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स्वामी विवेकानंद ध्यानमग्न मुद्रा में खड़े हैं — एक हाथ में पुस्तक, दूसरे में उठी हुई उँगली जैसे वेदान्त का उपदेश दे रहे हों। पृष्ठभूमि में उगता सूर्य भारतीय समाज, शिक्षा, और आधुनिक जीवन में “प्रायोगिक वेदान्त” के पुनर्जागरण का प्रतीक बनकर चमक रहा है। दृश्य में युवा, शिक्षक, और किसान जैसे पात्र भी हैं जो कर्म, सेवा, और आत्मविश्वास से प्रेरित दिखाई दे रहे हैं।

विवेकानंद और आधुनिक प्रायोगिक वेदान्त की प्रासंगिकता

स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त को ग्रंथों से निकालकर जीवन के प्रत्येक कर्म में उतारा — उन्होंने कहा, “यदि वेदान्त सत्य है, तो उसे प्रयोग में…

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“लाइन कैरिकेचर जिसमें एक मोटा-सा रिटायर्ड सज्जन रंगीन ट्रैक सूट पहनकर जिम में भारी डम्बल उठाने की कोशिश कर रहे हैं, पास में उनकी पत्नी बाँहें बाँधे देख रही हैं, जिम में बाकी नौजवान हँसते हुए एक्सरसाइज़ कर रहे हैं — सेवानिवृत्ति के बाद ‘यौवन पुनर्जागरण’ पर व्यंग्यात्मक दृश्य।”

गालों की लाली- हो गई गाली

“कभी सूर्योदय से पहले नहीं उठने वाले अब मुंह-अंधेरे ‘हेलो हाय’ करते जॉगिंग पर हैं। ट्रैक सूट, डियोडरेंट और महिला ट्रेनर ने जैसे रिटायरमेंट में…

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“गहन अमावस्या के आकाश में भारत का मानचित्र दीपों से आलोकित है — दीयों की ज्योति से लक्ष्मी, महावीर, शिव और राम के प्रतीक उभर रहे हैं, एक ध्यानमग्न मानव आकृति दीप के भीतर बैठी आत्मज्योति का प्रतीक है — अंधकार से प्रकाश की ओर मानव चेतना की यात्रा का सांकेतिक चित्र।”

दीपावली — अंधकार के गर्भ से ज्योति का जन्म

“दीपावली अमावस्या की निस्तब्धता से जन्मी वह ज्योति है जो केवल घर नहीं, हृदय की गुफाओं को आलोकित करती है। यह बाह्य उत्सव से अधिक…

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“अमावस्या के अंधकार में रखा एक छोटा दीप, जिसकी लौ से मानव आकृति का आलोक उभर रहा है — अंधकार से प्रकाश की ओर आत्म-यात्रा का प्रतीकात्मक चित्र।”

नरक चतुर्दशी — रूप, ज्योति और आत्म-शुद्धि की यात्रा

“नरक चतुर्दशी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भीतर के नरक से मुक्ति का पर्व है। यह मन की अंधकारमय प्रवृत्तियों से प्रकाशमय चेतना की ओर…

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“कार्टून चित्र जिसमें एक युवा इमोजी और संक्षिप्त चैट शब्दों (‘LOL’, ‘BRB’, ‘TTYL’) से घिरा मोबाइल चला रहा है, और पास ही एक बुज़ुर्ग व्यक्ति हैरान होकर उस चैट को देख रहा है — दो पीढ़ियों के बीच भाषा की खाई का व्यंग्यात्मक चित्रण।”

जीनीयस जनरेशन की ‘लोल’ भाषा

“जेन ज़ी की ‘लोल भाषा’ ने व्याकरण के सिंहासन को हिला दिया है। अब भाषा नहीं, भावना प्राथमिक है। अक्षरों का वजन घट रहा है,…

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एक कार्टून चित्र जिसमें एक उल्लू सोने की परात थामे अमीरों के महलों की LED रोशनी में उड़ता हुआ दिख रहा है, नीचे एक आम आदमी खाली वॉलेट लिए दीये के पास बैठा है। दृश्य में दिवाली की रोशनी, पर व्यंग्य का अंधकार झलक रहा है।

जा तू धन को तरसे — एक व्यंग्यात्मक धनतेरस कथा

धनतेरस के शुभ अवसर पर जब जेबें खाली हैं और बाज़ार भरा पड़ा है, तब लेखक हंसी और व्यंग्य से पूछता है — “धनतेरस किसके…

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“धनतेरस नहीं, आरोग्य दीपोत्सव — धन्वंतरि के अमृत का असली अर्थ”

धनतेरस नहीं, आरोग्य दीपोत्सव — धन्वंतरि के अमृत का असली अर्थ

धनतेरस को केवल खरीददारी का पर्व नहीं, बल्कि आरोग्य दीपोत्सव के रूप में मनाने का संदेश देता यह आलेख बताता है कि धन्वंतरि देव स्वास्थ्य,…

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सूर्य की प्रथम किरणों में शाखा मैदान में खड़े स्वयंसेवक, जिनके पीछे खुली पुस्तकों, पन्नों और डिजिटल प्रतीकों (ई-पुस्तकें, स्क्रीन, पर्चे) का समावेश दिखता है—जो संघ-साहित्य की परंपरा से लेकर आधुनिक संवाद तक की निरंतरता को दर्शा रहा है।

संघ-साहित्य की विरासत, विचार की निरंतरता और आधुनिक भारत में उसकी वैचारिक प्रासंगिकता

संघ-साहित्य केवल शब्दों का संग्रह नहीं, बल्कि आत्मसंयम और सेवा की जीवंत साधना है। यह परंपरा के मौन और आधुनिकता के संवाद के बीच बहने…

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एक रेखाचित्र जिसमें आरएसएस की शाखा में स्वयंसेवक सूर्य की रोशनी में प्रार्थना की मुद्रा में खड़े हैं; पीछे खुले मैदान में किताबों, पम्फलेट्स और पत्रिकाओं के प्रतीक हवा में उड़ते हुए दिख रहे हैं, मानो विचारों का प्रवाह समय में बह रहा हो।

संघ-साहित्य: शब्दों में अनुशासन, विचारों में संवाद

संघ-साहित्य केवल प्रचार का उपकरण नहीं, बल्कि विचार की निरंतरता का प्रमाण है। यह शाखाओं से निकलकर पुस्तकों, पत्रिकाओं और डिजिटल संवादों में प्रवाहित होती…

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