देती। नोबेल से बड़ा है वह…

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