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मुर्दा शहर में आई जान।

मुर्दा शहर में आई जान

कैसा? मुर्दा शहर है!
यहां अलग कुछ नहीं हो रहा।
कोई लाइफ नहीं। कोई चेंज नहीं।
कहने भर को लोकडाउन था । सब कुछ बदस्तूर चल रहा था । दिनभर टीवी पर नजर गड़ाए रहने के बावजूद शहर का कहीं नामोनिशान नहीं था।
समाचारों के नीचे चलने वाली स्ट्रिप तक जैसे इस शहर का नाम भूल गयी जबकि छोटे-छोटे कस्बों तक के नाम नेशनल चैनल पर आने लगे थे।
यह कोई कम मायूसी की बात नहीं थी। शहर की गौरवशाली परंपरा की सरासर बेइज्जती।
अब तक कोरोना नेगेटिव चल रहे मेरे शहर ने इस स्थिति से अपने आप को अपमानित महसूस किया। वरना ऐसा पता होता तो वह पहले ही पॉजिटिव हो जाता।
मेरे शहर की समृद्ध परंपरा रही है ।कहीं कुछ हो या नहीं हो। लेकिन यहां सब कुछ होता है।
वैसे यह शहर शुरू से ही बहुत पॉजिटिव है। यहां के लोगों में पॉजिटिविटी कूट-कूट कर भरी हुई है। जैसे ही लोकडाउन हुआ। शहर के भामाशाहो ने जी खोलकर लंगर खोल दिए। हजारों की संख्या में भीड़ जुटाकर उन्हें खाना खिलाना शुरू कर दिया ।खाना कोई साधारण नहीं बल्कि पकवान।
रोज बदलते क्रम में।
राशन किट तैयार कर घर-घर बांटना शुरू कर दिया। राशन किट उनको भी दी जिन्हें राशन किट कि नहीं सुरा किट की जरूरत थी । जो बेचारे सुरा विक्रेताओं से चोरी-छिपे राशन किट के बदले अपना गला तर करने को सुरा पव्वा ले रहे थे।
नर सेवा नारायण सेवा।
जब भी जिसको जैसी सेवा की जरूरत होती है वैसी सेवा करने में मेरा शहर हमेशा आगे रहता है ।
शहर का इतिहास बताता है । यह हर काम में आगे रहता आया है।
काम कोई अच्छा या बुरा नहीं होता। बस सोच पॉजिटिव होनी चाहिए। शहर की सोच हमेशा पॉजिटिव रही है। दंगों से लेकर हड़ताल तक। धारा 144 से लेकर कर्फ्यू लगने तक का रिकॉर्ड रहा है। किसी शहर में ये लगे या ना लगे लेकिन यहां जरूर लगे है । इतिहास इसका गवाह है।
‌ शहर का इतिहास इसीलिए वर्तमान शहर को धिक्कार रहा था। चुल्लू भर पानी में डूब मरो। चूड़ियां पहन लो। इतना भी नहीं कर सकते।
हमने इस शहर का नाम हमेशा ऊंचा ही रखा है।तुम डुबोने पर तुले हो।
यहां की समृद्ध परंपरा रही है। कहीं कुछ हो या नहीं हो लेकिन यहां सब कुछ होता है।
शर्म नहीं आती! कितने ही शहरों में पॉजिटिव आ गए और तुम नेगेटिव रह गए।अन्य शहरों में कर्फ्यू लग गया और तुम अब तक मूकदर्शक बन देखते रहे।
यह तुम्हारी ही नहीं शहर के पूर्वजों की भी तोहीन है। हमारी भी तोहीन है।
क्यों इस शहर के नाम पर कालिख पोत रहे हो?तोहीन और कालिख पोतने का नाम सुनकर ।
वह भी अपनों से। अब तक ठंडे पड़े शहर के खून में उबाल आ गया। वह धधकने लगा ।
वह सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है यह शहर । लेकिन इतना अपमान।
कदापि नहीं।
शहर ने भागदौड़ शुरू कर दी। कभी इधर कभी उधर। परवाह तो उसे पहले भी नहीं थी लेकिन अब उसने लोकडाउन की धज्जियां उड़ा दी। लोकडाउन उसके अपमान से ज्यादा थोड़े ही था।
आखिर भागदौड़ रंग लाई। शहर की अचानक फिज़ा बदल गई ।समाचार चैनलों पर बार-बार शहर का नाम आने लगा। गर्व से सीना चौड़ा हो गया। पॉजिटिव लोगों के संपर्क से शहर में भी पॉजिटिव होने का खाता खुल गया।
पढ़े -गुने लोग कोई वैसे ही नहीं कहते आए हैं कि जीवन में पॉजिटिव लोगों के संपर्क में रहोगे तो पॉजिटिविटी बढ़ेगी। नेगेटिव लोगों के साथ रहने पर नेगेटिविटी ही मिलेगी । सोशल मीडिया पर समाचार चैनलों के स्क्रीनशॉट इधर-उधर तैरने लगे।
शहर में कोरोना पॉजिटिव मिल गया । चलो अच्छा हुआ। शहर ने अपनी नाक कटने से बचा ली।
प्रदेश के इतने जिलों में कोरोना ने दस्तक दे दे और यह बचा रहे।
शेम शेम। एक तीर से दो शिकार हो गए। कोरोना पॉजिटिव आने से जो नाक कट रही थी वह कटने से बच गई । और कर्फ्यू लगने से पुरखों की इज्जत रह गई। शहर ने एक,दो ,तीन, चार,पांच। एक साथ पांच पॉजिटिव दिए।
सबके चेहरे खिल गए। शहर के पूर्वज अपने वंशजों पर गर्व करने लगे।
और दूसरे ही दिन ।
यह लो पांच, छह, सात और ये आठ.. ।
शहर ने पॉजिटिविटी का ग्राफ एक साथ बढ़ा दिया ।
अब वह अपने शौर्य पर सीना तान कर निकलता है।
उसके अंदाज से ऐसा मालूम होता है कि कोई कोरोना पॉजिटिव और मिल गया या मिलने वाला है।
शहर को देखकर अब लग रहा है कि वह अपने इतिहास को दोहरा रहा है।
इतिहास को उस पर गर्व है वह शहर की समृद्ध परंपरा को बदस्तूर निभा रहा है।
शहर का सीना चौड़ा हो गया । मेरा भी।

लेखक -हनुमान मुक्त
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