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जल ही जीवनः शरीर का जल संसाधन केन्द्र – गुर्दा

रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून, पानी गए न ऊबरे, मोती, मानस, चून।

क्या आप जानते हैं-

कि घर में जल शुद्धि के लिए जैसे फिल्टर, एक्वागार्ड और आरओ लगे होते हैं वैसे ही शरीर में रक्त की सतत शुद्धि करण के लिए 20 लाख उपकरण आपके दो गुर्दों में होते हैं।

कि हर गुर्दे में स्थित 10 लाख इन शुद्धिकरण इकाइयों को नेफ्रोन कहते हैं? इसमें ग्लामेरूलस – जो रक्त वाहिनियों का गुच्छा गुच्छा होता है – फिल्टर का काम करता है, और सर्पाकार नलिकायें (ट्यूब्यूल्स) आरओ (रिवर्स ओस्मासिस) का काम करती हैं। घुले हुए अनावश्यक लवणों और अपशिष्टों को हटा देती हैं।

कि शरीर में जो 7 लिटर पानी/रक्त  होता है उसकी प्रति दिन करीब 400 बार छनाई और सफाई होती है, अर्थात 2800 लि. तरल की छनाई और शुद्धिकरण प्रति दिन।

कि नेफ्रोन घरेलू उपकरणों की तरह बिना सोचे समझे काम नहीं करता वरन् शरीर में पानी की मात्रा सम और स्थाई बनाये रखने को आवश्यकता अनुरूप कम या ज्यादा पानी छानता है। जल-अल्पता (डिहाईड्रेशन) होने पर पानी के निकास पर नियत्रण करता है।

कि पानी की कमी या और किसी कारण से रक्त चाप की कमी होने पर नेफ्रोन का एक सेंसर पुर्जा (जक्स्टा ग्लोमेरूलर एपेरेट्स) रेनीन नामक हॉर्मोन बनाता है जो रक्त चाप को नियंत्रित करता है। गुर्दों और अंगों में रक्त संचार नियमित करता है।

कि गुर्दे अपने सर पर स्थित तिकोनी टोपी जैसी एड्रीनल ग्रन्थि से रेनिन द्वारा सतत संपर्क साध कर रक्त में लवण की मात्रा को नियंत्रित करते है। स्वयं भी लवण क्षय से रोकते हैं, और अधिक मात्रा में होने पर उसे बाहर कर देते है। रक्त में सोडियम और पोटेशियम की मात्रा को सम रखते है। इलेक्ट्रोलाइट बैलेन्स बनाये रखते हैं।

कि अगर रक्त में लवण की मात्रा जरा भी अनियंत्रित हो तो आफत आ जाती है। सोडियम की कमी से भला चंगां व्यक्ति बहक जात है, अनर्गल आलाप करता है, आक्रामक व्यवहार करता है। पोटेशियम की मात्रा कम या ज्यादा होने पर तो जान पर ही बन आती है। हृदय गति ही रुक जाती है, हृदयघात, सडन कार्डियक एरेस्ट।

कि इस प्रकार शरीर के ये जल संसाधन संस्थान गुर्दे, जल संरक्षण के साथ रक्त के शुद्धिकरण, उसमें लवण की मात्रा का नियंत्रण और रक्त चाप नियंत्रण कर जल के बहाव और वितरण में अहम भूमिका निभाते हैं।

कि जल संसाधन के अतिरिक्त रक्त में लाल रक्त कणों को नियत्रंण करने का विलक्षण कार्य भी गुर्दे करते हैं। एनीमिया में आक्सीजन की कमी होने पर गुर्दे एरिथ्रोेपोईटीन नामक हॉर्मोन स्रावित करते हैं, जो बोन मेरो में लाल रक्त कण निर्माण करने वाली इकाइयों (स्टेम सेल) को और लाल रक्त कण बनाने को प्रेरित और प्रोत्साहित करता है।

कि गुर्दे नष्ट होने पर इसी कारण असाध्य एनीमिया (रिफ्रेक्टरी एनीमिया) हो जाता है। एरिथ्रोपोईटीन के समकक्ष दवाइयां उपलब्ध हैं जो देनी होती है।

कि डायालिसिस मशीन नेफ्रोन के समकक्ष कृत्रिम उपकरण होता है। आर्टिफीशियल किडनी। किडनी फेलियोर रोगी का रक्त इस मशीन में भेज कर साफ ओैर शुद्ध किया जाता है। इसे ही डायालिसिस कहते हैं। किडनी फेलियोर के रोगी नियमित डायालिसिस के सहारे सामान्य जीवन जी सकते हैं, वर्षों तक। एक डायालिसिस मशीन वही कार्य करती है जो गुर्दों में स्थित 20 लाख नेफ्रोन्स करते हैं।

डॉ. श्रीगोपाल काबरा, 15, विजय नगर, डी-ब्लाक, मालवीय नगर, जयपुर-302017   मोबाइलः 8003516198

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