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Category: Culture

ich, detailed, satirical-yet-respectful caricature-style illustration depicting India’s tribal ecological wisdom (TEK). Show a tribal elder observing the sky, reading signs from birds, insects and clouds, while children learn by imitating him. Surround them with sacred groves, terraced fields, medicinal plants, bamboo water channels, and traditional seed-storage pots. Add symbolic spiritual elements: a glowing tree as deity, a river-goddess flowing gently, and mountains shaped like ancestral faces. Visual style: warm earthy tones, cultural authenticity, mystical ecology.”

जनजातीय समुदायों का पारम्परिक पर्यावरण विज्ञान : प्रकृति के साथ सह-जीवन की विराट गाथा

भारत के जनजातीय समुदायों का पारम्परिक पर्यावरण विज्ञान प्रकृति के साथ उनके जीवित, गहरे और सर्जनात्मक संबंध को व्यक्त करता है। मौसम, जंगल, जल, बीज…

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एक ग्रामीण भारतीय आँगन में गोपाष्टमी के दिन का दृश्य — हरे ताजे गोबर से लीपा गया चौक, बीच में गोमाता पर फूल और दीप जल रहे हैं। पास में किसान अपने बैलों को सजा रहा है, बच्चे गाय की सेवा में लगे हैं और सूरज की स्वर्णिम किरणें पूरे वातावरण को पवित्र बना रही हैं।

गोपाष्टमी : गो, गृह और गंगा की तरह पवित्र — हमारी सभ्यता का अदृश्य आधार

गोपाष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि हमारी सभ्यता की जड़ों का उत्सव है — वह दिन जब हम यह स्मरण करते हैं कि हमारी…

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नदी के घाट पर सूर्योदय के समय महिलाएँ साड़ी पहने जल में खड़ी होकर अर्घ्य देती हुईं, बांस की सूप में ठेकुआ, केले और गन्ना सजे हुए, पीछे दीयों की पंक्तियाँ और सुनहरी रोशनी में नहाया हुआ वातावरण।

छट पर्व –जहाँ अस्त हुए सूरज को भी पूजा जाता है

छठ पर्व अब बिहार की सीमाओं से निकलकर विश्वभर में भारतीय आस्था का प्रतीक बन चुका है। यह केवल सूर्य उपासना नहीं, बल्कि मनुष्य और…

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“बूंदी के बड़ौदिया गाँव में घास भैरू महोत्सव के दौरान कांच पर खड़ा ट्रैक्टर, सजे हुए बैल और भीड़ से घिरी बावड़ी का दृश्य।”

घास भैरू महोत्सव — लोक आस्था का रहस्यमय उत्सव

भाईदूज के दिन बूंदी के गांव जादुई नगरी में बदल जाते हैं — जहां पत्थर तैरते हैं, ट्रैक्टर कांच पर खड़े होते हैं, और देवता…

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“एक भावात्मक चित्र जिसमें भारत के नक्शे के भीतर दीप, तुलसी-विवाह, गोवर्धन की गोबर-आकृति, झूले, अलाव और शंख के अमूर्त प्रतीक तैरते हैं—बीच में ‘देव उठान’ का चंद्राकार चिह्न, जो स्मृति और उत्सव के पुनर्जागरण का संकेत देता है।”

उत्सवों का देश: स्मृति से पुनर्जागरण तक

“कभी ‘यंतु, नजिक, चियां-चुक’—स्वर्ग के केंद्र—कहलाने वाली धरती आज अपने ही लोक-उत्सव भूल रही है। देव उठान एकादशी हमें याद दिलाती है कि रोशनी बिजली…

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“डिजिटल युग के भाईदूज का प्रतीकात्मक चित्र — बहिन और भाई ऑनलाइन रूप में, वर्चुअल तिलक करते हुए, बीच में रोशनी की वाई-फाई डोर।”

भाईदूज — तिलक की रेखा में स्नेह, उत्तरदायित्व और रोशनी

“भाईदूज सिर्फ़ माथे का तिलक नहीं, रिश्ते की आत्मा में बसे भरोसे का पुनर्स्मरण है।” “जब बहन तिलक लगाती है, वह केवल दीर्घायु नहीं मांगती—वह…

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मंदिर के आँगन में गोवर्धन पूजा के दिन अन्नकूट प्रसाद का आयोजन। लोग पत्तलों में बैठकर बाजरे की कूड़ी और कढ़ी का प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। चारों ओर दीपक जल रहे हैं, महिलाएँ सजावट में व्यस्त हैं, और पंडित जी गोवर्धन गिरिराज को भोग लगा रहे हैं। वातावरण में भक्ति और सादगी का सामूहिक सौंदर्य झलकता है।

अन्नकूट महाप्रसाद — स्वाद, परंपरा और साझेपन की कथा

दीवाली और गोवर्धन के बीच का दिन केवल त्योहार का अंतराल नहीं, बल्कि साझेपन की परंपरा का उत्सव है। पहले अन्नकूट में हर घर का…

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एक रेखाचित्र जिसमें आरएसएस की शाखा में स्वयंसेवक सूर्य की रोशनी में प्रार्थना की मुद्रा में खड़े हैं; पीछे खुले मैदान में किताबों, पम्फलेट्स और पत्रिकाओं के प्रतीक हवा में उड़ते हुए दिख रहे हैं, मानो विचारों का प्रवाह समय में बह रहा हो।

संघ-साहित्य: शब्दों में अनुशासन, विचारों में संवाद

संघ-साहित्य केवल प्रचार का उपकरण नहीं, बल्कि विचार की निरंतरता का प्रमाण है। यह शाखाओं से निकलकर पुस्तकों, पत्रिकाओं और डिजिटल संवादों में प्रवाहित होती…

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Surrealistic abstract illustration of Samudra Manthan inside a human figure, showing poison on one side and divine treasures like moon, gems, and nectar pot on the other, symbolizing inner struggle and awakening.

भीतर का समुद्र-मंथन: विष से अमृत तक की आत्मिक यात्रा

समुद्र-मंथन की कथा हमें बताती है कि जीवन की साधना सबसे पहले विष का सामना है—आलोचना, उपहास और असुविधा का। लेकिन यही विष जब धारण…

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तारों भरे आकाश में OM की तरंगें फैलती हुईं; सात चमकते सुर नक्षत्रों की तरह तैर रहे हैं; एक ध्यानमग्न उद्गाता यज्ञाग्नि के पास गा रहा है; नदी संगीत की पाँच रेखाओं में बदलती है; मंदिर की घंटियाँ तरंगाकार प्रकाश बनकर वातावरण में घुलती हैं—समग्र दृश्य में रहस्यमय, सौम्य, और आध्यात्मिक आभा।

सामवेद—नाद ब्रह्म, ध्वनि से समाधि तक

सामवेद हमें सिखाता है कि शब्द तभी पूर्ण होते हैं जब वे सुर और लय में ढलकर कंपन बनें—वही कंपन मन को विन्यस्त करता है,…

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