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एक न्यूनतम चित्रण जिसमें दो अमूर्त मानव आकृतियाँ एक-दूसरे की ओर उन्मुख हैं, उनके बीच एक जुड़ाव रेखा है। ऊपर दिल और नीचे जुड़ी हुई प्रतीकात्मक आकृतियाँ रिश्तों की जटिलता और भावनात्मक गहराई को दर्शाती हैं।

“रिश्ते (गजल ) दो छायाओं के बीच अनकहे जुड़ाव ।”

गजल – रिश्ते रिश्तों में विसाल उतना है जरूरी, मेरे लिए हर सिम्त में रिश्ते है जरूरी पर कुछ लोग बना देते है मैदान-ए-मतकल, मेरी……

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एक रंग-बिरंगी बाल चित्रकथा शैली की चित्र में बच्चे पौधे लगा रहे हैं, पानी बचा रहे हैं, और कूड़ेदान में कचरा डाल रहे हैं। पीछे नीला आसमान, हरी धरती और चमकती धूप है — प्रकृति की गोद में बच्चों की पर्यावरण संरक्षण की सीख।

धरती मां की पुकार: पर्यावरण संरक्षण पर प्रेरणादायक बाल कविता

धरती हमारे जीवन की आधारशिला है — नीला अम्बर, हरी ज़मीन, और प्रकृति के अनमोल रंगों से सजी यह दुनिया हमें जीवन, शांति और सुख……

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एक घना हरा-भरा जंगल जिसमें सामने एक हिरण खड़ा है, ऊपर एक पक्षी उड़ रहा है और एक कौआ झाड़ी पर बैठा है; पृष्ठभूमि में धुंध से ढकी पहाड़ियाँ और ऊँचे-ऊँचे पेड़ दिख रहे हैं।

जंगल की पुकार: हरियाली, जीवन और संरक्षण की कविता

जंगल केवल पेड़ों और जानवरों का घर नहीं, बल्कि हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। यह हरियाली, शांति, और जैव विविधता का प्रतीक हैं, जो……

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एक वृद्ध ग्रामीण व्यक्ति डॉक्टर के पैरों को छूते हुए, डॉक्टर मास्क लगाए, हाथ जोड़े सकपकाए खड़े हैं, पीछे क्लीनिक का शांत वातावरण।

श्रद्धा, सायकोसिस और स्टेथोस्कोप

मैंने अपने क्लीनिक में प्रवेश किया। कई मरीज़ विश्राम कक्ष में बैठे हुए थे। कुछ के चेहरे पर संतोष था—शायद मेरे इलाज से उन्हें लाभ……

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"A satirical cartoon depicting a rural clinic scene: villagers are describing bizarre symptoms — one says 'nas chali gayi', another 'hawa lag gayi' while holding his head, and a third, leaning on a stick, claims 'goda bol gaya'. The doctor sits confused, holding his forehead. Posters in the background read 'Vaat-Pitt-Kaph Clinic' and a board says 'No treatment for upper air here

मेडिकल का आँचलिक भाषा साहित्य – बिंब, अलंकारों, प्रतीकों से भरपूर

“डॉक्टर साहब, आपकी पढ़ाई अपनी जगह… हम तो इसे ‘नस जाना’ ही मानेंगे!” ग्रामीण चिकित्सा संवादों में हर लक्षण का एक लोकनाम है — ‘चक…

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व्यंग्यात्मक चित्र जिसमें चार राजनेता तीव्र क्रोध में एक-दूसरे को गालियाँ दे रहे हैं। बीच में एक व्यक्ति 'Article 19(1)(a)' की ढाल पकड़े खड़ा है, जबकि बाकी नेता तीखी गालियों के साथ एक-दूसरे पर चिल्ला रहे हैं। बैकग्राउंड में भीड़ तमाशा देख रही है। चित्र गाली-प्रधान लोकतांत्रिक बहस का कटु व्यंग्य करता है।

गालियों का बाज़ार

“गालियों का बाज़ार” नामक उस लोकतांत्रिक तमाशे का प्रतीक है जहाँ भाषाई स्वतंत्रता के नाम पर अपशब्दों की होड़ है। हर कोई वक्ता है, हर…

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एक साहित्यकार ट्रॉफी पकड़े संकोच में मुस्कुराते हुए, पीछे अलमारी में चमचमाता पुरुष्कार रखा है, सामने बब्बन चाचा तिरछी नजरों से पूछते—कहाँ से जुगाड़ किया?"

पुरुष्कार का दर्शन शास्त्र

पुरस्कारों की चमक साहित्यकारों को अक्सर पितृसत्ता की टोपी पहना देती है। ये ‘गुप्त रोग’ बनकर छिपाया भी जाता है और पाया भी जाता है,…

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एक युवक मोबाइल में मग्न होकर "हैप्पी मदर्स डे" लिखी सेल्फी सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रहा है, उसके पीछे माँ रसोई में पसीने से तर-बतर होकर चूल्हे पर रोटी सेंक रही है। उसके माथे पर हल्की थकान, पर चेहरे पर वही स्थायी मुस्कान। युवक की पोस्ट पर मोबाइल स्क्रीन से '999 लाइक्स' के बबल्स उछल रहे हैं, और पास ही माँ बड़बड़ा रही है – "फेसबुक से पेट भरता है क्या?" दीवार पर एक कैलेंडर टंगा है, जिसमें हर दिन 'मदर्स डे' लिखा है — बस तारीख़ बदलती है। बाजार में एक बड़ा बैनर लटक रहा है — "Buy 1 Get 1 Free – Emotionally Packaged Mother’s Day Gifts!" पीछे टीवी पर ऐंकर चिल्ला रहा है — “Emotional Sale का आखिरी दिन!”

मदर्स डे –एक दिन की चांदनी फिर अँधेरी…

एक तीखा हास्य-व्यंग्य जो दिखावे के मदर्स डे और असल माँ के संघर्षों के बीच की खाई को उजागर करता है। सोशल मीडिया की चमक…

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