मैं बच्चा हूँ, ट्रॉफी नहीं-कविता -डॉ मुकेश असीमित
यह कविता एक बच्चे की अंतरात्मा की पुकार है—जो केवल अपने लिए जीना चाहता है, किसी की महत्वाकांक्षा की ट्रॉफी बनकर नहीं। वह अपने सपनों को जीना चाहता है, न कि दूसरों के अधूरे सपनों को ढोना। उसमें संवेदना है, विद्रोह है और मानवता की गूंज है।
Copy and paste this URL into your WordPress site to embed
Copy and paste this code into your site to embed