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Category: People

Vintage-style monochrome portrait of Begum Akhtar seated gracefully in a traditional Lucknowi saree, eyes half-closed as if lost in a ghazal, soft stage lighting highlighting her expressive face, capturing the melancholic depth and royal elegance of Mallika-e-Ghazal.

बेग़म अख़्तर : सुरों की मलिका

बेग़म अख़्तर—एक नाम जो सिर्फ़ संगीत नहीं, दर्द, रूह और नफ़ासत का दूसरा नाम है। फैज़ाबाद की एक हवेली से शुरू होकर लखनऊ की महफ़िलों…

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A stylized artistic portrait of Satyajit Ray, tall and thoughtful, holding a camera, with soft vintage lighting, Kolkata street silhouettes, and cinematic frames floating around him.

सत्यजीत रे: वह आदमी जिसने सिनेमा की आँखों में आत्मा भर दी

सत्यजीत रे केवल निर्देशक नहीं थे—एक दर्शन, एक दृष्टि, एक शांत चमत्कार। उनकी फिल्मों ने सिनेमा को कहानी से मनुष्य बना दिया और दुनिया को…

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“धर्मेंद्र का एक कलात्मक कार्टून कैरिकेचर—चौड़ी मुस्कान, देहाती ठाट वाली पगड़ी, कंधे पर हल्का-सा शॉल, पीछे सुनहरी फिल्म-रील की आकृति और सामने की ओर झांकती उनकी विशिष्ट चमकती आंखें जो गांव की मिट्टी और स्टारडम की चमक दोनों साथ लिये हुए हैं।”

धर्मेंद्र: वह आख़िरी देहाती शहंशाह, जो परदे पर नहीं—दिलों में बसता था

“धर्मेंद्र सिर्फ परदे के हीरो नहीं थे—वे देहात की माटी, रोमांस की रूह और इंसानियत की नरम धूप थे। खेतों की खुशबू, फिल्मों की चमक…

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an abstract, coloured line-caricature portrait of Dharmendra as an iconic Bollywood He-Man: simplified continuous line-art with expressive contours; include symbolic elements—Veeru standing on a water tank, a faint outline of a wheat field with wind, a gentle heart symbol representing romance, and a subtle film reel curve in the background. The face should be minimal yet recognizable through strong jawline, soft smile, and nostalgic eyes. Use warm pastel colours—amber, soft brown, retro orange. Overall tone should evoke memory, warmth, and cinematic nostalgia.”

धरम पाजी-फ़िर नहीं आएँगे ऐसे “ही-मैन

धर्मेंद्र सिर्फ़ परदे के हीरो नहीं थे—वे देहाती मासूमियत, पंजाबी दिलेरी और रोमांटिक चमक का चलता-फिरता रूपक थे। वीरू की टंकी, खेतों की पगडंडियाँ, शोले…

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स्वामी विवेकानंद ध्यानमग्न मुद्रा में खड़े हैं — एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में उठी हुई उँगली जैसे वेदान्त का उपदेश दे रहे हों। पृष्ठभूमि में उगता सूर्य भारतीय समाज, शिक्षा, और आधुनिक जीवन में “प्रायोगिक वेदान्त” के पुनर्जागरण का प्रतीक बनकर चमक रहा है। दृश्य में युवा, शिक्षक, और किसान जैसे पात्र भी हैं जो कर्म, सेवा, और आत्मविश्वास से प्रेरित दिखाई दे रहे हैं।

विवेकानंद और आधुनिक प्रायोगिक वेदान्त की प्रासंगिकता

स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त को ग्रंथों से निकालकर जीवन के प्रत्येक कर्म में उतारा — उन्होंने कहा, “यदि वेदान्त सत्य है, तो उसे प्रयोग में…

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काले सूट में अमिताभ बच्चन का हाफ-प्रोफाइल पोर्ट्रेट; बैकग्राउंड में फिल्म रील, ‘दीवार’ और ‘शोले’ के प्रतीक, एक तरफ जया और रेखा की सिल्हूट, दूसरी तरफ संसद और टीवी स्टूडियो की झलक।

अमिताभ: स्टारडम से सरोकार तक — एंग्री यंग मैन की जर्नी, रिश्ते और विवाद

चार पीढ़ियों को मोहित करने वाली आवाज़ से लेकर राजनीति, रिश्तों और 1984 के आरोपों तक—अमिताभ बच्चन की जर्नी जहां स्टारडम चमकता है और सरोकार…

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Portrait of Hungarian author László Krasznahorkai holding a book, deep in thought, surrounded by soft warm light and blurred bookshelves in the background, symbolizing his dense and meditative writing style.

ला:स्लो क्रॉस्नॉहोरकै — शब्दों के प्रवाह में बहता अँधकार : साहित्य का नोबेल पुरस्कार 2025

László Krasznahorkai, the Hungarian master of long, meditative sentences and existential depth, has been awarded the 2025 Nobel Prize in Literature. His works—filled with flowing…

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A humorous caricature of a father holding his daughter in his lap, giving her a book. The daughter wears a crown like a princess. Behind them, a large calendar shows “Bitiya Diwas” while the father wonders, “Do we really need a day for this?” Satirical abstract line art.

बिटिया दिवस – कैलेंडर में साल में एक दिन दर्ज, दिल में स्थायी रूप से

बेटी दिवस पर यह व्यंग्य पूछता है—क्या बेटी के लिए कोई अलग डे बनाना ज़रूरी है? वो तो पिता के जीवन की सदा बहार वसंत…

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डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का सौम्य कार्टून-चित्र, हाथ में दीपक लिए, जिसकी लौ से कई छोटे दीये (छात्र) प्रज्वलित हो रहे हैं; पृष्ठभूमि में किताब, चॉकबोर्ड और डिजिटल स्क्रीन के आइकन—परंपरा और आधुनिक शिक्षा का सेतु दिखाते हुए।

शिक्षक दिवस: राधाकृष्णन की रोशनी में आज का अँधेरा पढ़ना

शिक्षक दिवस केवल तारीख नहीं, विचार की परीक्षा है। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमें सिखाते हैं कि शिक्षा डिग्री नहीं, चरित्र-निर्माण है; ज्ञान तभी शक्ति है…

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