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कोशिकाओं में आत्मघात व संथारा-lYSOSOME -SUICIDAL BAGS


डॉ. श्रीगोपाल काबरा
लइसोसोम – स्यूसाइडल बैग्ज – आत्मघाती थेलियां

क्या आप जानते हैं –

  • कि शरीर की कोशिकाओं में आत्मघाती बम्ब होते हैं? तेजाब से भरे थेले जिन्हें लाइसोसाम कहते हैं।
  • कि असल में लाईसोसोम कोशिका का आमाशय (स्टोमक) होते है। आमाशय की तरह ही इनमें एसिड भरा होता है जिसमें भोजन (प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, लिपिड) को पचाने वाले 50 पाचक एन्जायम्स होते हैं। भोजन का पाचन कर ये कोशिका को पोष तत्व प्रस्तुत करते हैं।
  • कि लाइसोसोम्स केवल भोजन का ही पाचन नहीं करते वरन् कोशिका में अगर वायरस या रोगाणु प्रवेश कर जाते हैं तो उनको भी पचाकर नष्ट कर देते हैं।
  • कि ये कोशिका के अन्दर टूट फूट और अपशिष्ट को भी एसिड में घोल कर पचा जाते हैं जिससे वे कोशिका में इकट्ठा न हो पायें। लाईसोसोम्स कोशिका के सफाई कर्मचारी का भी काम करते है।
  • कि कोशिका के टूट फूट के टुकड़ों को लाइसोसोम काबाड़ी की तरह अलग अलग और विभाजित कर रिसाकिलिंग के लिए प्रस्तुत करते हैं।
  • कि एसिड भरी ये थेलियां फटने परे उनके तेजाबी तत्व कोशिका को ही नष्ट कर देते हैं। लाइसोसोम्स आत्मघाती सिद्ध होते हैं -स्यूसाइडल बैग्ज – आत्मघाती थेलिया – आत्मघाती बम्ब।
  • कि लाईसोसाम का आवरण (मम्ब्रेन) एसिड तत्वों को कोशिका के तरल व अन्य ऑर्गेनेल्स के संपर्क में आने से बचाता है। यह आवरण बड़ा सेवेदनशील होता है। कोशिका में बाहर से आये टाक्सिक तत्व जब लाईसोसोम्स के अस्तित्व को ही खतरा बन जाते हैं, तभी वे आवरण त्यागते हैं और उनके एसिड तत्व कोशिका को ही नष्ट कर देते हैं।
  • कि स्टेरोइड औषधियां लाईसोसोम्स की थेलियों को फटने से बचाते हैं। विषेले तत्वों (टॉक्सिन) से जब कोशिका का जीवन लड़खड़ाता है और लाइसोसोम् की थैली फटने को होती है तब स्टेरोइड्स कोशिका के लिए जीवन रक्षक साबित होते हैं। चिकित्सक को विषेले तत्व खतम करने का समय मिल जाता है। स्टेरोइड जीवन रक्षक साबित होते है।
    निर्बल को न सताइये जांकि मोटी हाय, मुई चाम की स्वांस सो लोह भष्म हो जाय।
    अपोप्टोसिस – प्रोग्राम्ड सेल डेथ – संथारा – कैंसर कोशिका में यमराज-सावित्री का द्वन्द्व
SUICIDAL BAG LYSOSOME-FACTS
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क्या आप जानते हैं –

  • कि जिस प्रकार जैन मुनि जीवन की सार्थकता और उपादेयता के चुकने का भान होने पर संथारा कर देह त्यागते हैं उसी प्रकार प्राणी शरीर में ‘संत’ कोशकाएं भी संथारा करती हैं। वे संथारा इस लिए करती हैं ताकि अन्य अपना सार्थक जीवन जी सकें।
  • कि भ्रूण के सृजन काल में जब अंगों का विकास हो रहा होता है तब चयनित कोशिकाओं का अंग में समायोजन, और शेष का संथारा कर विलुप्त होना एक सतत प्रक्रिया है। अंगों में समायोजित न हुई कोशिकाएं अपनी उपादेयता चुक जाने पर संथारा द्वारा अपना जीवन त्याग कर अवशोषित हो जाती हैं। हथेली में अलग अलग ऊंगलियां बनती हैं क्यों कि उनके बीच की कोशिकाएं संथारा कर विलुप्त हो जाती हैं।
  • कि रक्त की सभी कोशिकाएं – लाल, श्वेत व बिंबाणु (प्लेटलेट्स) – जन्म से ही निश्चित समयोपरांत आत्म हनन के लिए प्रोग्राम्ड होती हैं। लाल रक्त कोशिकाएं 120 दिन और श्वेत कोशिकाएं 7 से 10 दिन में अपना कार्यकाल समाप्त कर आत्महनन कर लेती हैं। इस सुनियोजित प्रोग्राम्ड आत्महनन को अपोप्टोसिस कहते हैं।
  • कि कोशिकाओं में एक आत्महनन जीन होता है जो एक जीन-घड़ी द्वारा सक्रिय किया जाता है। चयनित कोशिकाओं में जीन-धड़ी प्रारंभ से ही चालू होती है जो निर्धारित समय पर आत्महनन जीन को सक्रिय कर देती है।
  • कि कुछ कोशिकाओं में आत्महनन जीन को सक्रिय करने वाली जीन घड़ी बाहरी कोशिकाओं से संकेत पा कर भी सक्रिय होती है। वायरस या रोगणुओं से ग्रसित कोशिका की जीन घड़ी को रक्षक और जासूस कोशिकाएं सक्रिय कर कोशिका को विषाणुओं/रोगाणुओं सहित आत्म हनन को प्रेरित करती हैं।
  • कि कैंसर कोशिकाओं को आत्महनन को प्रवृत करने में विकिरण और कीमोंथेरेपी की मुख्य भूमिका होती है। तीव्र गति से विभाजित होती कैंसर कोशिका में आत्महनन जीन सुषुप्त होने से अमरत्व मिल जाता है, कैंसर उपचार आत्महनन जीन को वापस चैतन्य और सक्रिय कर देता है।
  • कि कैंसर उपचार में कैंसर कोशिका में कैंसर कारक अपोप्टोसिस जीन सुषुप्त करने और सक्रिय करने वाली प्रक्रियाओं में द्वन्द्व होता है ठीक वैसे ही जैसे यमराज और सावित्री में हुआ था। अपोप्टोसिस जीन सुषुप्त रहा तो अमरत्व और सक्रिय हुआ तो नश्वरता।
  • कि कोशिका स्वयं भी अपनी आंतरिक संरचना या सक्रियता के छिन्न भिन्न होने पर अपने आत्महनन जीन को सक्रिय कर सकती हैं। कोशिका में ऐसे ‘सोच-समझ-निर्णय’ की क्षमता होती है।
  • कि एक वयस्क में प्रति दिन 50-70 अरब कोशिकाएं अपोप्टोसिस द्वारा आत्महनन करती हैं। फिर भी शरीर बना रहता है कारण उतनी ही कोशिकाएं प्रति दिन नई निर्माण होती हैं।
  • कि अपोप्टासिस से आत्महनन और चोटग्रस्त (फिजिकल/केमिकल) कोशिका के मरने की प्रक्रिया सर्वथा भिन्न होती हैं। चोटिल कोशिका के चारों ओर रिएक्शन होता है, सूजन आती है, अपोप्टोसिस में कोशिका सिकुड़ सिमट कर अवशोषित हो जाती है।
    डॉ. श्रीगोपाल काबरा
    15, विजय नगर, डी-ब्लॉक, मालवीय नगर, जयपुर-302017 मोबाइलः 8003516198
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