इधर बाढ़ आई और उधर सरकारी महकमों में, सखी, ऐसा उत्सव-सा माहौल बन पड़ा मानो किसी की मनौती पूरी हो गई हो! जैसे ही नदियाँ उफान पर आईं, वैसे ही कागज़ों में ‘हर घर नल-जल’ योजना बिना कोई पत्ता हिलाए ही पूर्ण घोषित हो गई। देखो तो जरा इन सरकारी नुमाइंदों को—नदी के उफान के साथ इनके चेहरे भी कैसे उल्लास से उफनने लगे हैं! बाढ़ इनके लिए मानो ‘मुँह माँगी मुराद’ बन गई हो, और जो अभागे सच में डूब गए, वे भी सरकारी आँकड़ों में तैरकर चमक बढ़ा रहे हैं। जो बचे, वे ‘राहत लाभार्थी’ कहलाए, और जो न डूबे, न बचे—वे चाय की चुस्कियों के साथ टीवी न्यूज़ चैनलों पर ‘बाढ़-आपदा विशेषज्ञ’ बन बैठे हैं।
रहत कर्मचारियों को लगा दिया है काम पर..दूरबीन लगाये देख रहे है ,हांक लगा रहे हैं..”तनिक हाथ-पैर चलाओ, आओ-आओ, रहत सामग्री का दाना बिखेर दिया है..चुग सको तो चुग लो..! कागज दिखाओ पहले..! राहत कार्यालय तक तो पहुँचो! देखो कैसी चोंच सा मुंह निकल आया है इनका—चुग लो जो चुग सकते हो, बाकी की बोरी हम अधिकारी तक पहुँचा देंगे”, यही चलन है मित्र ,बुरा नहीं मानना ।
लेकिन सखी, इन्हें दाना चुगना भी कहाँ आता है! डूबने से पहले अगर सरकार का ‘प्रोटोकॉल’ पढ़ लिया होता, नियम-कायदों को समझ लिया होता, तो शायद बहाव में बहते नहीं—उस पर सवारी कर रहे होते। खैर, अब हम ही कुछ गाइडलाइन दे देते हैं—शायद अगली बाढ़ में काम आ जाए।
यदि बाढ़ का पानी देहरी लाँघकर छत तक पहुँच जाए, तो घबराने की ज़रूरत नहीं। छत पर चढ़ जाइए, क्या कहा ..? छत नहीं है..! तो कोई बात नहीं छाप्पर तो है ,उसी में खुंसे किसी बाँस से लटक जाइए। एक बड़ा सा लकड़ी का पट्टा अपने पास रखें जिस पर गीली मिट्टी से लिखवाया हो—”जो इस पट्टे को पकड़े है, वह अब भी जीवित है—वोटर लिस्ट में नाम है!” क्योंकि आजकल जीवित होने का प्रमाण यही है कि आपका नाम वोटर लिस्ट में हो। और अगर चुनाव नज़दीक हो, तो मृतकों का भी ई-वोट दर्ज हो सकता है। कहते हैं—“ज़िंदा हाथी लाख का तो मारा सवा लाख का ।”मृत वोटर से तो मनचाहे जगह पर वोट दिलवाया जा ही सकता है..जिन्दा वोटर तो दिमाग लगायेगा की यार जिसे वोट दे रहे हैं वो अपनी जाती,पांत,धर्म, मोहल्ला गली, गाँव का..कुछ तो होना चाहिए न..वैसे भी, कुछ तो जीते जी भी मरे हुए हैं—एक बोतल शराब और चंद नोटों पर मर गए हैं वे।
अब अगर राहत सामग्री हेलिकॉप्टर से गिराई जा रही हो, तो नेशनल लेवल का कैच अभ्यास कर लेना चाहिए। और हाँ अपनी टान्ट जरूर बचा के रखे । रही बात सरकारी नाव की, तो अगर सौ लोगों से भरी नाव में 101वें यात्री बनना हो, तो एक हाथ में वोटर कार्ड जरूर रखें—सरकारी राहत की मछली को फँसाने के लिए यही सबसे पुख्ता चारा है। लेकिन सवारी करने से पहले यह भी देख लें कि नाव कहीं सरकारी है ,तो शत प्रतिशत संभावना है की लीक कर रही होगी । वैसे भी, आजकल सरकारें हर ओर से लीक हो रही हैं—बजट से नीति तक और गठबंधन से गठजोड़ तक!
बाढ़ आयी है और साथ ही प्रेस कॉन्फ्रेंसों की भी बाढ़ आ गयी है।बाढ़ में सबसे बड़ी राहत जनता को यही मिली..की सरकार ने सवालों का जबाब देने का मन बना लिया है ! सरकार की संवेदनाएं बाढ़ पीड़ितों के साथ है ! सरकार हर संभव कदम उठा रही है..पहला कदम तो सरकार ने यही उठाया है की ,प्रेस कांफ्रेंस में सरकार सशरीर अपने क़दमों से चलकर पहुँची है .. मंत्री जी मुस्कराते हुए आये हैं और कह रहे हैं—“देखिए! हम पूरी तरह तैयार हैं। हेलिकॉप्टर उड़ रहे हैं, राहत सामग्री की थैलियाँ बरस रही हैं,बाढ़ की स्थिति से कैसे निपटें ,इसकी सारगर्भित सूचना से लदे पदे पोस्टर हर गली-मोहल्ले में लग चुके हैं।” इतना ही नहीं, वे यह भी जोड़ते हैं—“हमने तो बाढ़ के आने से पहले ही पोस्टर लगवा दिए थे—अब इसे आपदापूर्व प्रबंधन कहेंगे या प्रबंधनपूर्व आपदा?”…तुलना कीजिए पिछली सरकार से—कहाँ इतना प्रबंधन था?”
“लेकिन सर,” एक पत्रकार ने टोका, “पिछली सरकार में तो बाढ़ आई ही नहीं थी, तो फिर कैसे कहा जा सकता है कि प्रबंधन सही नहीं था?”
मंत्री जी ने भौंहें चढ़ाते हुए जवाब दिया, “अरे बुद्धू! यही तो कहना चाह रहे हैं हम! अब बाढ़ अगर न आए, तो हमारा काम कैसे दिखेगा? हमारा मंत्रालय ‘आपदा प्रबंधन’ का है… अब आपदा ही नहीं होगी, तो मंत्रालय का स्टाफ चाय की चुस्की ही लेता रहेगा क्या? बाढ़ ही है जो हमें व्यस्त रखती है, हमें मंच देती है, हेलिकॉप्टर उड़वाती है, थैलियाँ बरसवाती है, और पोस्टर लगवाने का मौका देती है! हमारा मंत्रालय बाढ़ के बिना तो बेरोज़गार हो जाएगा, भाई साहब!”
एक पत्रकार महोदय पूछ बैठे-मंत्री जी, इस बार तो नदी के पानी के साथ-साथ मगरमच्छ भी घरों में घुस आए हैं।” मंत्री जी मगरमछी आंसू बहाते हुए गंभीरता से उत्तर देते हैं—“”हमें मगरमच्छों की भी फिक्र है। जिन-जिन घरों में घुसे हैं, उनसे कह दिया गया है कि विशेष सतर्कता बरतें। अगर उन्होंने मगरमच्छों के साथ कोई छेड़छाड़ की, तो उन पर वन्य जीव संरक्षण की धाराओं के अंतर्गत मुकदमा चलेगा।” और हाँ, आप कह रहे हैं कि हर घर में पानी भर गया—तो देखिए न, प्रकृति भी कितनी सहयोगी हो गई है हमारे ड्रीम प्रोजेक्ट हर घर नल-जल योजना में! अब देखो, पानी हर घर पहुँच ही रहा है, चाहे नल से आए या बाढ़ से! अब हमें भी ‘चुल्लू भर पानी’ में डूब मरने की ज़रूरत नहीं रही, बाबा!
“अरे भाई, पत्रकारों का सवाल पूछते-पूछते गला सूख गया है—जरा इन्हें कुछ ठंडा-वंडा पिलाकर गला तर करा दो। “
शायद मुँह बंद कराने का भी सरकार के पास यही तरीका था!

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
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वाह वाह बहुत खूब
bahut bahut abhaar aapki snehpoorn pratikriya ke liye