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Tag: contemporary-satire

“एक कार्टून-व्यंग्यात्मक दृश्य, जिसमें एक लेखक चश्मा नीचे खिसकाए समाज को तिरछी नज़र से देख रहा है। उसके आसपास बिखरी घटनाएँ—नेता का बयान, अस्पताल का बिल, सोशल मीडिया पोस्ट, भूखा बच्चा, भीड़ का उफान—सबको वह ‘व्यंग्य की एक्स-रे’ मशीन से जाँचता दिख रहा है। हँसी और चुप्पी को तौलती तराज़ू, और पृष्ठभूमि में एक विशाल प्रश्नचिन्ह—मानो समाज खुद से पूछ रहा हो, ‘सच में, हम ऐसे हैं?’।”

हँसी के बाद उतरती चुप्पी: व्यंग्य का असली तापमान

“व्यंग्य हँसाने की कला नहीं, हँसी के भीतर छुपी बेचैनी को जगाने की कला है। वह पल जब मुस्कान के बाद एक सेकंड की चुप्पी…

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“एक व्यंग्यकार की टेबल पर खुली रखी पुस्तक ‘व्यंग्य—कल, आज और कल’, बगल में चश्मा, पेन और पीले प्रकाश में रखा कॉफी मग; साहित्यिक अध्ययन और आलोचना के वातावरण को दर्शाती शांत, बौद्धिक छवि।”

व्यंग्य—कल, आज और कल : हिंदी व्यंग्य का व्यापक परिप्रेक्ष्य और बौद्धिक पुनर्स्थापन

“विवेक रंजन श्रीवास्तव की ‘व्यंग्य—कल, आज और कल’ हिंदी व्यंग्य को एक गंभीर, बहुस्तरीय और विश्लेषणात्मक विधा के रूप में स्थापित करती है। यह पुस्तक…

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