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प्राइवेट अस्पतालों का एनकाउंटर

एक प्राइवेट अस्पताल को लालफीताशाही, नियम-कानून, टैक्स और सामाजिक अपेक्षाओं के बोझ से दबते हुए दर्शाया गया है, जबकि जनता निशुल्क सेवा की मांग करती नजर आ रही है।

प्राइवेट अस्पतालों का एनकाउंटर ??

अपने एक वीडियो में सद्गुरु ने जितने प्रभावशाली तरीके से प्राइवेट हॉस्पिटल्स पर लूट के आरोपों का जवाब दिया है उतना अच्छा जवाब शायद कोई प्राइवेट हॉस्पिटल का मालिक भी न दे पाए।वो प्रश्न पूछने वाली वकील साहिबा से कहते हैं ,”आपके समाज ने स्वयं इस खूबसूरत सेवाभावी प्रोफेशन को व्यवसाय यानि बिज़नेस बनाया है फिर आप इन अस्पतालों से मुफ्त सेवा की आशा कैसे कर सकते हैं?”
सद्गुरु ने मानो हमारे दिल की बात कह दी।
लेकिन सद्गुरु बहुत सी बातें नही बता पाए जो उस भोली भाली जनता को जानना चाहिए जो डॉक्टर्स से निश्वार्थ ,निष्काम कर्म की अपेक्षा रखती है।
प्यारे हिंदुस्तानियों ,
प्राइवेट अस्पताल तो उसी दिन बिज़नेस बन गए थे जिस दिन डॉक्टर्स और अस्पतालों पर कॉन्सुमेर प्रोटेक्शन एक्ट लगा कर आपने उन्हें मोबाइल,फ्रिज,टीवी बेचने वाले व्यवसायियों की श्रेणी में ला खड़ा किया था। क्या किसी वकील पर आज तक इस लिए जुर्माना लगा कि उसने केस में लापरवाही की ?क्या कभी किसी टीचर ,स्कूल या शुद्ध व्यवसाय की दृष्टि से खोले गए किसी कोचिंग सेंटर पर इसलिए जुर्माना लगा कि उसकी लापरवाही से छात्र परीक्षा में फेल हुआ।लेकिन देश के डॉक्टर्स और हॉस्पिटल्स को आपकी सरकारों ने 30 साल पहले उपभोक्ता संरक्षण कानून की श्रेणी में रखकर उनके एनकाउंटर की शुरुआत कर दी थी।
आपका पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड अस्पतालों को उद्योगों की सबसे खतरनाक “रेड इंडस्ट्री” की श्रेणी मे रखता है,और पर्यावरण नियंत्रण के सबसे कड़े कानून उन पर लागू होते हैं। कचरे की भी बार कोडिंग करने को कहता है आपका पर्यावरण कानून।
आप शराब की बोतल बनाने की फैक्ट्री लगाओ तो सरकार msme मानकर आपको सस्ता लोन देगी ,सब्सिडी देगी ,सस्ती बिजली देगी लेकिन अस्पताल को महंगी बिजली मिलती है शुद्ध व्यावसायिक दरों पर।
इस देश मे शायद ही कोई दूसरा व्यवसाय या बिज़नेस हो जिस पर अस्पतालों से ज्यादा नियम कानून लागू होते हों और हर नियम कानून की आड में अस्पतालों का जमकर शोषण होता है।
वो सरकारें जिनके खुद के अस्पताल दुर्दशा, आवारा पशुओं के आतंक ,गंदगी और अव्यवस्था के लिए विश्व भर में कुख्यात हैं , प्राइवेट अस्पतालों से क्वालिटी के nabh सर्टिफिकेट मांगती हैं।
इस देश मे आपको हर गली नुक्कड़ पर एक झोलाछाप नीम हकीम मिल जाएगा ,जिन्हें रोकने के लिए सशक्त कानून भी हैं लेकिन फिर भी इन्हें एक नया क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट चाहिए। एक ऐसा एक्ट जिसके दायरे से सरकारी अस्पतालों को बाहर रख कर प्राइवेट अस्पतालों पर नकेल कसी जा सके।
हमारी अदालतें जहां अपराधियों की कंवेक्शन रेट 50 प्रतिशत से भी कम है, जहाँ प्रार्थी की पीढियां गुज़र जाती हैं पर न्याय नही मिलता ऐसी अदालतें डॉक्टर्स से सौ प्रतिशत सही, सटीक और त्वरित इलाज़ की अपेक्षा रखती हैं। इलाज़ में ज़रा सी चूक या देरी हो तो लाखों के जुर्माने लगा कर हर दिन उनका एनकाउंटर किया जाता है।
भोली भाली जनता को तो अमेरिका जैसा इलाज़ चाहिए ,वो भी मुफ्त।उसके सामने फिर चाहे विकास दुबे का एनकाउंटर हो या प्राइवेट अस्पतालों का ,वो तो ताली ही बजाएगी।उसकी नज़र में दोनों में कोई फर्क नहीं, भोली भाली है ना!

-डॉ राज शेखर यादव
फिजिशियन एंड ब्लॉगर

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