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“कारगिल विजय दिवस 2025 – नई पीढ़ी के लिए शौर्यगाथा का संदेश”

"एक बर्फ से ढकी कारगिल चोटी पर तिरंगा फहराता है, उसकी छाया में एक वीर सैनिक की आकृति खड़ी है। दूर खड़ी नई पीढ़ी श्रद्धा और प्रेरणा के साथ ऊपर देख रही है, जैसे अपने भीतर के सैनिक को पहचान रही हो।"

अगर आप चाहेंतो इतिहास रच सकते हैंलेकिन अगर आप चाहें कि पीढ़ियाँ उसे याद रखेंतो उसे अपने लहू से लिखना होगा। 26 जुलाई 1999, वह दिन था जब भारत ने अपने पराक्रम, दृढ़ संकल्प और सैनिकों की अतुलनीय वीरता से एक इतिहास रचा, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ केवल पाठ्यपुस्तकों में नहीं पढ़ेंगी, बल्कि अपने हृदय में सजाकर रखेंगी। यह केवल एक विजय दिवस नहीं, बल्कि भारत की अखंडता, राष्ट्रीय गौरव और वीरता का प्रतीक है। 2025 में जब हम कारगिल विजय की 26वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, यह अवसर केवल एक सैनिक विजय की स्मृति नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को राष्ट्रभक्ति, साहस और कर्तव्यनिष्ठा का जीवंत संदेश देने का भी अवसर है।

आज की युवा पीढ़ी सोशल मीडिया, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और वैश्वीकरण के युग में पल-बढ़ रही है, जहां सूचनाओं की कोई कमी नहीं है, परंतु वास्तविक मूल्यबोध और राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना अक्सर सतही हो जाती है। ऐसे में कारगिल की वीरगाथा को केवल ‘एक ऐतिहासिक घटना’ समझना एक भूल होगी। यह एक जीवन मूल्य है, जो हमें सिखाता है कि मातृभूमि के लिए बलिदान किसी प्रचार का विषय नहीं, बल्कि आत्मा का संकल्प होता है।

कारगिल युद्ध : वह सच्चाई जिसे जानना ज़रूरी है : कारगिल युद्ध मई 1999 से लेकर 26 जुलाई तक चला, जिसमें भारतीय सेना ने 60 दिनों के भीतर दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में दुश्मन के द्वारा अवैध रूप से कब्जाई गई चौकियों को फिर से अपने अधीन किया। यह युद्ध परंपरागत युद्धों से अलग था। पाकिस्तानी सेना ने ‘मुजाहिदीन’ के नाम पर छद्म युद्ध छेड़ा और भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ की। जब यह वास्तविकता सामने आई कि घुसपैठिए कोई आतंकवादी नहीं, बल्कि पाकिस्तान की नियमित सेना के सैनिक हैं, तब भारत सरकार और सेना ने बिना किसी उकसावे के संयम, परंतु कर्तव्यनिष्ठा के साथ सैन्य कार्रवाई शुरू की।

यह युद्ध न केवल भौगोलिक दृष्टि से कठिन था, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत जटिल था। दुश्मन ऊँचाई पर था और भारतीय सैनिकों को निचले स्थानों से चढ़ाई करते हुए संघर्ष करना था। -10 से -15 डिग्री तापमान में, सांस रोक देने वाली ऊंचाइयों पर, भारतीय सैनिकों ने जिस प्रकार अपने प्राणों की आहुति दी, वह आज भी रोंगटे खड़े कर देता है।

शहीदों की चिताओं पर हर साल खिलते हैं चिरंतन सपने : कैप्टन विक्रम बत्रा, ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव, मेजर पद्मपाणि आचार्य, लेफ्टिनेंट मनोज पांडे और अनगिनत नाम – जिन्होंने न केवल अपने प्राण दिए, बल्कि एक युग को प्रेरणा दी। “यह दिल मांगे मोर” कहने वाले कैप्टन विक्रम बत्रा की कहानी नई पीढ़ी के लिए केवल एक वीरगाथा नहीं, बल्कि ‘कर्तव्य से बढ़कर कुछ नहीं’ का जीवन दर्शन है।

इन शहीदों ने कोई राजनीतिक लाभ नहीं चाहा, ना ही कोई यश। उन्होंने केवल एक बात चाही—भारत की भूमि पर कोई पराया झंडा न लहराए। उन्होंने अपनी अंतिम सांसों में भी “भारत माता की जय” के नारे लगाए और आज भी उनकी कहानियाँ हर उस युवा को प्रेरित करती हैं, जो अपने जीवन में उद्देश्य खोज रहा हो।

नई पीढ़ी की सोच और कारगिल की प्रासंगिकता : 2025 में, जब नई पीढ़ी एक वैश्विक नागरिक बनने की ओर अग्रसर है, तब कारगिल जैसे ऐतिहासिक प्रसंगों की व्याख्या केवल ‘युद्ध’ के संदर्भ में करना अनुचित होगा। दरअसल, यह युद्ध नहीं, चेतना का पुनर्जागरण था। आज युवा पीढ़ी को यह समझना होगा कि यह विजय केवल सीमा पर बंदूक चलाने से नहीं मिली, बल्कि मानसिक साहस, अनुशासन, राष्ट्रीय एकता और अटूट समर्पण की नींव पर खड़ी हुई थी।

हर वर्ष कारगिल विजय दिवस मनाने का उद्देश्य केवल मोमबत्तियाँ जलाना या वीरों की प्रतिमाओं पर पुष्प अर्पण करना नहीं होना चाहिए। यह एक अवसर है स्वयं के भीतर झाँकने का, पूछने का – क्या मैं अपने देश के लिए ईमानदार हूँ? क्या मैं अपने कर्तव्यों को उतनी ही गंभीरता से लेता हूँ, जितनी गंभीरता से एक सैनिक अपना जीवन राष्ट्र को समर्पित करता है?

शिक्षामीडिया और समाज : शौर्यगाथाओं के संवाहक : नई पीढ़ी को कारगिल जैसी घटनाओं से जोड़ने में शिक्षा और मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज जब डिजिटल कंटेंट, गेमिंग और रील्स का दौर है, तब जरूरी हो जाता है कि हमारे पाठ्यक्रमों में वीरता की सच्ची कहानियों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए कि युवा केवल उन्हें रटें नहीं, बल्कि उनसे जुड़ें।

मीडिया को चाहिए कि वह केवल ट्रेंडिंग विषयों के पीछे न भागे, बल्कि युवा मन में राष्ट्रप्रेम को उकसाने वाले सकारात्मक और तथ्यात्मक कंटेंट को प्राथमिकता दे। भारत के हजारों शहीदों के परिवार आज भी गुमनामी में जीवन जी रहे हैं, जिनकी कहानियाँ देश को प्रेरणा दे सकती हैं।

शौर्य से संस्कार तक : नई पीढ़ी को राष्ट्रधर्म का बोध : आज की पीढ़ी जिस परिवेश में पली-बढ़ी है, वह तकनीकी प्रगति, वैश्विक संवाद और व्यक्तिवादी विचारों से घिरा हुआ है। स्वतंत्रता, अधिकार और अवसरों की बातें करने वाले इस युग में ‘कर्तव्य’ और ‘बलिदान’ जैसे शब्द कभी-कभी अप्रासंगिक प्रतीत होते हैं। लेकिन कारगिल विजय दिवस हमें याद दिलाता है कि राष्ट्र निर्माण केवल राजनीतिक घोषणाओं से नहीं, बल्कि नागरिकों के भीतर निहित जिम्मेदारी और आत्मबलिदान की भावना से होता है।

यह युद्ध केवल एक सैन्य टकराव नहीं था, यह राष्ट्रधर्म निभाने का जीवंत उदाहरण था। कैप्टन मनोज पांडे ने युद्ध से पहले अपने माता-पिता को लिखे पत्र में कहा था—अगर मैं वापस  लौटूंतो कहिएगा मैंने अपना कर्तव्य निभाया। यही वह सोच है जो नई पीढ़ी को अपने जीवन के हर क्षेत्र में आत्मसात करनी चाहिए। वह छात्र हो या शिक्षक, इंजीनियर हो या लेखक, चिकित्सक हो या सैनिक—हर कोई अगर अपनी भूमिका पूरी ईमानदारी से निभाए, तो राष्ट्र अपने आप महान बन जाता है।

कारगिल की लड़ाई बुलेट्स से नहीं, बल्कि ‘बिलिफ’ से जीती गई थी—विश्वास कि यह धरती किसी भी कीमत पर न झुकने दी जाएगी। आज आवश्यकता है कि यह विश्वास, यह भाव, प्रत्येक युवा के मन में रोपा जाए।

वीरगाथाओं का सांस्कृतिक पुनर्पाठ : जब हम संस्कृति की बात करते हैं, तो अक्सर कला, संगीत, वास्तुकला और साहित्य को केंद्र में रखते हैं। परंतु कोई भी संस्कृति तब तक पूर्ण नहीं मानी जा सकती, जब तक उसमें अपने वीरों का सम्मान न हो, जब तक उसमें बलिदानों की स्मृति सुरक्षित न हो।

2025 की युवा पीढ़ी को कारगिल की गाथा को ‘युद्ध-गाथा’ से आगे बढ़ाकर ‘सांस्कृतिक विरासत’ के रूप में देखना होगा। यह केवल पुरानी पीढ़ी की विरासत नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की नैतिक जड़ों का हिस्सा है। आज जब मनोरंजन उद्योग पौराणिक चरित्रों पर फिल्में बनाकर अरबों कमा रहा है, तब कारगिल जैसे वास्तविक वीरों पर आधारित सिनेमा, साहित्य और डिजिटल डॉक्यूमेंट्रीज़ का अभाव खलता है।

क्यों न हम अपने विद्यालयों और महाविद्यालयों में ‘वीरगाथा पठन’ को एक नियमित अभ्यास बनाएं? क्यों न हर युवा को उसके क्षेत्रीय या स्थानीय शहीदों की कहानी पढ़ने और जानने की प्रेरणा दी जाए? जब तक युवा को यह महसूस नहीं होगा कि ‘बलिदान केवल इतिहास नहीं, उसकी अपनी पहचान का हिस्सा है’, तब तक वह केवल उपभोक्ता बनेगा, निर्माता नहीं।

राष्ट्र निर्माण में युवाओं की निर्णायक भूमिका : आज भारत एक युवा देश है। हमारी जनसंख्या का लगभग 65% हिस्सा 35 वर्ष से कम आयु का है। यह केवल एक जनसंख्या आंकड़ा नहीं, बल्कि राष्ट्र की ऊर्जा, क्षमता और दिशा का संकेत है। यदि यही युवा शक्ति कारगिल जैसी घटनाओं से प्रेरणा लेकर देशहित में कार्य करे, तो भारत को विश्वगुरु बनने से कोई नहीं रोक सकता।

परंतु यह तभी संभव है जब यह युवा पीढ़ी केवल अधिकारों की बातें न करे, बल्कि अपने दायित्वों को भी उतनी ही गंभीरता से ले। जैसे कारगिल में जवानों ने कहा—“हम लौटेंगे नहीं, लेकिन जीत जरूर दिलाएंगे,” वैसे ही हर युवा को अपने जीवन में एक दृढ़ संकल्प करना चाहिए कि चाहे किसी भी क्षेत्र में वह काम करे, देश का हित सर्वोपरि होगा।

हमारे देश में 2025 तक 100 से अधिक स्टार्टअप यूनिकॉर्न बन चुके हैं। जब युवा तकनीकी क्षेत्र में इतना नवाचार कर सकते हैं, तो क्या वे सामाजिक बदलाव, पर्यावरण संरक्षण, शांति स्थापना और सामुदायिक सेवा में भी नेतृत्व नहीं कर सकते? कारगिल हमें सिखाता है कि सीमाओं की रक्षा केवल बंदूक से नहीं होती, विचारों, मूल्यों और दृष्टिकोण से भी होती है।

कारगिल विजय दिवस : महज एक स्मरण नहींराष्ट्रीय संस्कार का दिवस

26 जुलाई को ‘एक दिन’ मानकर यदि हम केवल दो मिनट मौन रखें या एक हैशटैग ट्रेंड करवा दें, तो हम उन बलिदानों का सच्चा सम्मान नहीं कर रहे। यह दिवस हमें आत्मपरीक्षण के लिए प्रेरित करता है—क्या हम आज के भारत को उस बलिदान के अनुरूप बना पा रहे हैं? क्या हम उतनी ही ईमानदारी, साहस और प्रतिबद्धता से देश के प्रति कार्य कर रहे हैं?

देशभक्ति केवल चुनाव के समय या किसी हमले के बाद की भावना नहीं होनी चाहिए, यह तो दैनिक जीवन का स्वाभाविक भाव होना चाहिए। जिस प्रकार एक सैनिक हर दिन मातृभूमि की रक्षा के लिए तैयार रहता है, वैसे ही हर नागरिक को अपने-अपने कार्यक्षेत्र में ईमानदारी और उत्कृष्टता के साथ राष्ट्र के प्रति जवाबदेह होना चाहिए।

एक चिंगारी जो अगली पीढ़ियों में ज्वाला बन जाए : कारगिल विजय दिवस 2025 महज एक वर्षगांठ नहीं है। यह अवसर है भारत की युवा चेतना को जाग्रत करने का, उसे यह समझाने का कि असली प्रेरणा कहाँ से आती है। वह प्रेरणा किसी सेलिब्रिटी की इंस्टाग्राम पोस्ट से नहीं, बल्कि एक सैनिक के अंतिम पत्र, एक माँ की सिसकियों और एक पत्थर पर उकेरे गए शहीद के नाम से आती है। नई पीढ़ी को यह समझना होगा कि कारगिल एक ‘भविष्य दृष्टि’ है—कि कठिनाइयों से डरकर नहीं, उनका सामना करके ही प्रगति संभव है। भारत तब महान नहीं बनेगा जब वह आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा, बल्कि तब बनेगा जब उसका हर युवा ‘कर्तव्य’ को ‘अधिकार’ से पहले रखेगा।

2025 में यह आवश्यक है कि कारगिल की शौर्यगाथा को केवल अतीत की पुस्तक में सीमित न रखकर, उसे एक जीवंत विचारधारा के रूप में अपनाया जाए। यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन शहीदों को जिन्होंने अपनी जान देकर हमें यह दिन देखने का अधिकार दिया।

वो देश ही क्याजो अपने शहीदों को भूल जाए?
वो युवा ही क्याजो उनके पदचिह्नों पर चलने को तैयार  हो?”

इसलिए आइए, इस कारगिल विजय दिवस 2025 पर हम केवल स्मरण न करें, बल्कि यह संकल्प लें—
कि हम हर दिन अपने भीतर एक सैनिक को जिंदा रखेंगे,
अपने कार्यसोच और विचारों से राष्ट्र का मस्तक ऊँचा करेंगे।

जय हिंद। वंदे मातरम्।

‘न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन’ एवं ‘अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन द्वारा संचालित ‘सृजन संसार अंतरराष्ट्रीय पत्रिका समूह’ (1920 x 4000 px) (3920 x 6377 px) – 7

जय हिंद। वंदे मातरम्।
पूनाम चतुर्वेदी शुक्ला

संस्थापक-निदेशक

अदम्य ग्लोबल फाउंडेशन एवं न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन

आशियाना, लखनऊ, उत्तर प्रदेश

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