यह कविता एक मौन, निःस्वार्थ संगिनी की बात करती है — परछाई की, जो जीवन भर साथ चलती है, बिना शिकायत, बिना अपेक्षा। वो सिर्फ…
इस चित्र में झलकती है एक ऐसी औरत की कहानी, जो दिन भर अस्पताल की सफ़ाई करती है लेकिन असल में अपने जीवन की जद्दोजहद…
“डॉक्टर साहब, आपकी पढ़ाई अपनी जगह… हम तो इसे ‘नस जाना’ ही मानेंगे!” ग्रामीण चिकित्सा संवादों में हर लक्षण का एक लोकनाम है — ‘चक…
पुरस्कारों की चमक साहित्यकारों को अक्सर पितृसत्ता की टोपी पहना देती है। ये ‘गुप्त रोग’ बनकर छिपाया भी जाता है और पाया भी जाता है,…
Roses and Thorns – a satire bouquet straight from the OT (Operation Theatre) of an orthopedic doctor turned wordsmith. No enlightenment. No “6-pack abs” philosophy.…