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Tag: राजनीति

"Abstract illustration of democracy and demography in India, showing a balance scale with diverse communities on one side and a glowing ballot box on the other, against a surreal background of shifting population patterns."

वास्तविक डेमोक्रेसी तभी जब वह सायास डेमोग्राफी बदले बिना हो

लोकतंत्र का आधार जनता का शासन है, परंतु जब जनसंख्या की संरचना बदलती है तो लोकतंत्र का संतुलन डगमगाने लगता है। भारत जैसे विविध देश…

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A crowded train labeled **“Delhi Express”** overflowing with politicians, authors, and artists—all carrying suitcases marked *Ticket, Award, Protest, Funding*. Some are climbing the roof, others hanging from the windows. In the sky above, Delhi is drawn as a giant shining washing machine, sucking them in and washing away their stains. On the ground, common people are left behind, holding empty plates and waving. A signboard reads *“Delhi Returns Bazaar – भाव दोगुना”*. The mood is humorous, exaggerated, and satirical like a political cartoon.

चलो बुलावा आया है-व्यंग्य रचना

“चलो बुलावा आया है… दिल्ली ने बुलाया है। नेता, लेखक, कलाकार—सब दिल्ली की ओर ताक रहे हैं। दिल्ली एक वॉशिंग मशीन है, जहां दाग तक…

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A plump politician with a round glowing face like the moon (Chandmal) stands on a rooftop under the night sky, staring anxiously at the real moon. Below, the street is dark except for posters of different "mini-moons" (other candidates) all with smiling faces, orbiting around a giant throne labeled *आलाकमान*. A worried rival (Cheedilal) is shown holding a net trying to catch the moonlight.

गली में आज चाँद निकला-व्यंग्य रचना

“गली में आज चाँद निकला… पर यह कोई आसमान वाला चाँद नहीं, बल्कि टिकट की दौड़ में फँसा हुआ नेता चांदमल है। चाँदनी बिखेरने का…

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एक व्यंग्यात्मक कार्टून जिसमें एक महिला, जो हिंदी भाषा का प्रतिनिधित्व कर रही है, एक ब्यूटी पार्लर की कुर्सी पर बैठी है। एक मेकअप आर्टिस्ट, जो नौकरशाही को दर्शाता है, एक बड़े पेंट रोलर से उसके चेहरे पर भारी मात्रा में मेकअप लगा रहा है, जिससे उसकी प्राकृतिक सुंदरता छिप गई है और वह असहज महसूस कर रही है।

हिंदी का ब्यूटी पार्लर

हिंदी भाषा को सरकारी दफ़्तरों और आयोगों में किस तरह से बोझिल और जटिल बनाया गया है, जिससे वह अपनी सहजता और सुंदरता खो रही…

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बड़े कोल्हू का कार्टून—बीच में जोते हुए पट्टी बांधे बैल, ऊपर आराम करते नेता-आफिसर तेल की बोतलें पकड़ कर हँस रहे हैं; पृष्ठभूमि में रैलियों के लाउडस्पीकर और घंटी बजती दिखती है।

कोल्हू का लोकतंत्र-व्यंग्य रचना

यह लोकतंत्र दरअसल एक कोल्हू है जिसमें बैल बनकर हम आमजन जोते जा रहे हैं। मालिक—नेता और अफसर—आराम से ऊँची कुर्सियों पर बैठकर तेल चूस…

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"कार्टून व्यंग्य चित्र: कृष्ण का बालरूप मक्खन हांडी तक हाथ बढ़ाता, और पास ही नेता, अफसर, व्यापारी माखन के बड़े-बड़े लड्डू खा रहे हैं; जनता माखन घिसते दिख रही है।"

माखन लीला-हास्य व्यंग्य रचना

कृष्ण की माखन लीला आज लोकतंत्र में रूप बदल चुकी है। जहाँ कान्हा चोरी से माखन खाते थे, वहीं आज सत्ता और समाज में सब…

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व्यंग्यात्मक कार्टून जिसमें दुनिया के वरिष्ठ नेता—पुतिन, मोदी, ट्रंप, नेतन्याहू, खोमनेई—हाथ में ताश के पत्तों की जगह देशों के नक्शे और स्टीयरिंग पकड़े हैं, और मंच पर खड़े होकर जोश में दुनिया की दिशा तय कर रहे हैं, जबकि दर्शक हतप्रभ हैं।

साठा सो पाठा-व्यंग्य रचना

साठ के बाद ‘रिटायर’ नहीं, ‘री-फायर’ होना चाहिए—ये दुनिया के पुतिन, मोदी, ट्रंप, नेतन्याहू और खोमनेई साबित कर चुके हैं। अनुभव, जिद और आदतों का…

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व्यंग्यात्मक लेख जिसमें इंसान और कुत्ते की आवारगी की तुलना की गई है, अदालत के आदेश, शेल्टर, राजनीति और सामाजिक विडंबनाओं के संदर्भ में। हास्य और कटाक्ष के साथ दिखाया गया है कि इंसान का ‘कुत्तापन’ कुत्तों से भी खतरनाक है।

आदमी और कुत्ते की आवारगी-व्यंग्य रचना

ह व्यंग्य इंसान और कुत्ते की आवारगी के बीच की महीन रेखा को तोड़ता है। अदालत के आदेश से कुत्तों को शेल्टर में डालने का…

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हार के बाद हताश नेता, कुर्सी पर ढहे हुए, चेहरे पर स्थायी उदासी, पोस्टर में झूठी जीत की घोषणा, बासी बर्फी पर मंडराती मक्खियाँ, और पीछे भैंस के तबेले में टिकट वापसी की प्रतीकात्मक राजनीतिक व्यथा।

हारे हुए प्रत्याशी की हाल-ए-सूरत-व्यंग्य रचना

चुनाव हारने के बाद नेताजी के चेहरे की मुस्कान स्थायी उदासी में बदल गई। कार्यकर्ता सांत्वनाकार बन चुके हैं, बासी बर्फी पर मक्खियाँ भिनभिना रही…

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