रावण का दशहरा
दशहरे की शाम। देहात के थाने में वही रोज का काम। कर्तव्य के मारे उदास सिपाही और ड्युटी पे दारोगा पीकर जाम, पडे निष्काम। वहां से गुजरते हुए चौकीदार ने सलाम ठोका। तो अभी-अभी थाने में आए नशे में धुत्त दारोगा ने प्यार से रोका। और घुडकते हुए पूछा —कहो गांव में क्या चल रहा है? चौकीदार ने हडबडाते हुए कहा —हुजूर रावण जल रहा है !
रावण जल रहा है! तो उसे टोको। आत्महत्या का अपराध करने से रोको!— दारोगा का हुकम सुन चौकीदार का माथा ठनका। वो जान गया कि दारोगा तो सनका। समझाते हुए बोला —हुजूर, वो खुद नहीं जल रहा। गांव वाले मिलकर जला रहे हैं! दारोगा ने गुलाबी आंखें लाल की। गुर्राकर बोला —क्या उन्हें फिकर नहीं है अपनी खाल की! रावण को मिलजुल कर जला रहे हैं! हमें साथ लिए बिना इतनी खतरनाक गैरकानूनी मर्जी चला रहे हैं! जल्दी बताओ, क्या ये ऑनर किलिंग का केस है? या राजनीतिबाजी की खूनी रेस है? तुम तो जानते ही हो, अपने यहां दोनों के रेट भिन्न हैं। वैसे गांव में हिंसा से अपुन तहे दिल से खिन्न हैं! ठीक-ठीक बताना, असल बात क्या है? और हां, रावण की जात क्या है ?
ऐरों-गैरों के सामने पूरा अकडू और अभिमानी था। पर यूं चौकीदार एक चिंतनशील प्राणी था। बोला-हुजूर, 21वीं सदी में भला जात की क्या बात है। फिर रावण तो आज अपने आप में एक जात है। अलबत्ता मायावी रावण की जात कौन जान सकता है। रावण तो किसी भी जात में होने की ठान सकता है!
सुनकर दारेागा गुर्राया —क्या मतलब! ये क्या बकवास है! लगता है पौवा नहीं आज तू पूरी बोतल का दास है। कंबख्त मेरे हाथों पिटकर अभी तू रोएगा। जरा बता तो, जब रावण खुद एक जात है, तो वो किसी भी जात में कैसे होएगा ?
चौकीदार बोला —हुजूर, बेशक बोतल मेरे पास है। फिर भी मेरा दिल उदास है। जनाब, मेरी भी क्या जिंदगानी है। बोतल में दारू नहीं, पीने के लिए पोखर से भरा मटमैला पानी है! पर साहब जात का सवाल मत उठाना। दुष्ट रावण का तो चारों ओर ठिकाना। रावण हर जगह मौजूद है। दफ्तर, आश्रम हो चाहे थाना। सर जी, रावण पुलिस की जात का भी हो सकता है। और नेता की जात में घुसकर जनसेवा का झंडा भी ढो सकता है। अफसर, बाबू और चपरासी की जात में भी रावण पाया जाता है। डाक्टर, वकील, इंजीनियर जैसी जात में भी रावण द्वारा ही जनता को रूलाया जाता है। व्यापारी की जात में भी मिलावट, तस्करी जमाखोरी रावण ही करता है। शिक्षक, साहित्यकार,पत्रकार की जात में भी रावण ही जहर भरता है। हुजूर! आप तो यह सब मुझ से ज्यादा जानते हैं। किस जात में कहां, कौन रावण है, बखूबी पहचानते हैं!
सुनकर दारोगा मुस्कुराया। आईने पर नजर पडी तो चकराया। अपने चेहरे में उसे रावण नजर आया। दारोगा बौखलाया, खिसियाया। फिर चौकीदार पर चिल्लाया —खैर! जात की बात जाने दे! तू मुझे रावण को जलाने वालों के नाम पते ठिकाने दे !
चौकीदार ने दिमाग दौडाया। तब दारोगा को बताया —हुजूर गांव वाले तो रावण को सिर्फ जला रहे हैं। पुरानी परंपरा चला रहे हैं। वैसे रावण को तो राम जी ने मारा है। मारा क्या , एक तरह से तारा है, भव सागर से उबारा है !
दारोगा चौंका —कौन राम जी! अपने पूर्व विधायक दंगाराम जी ने! पर यार, वे तो जेल में हैं। जल्दी बता, बेल पर छूटे हैं या कुछ ले-देकर इस खूनी खेल में हैं।
चौकीदार कसमसाया। सचमुच पानी सिर से ऊपर चढता जा रहा था। अब उसे ऐसे वक्त इस तरफ से निकलने के लिए खुद पर गुस्सा आ रहा था। उसने खुलासा करने में महसूस की हेटी। फटाफट बात लपेटी —हुजूर, माफ करें खता! दंगाराम जी के बारे में तो मुझे कुछ नहीं पता! पर आप जाना चाहें तो जल्दी कीजिए। और मुझे अपने थोड़े बीमार भाई की रक्षा करने पूरी बीमार अस्पताल तक जाने की इजाजत दीजिए !
जलाए जा रहे रावण का केस लपकने धुत्त दारोगा जब गांव की ओर जा रहा था। सामने से आ रहा महान लोकतंत्र का व्यवहारिक वोटर दारोगा की नजर से बचने के लिए, काटे जा चुके हरे भरे पेडों की ओट पा रहा था। गांव की ओर से उठता धुंआ दारोगा का जोश और रोश बढाने लगा। वारदात का ऐसा पुख्तां सबूत देखते हुए उसका असुर मन सुर में गाने लगा।
सूखते तालाब के किनारे मंदिर के सामने दारोगा ने धडधडाती जीप रोकी। राम लीला देखने खडी उत्साही भीड चौंकी। अचरज बहुत बडा था। वहां पटाखों के धमाके के साथ कौन जल रहा था? दारोगा का चेहरा लेकर रावण तो उनके सामने खडा था! दारोगा को देखते ही सरपंच और पटवारी से पहले हेड कांस्टेबल अपनी तोंद संभालते हुए आगे बढा। झुंझलाते हुए दारोगा को मुस्कुराना पडा। क्यों कि हेड साला थाने का घर जैसा भेदी ठहरा। और दारोगा का भेद था बडा गहरा। किंतु दारोगा के मन में महा क्रोध था। नशे में चूर होने पर भी इस मामले में हेड द्वारा गद्दारी की चेष्टा का खरा बोध था। मदहोशी के बावजूद अपने इस होश के लिए दारोगा ने खुद को दी शाबाशी। और तय किया, थाने पहुंचते ही निकालुंगा ससुरे की सारी बदमाशी !
हेड कांस्टेुबल ने सलाम ठोकते हुए कहा —सर जी, कब आए! आप छुट्टी पर थे, इसलिए जनता की सेवा करने मुझे अकेले आना पडा। ढीठ रावण को जोर लगवाकर जलाना पडा। अलबत्ता आप होते तो ज्याादा मजा आता। हुजूर, आपको देखकर तो रावण यूं ही जल जाता!
अब केस-खोर दारोगा मामला समझ गया। खिसियाते हुए उसका मिजाज फौरन बदल गया। पर ये कमीना हेड बनावटी आत्मीायता जता रहा है! कंबख्त परोक्ष रूप से मुझे रावण से भी ज्यादा रावण बता रहा है। वैसे बेशक सुनने में नहीं है अच्छी । पर बात है तो बिल्कुल सच्ची! भला मेरे आगे रावण की क्या औकात! सोचकर इतराते हुए दारोगा ने पटवारी और सरपंच से की मुलाकात। उनकी बातों को जोडने वाले बडे खतरनाक धागे थे। जो सिद्ध करते हैं, वे दोनों भी रावणपने में रावण से आगे थे।
लौटते समय गांव के कच्चे रास्ते के पक्के चढाव पर दारोगा का नशा उतार पर था। इसलिए गुस्सा पूरी तरह पुलिसिया धार पर था। मादर…. चौकीदार ! हमको उल्लू बना गया साला!— कहकर दारोगा ने हेड कांस्टेरबल को सारा वाकया सुना डाला। बात जानकर हेड मन में खुश हुआ। प्रकट में सहलाने के लिए उसने दारोगा की दुखती रग को छुआ। बोला —ससुरा आपको झांसा देकर अकडता, तनता है ! सर जी, इस हरामखोर चौकीदार पर तो पुलिस को गुमराह करने का सीधा केस बनता है। साले को उल्टा टंगवा कर लाएंगे। हवालात की भेजा सुधारक हवा खिलाएंगे !
ये प्रेक्टिकल प्रस्ताव सुनते ही गहरा उठी चर्बिले चेहरे की बेर्शम लाली। दारोगा ने चमकती आंखों से हेड कांस्टेबल पर मीठी नजर डाली। कांपते हाथों से उसकी पीठ थपथपाई। और खुमारी भरी भावुकता में बोला —बस, तुम्हारे जैसे निष्ठावान, समर्पित भाव भरे जागरूक जवानों से ही पुलिस विभाग की इतनी पैठ है भाई !
बेताब दारोगा को अपने भ्रष्टाचार की श्रृंखला से भी लंबी लग रही है, इंतजार की डोर। अस्पताल की बीमार हवा से बचकर, चौकीदार तेजी से आ रहा है गांव की ताजा हवा की ओर !
-प्रहलाद श्रीमाली