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रिश्वत नहीं ये सुविधा शुल्क है -व्यंग रचना

रिश्वत नहीं ये सुविधा शुल्क है -व्यंग रचना

भगवत पुराण में ऐसे कई अध्याय हैं जो मौखिक रूप से ही पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानांतरित हुए हैं, उन्हें गीता के 18 अध्यायों में जोड़ने से जानबूझकर वंचित रखा गया है, क्योंकि ये मृत्युलोक में आगे कलियुग के राक्षसी रूप की भयानकता के अंश स्वरूप पृथ्वी पर अवतार लेंगे। इसलिए भगवान कृष्ण ने पहले ही अर्जुन को इनके बारे में सचेत कर दिया था। ऐसा ही एक अध्याय है रिश्वत का। रिश्वत, जिसने कलियुग के अति अहंकारी युग में अपनी इज्जत में थोड़ा सा इजाफा करने के लिए सुविधा शुल्क का एक नया नाम धारण करवा लिया है, और चूंकि रिश्वत लेने वाला और देने वाला दोनों को ही अपनी सुविधा के लिए इस नए नाम को रखने में कोई गुरेज़ नहीं था, इसलिए आपसी समझौते और बिना कोई रिश्वत के लेन-देन के ये शब्द आत्मसात कर लिया गया । जैसे जीवन के साथ मृत्यु निश्चित है, वैसे ही रिश्वत लेने के साथ रिश्वत देने का संबंध है। जब तक कोई देने वाला नहीं होगा, तब तक कोई लेने वाला नहीं होगा। इसलिए सरकार ने रिश्वत लेना और देना दोनों को ही दंडनीय माना है। लेकिन रिश्वत का जन्म किससे हुआ? इस धन रूपी माया ने ही तो जन्म दिया। रिश्वत तो पुराने राजा-महाराजाओं के समय में भी थी, पहले दो राज्यों के बीच संधि होती थी तो विजेता राजा हमेशा पराजित राजा से अपनी धन-संपदा के साथ उसकी बहन या पुत्री का विवाह करके उसे अभयदान देता था । मुगलई राजाओं के यहाँ इसी लेन-देन से कई राजाओं ने अपना अस्तित्व बचाया। रिश्वत सिर्फ धन की ही नहीं, आपकी वाणी से भी हो सकती है और इस वाणी की रिश्वत ने चाटुकारिता और चापलूसी को जन्म दिया। जैसे रिश्वत का धन जब हाथ में आता है तो मनुष्य की आत्मा अंदर तक गदगद हो जाती है, वैसे ही जब आदमी अपनी प्रशंसा सुनता है, कानों में मधुर ये वाक्य उसकी आत्मा को उतनी ही तृप्ति देते हैं। रिश्वत देना या लेना दोनों ही मजबूरी का नाम महात्मा गांधी की तरह संसार में व्याप्त हो गयी है । अब हम भी तो आलसी हो गए ना, कौन दफ्तरों के चक्कर काटे, लंबी लाइन में लगे, फाइलों के ढेर में अपनी फाइल को ढूँढने में पसीने आ जाए, हमें भी अपनी कुर्सी पर धंसे हुए सारे काम अपने हाथ में चाहिए, हम भी शॉर्ट कट चाहते हैं और इसी सब ने रिश्वत का जन्म दिया। कहते हैं न आवश्यकता आविष्कार की जननी है। रिश्वत लेने वाला भी क्या करे, महंगाई आसमान छू रही है, उसकी शादी भी उसी शर्त में हुई है कि जिस महकमे में नौकरी करता है वो तो बड़ी उपर की कमाई वाला महकमा है। पत्नी ने पहले ही उपर की कमाई से घर भरने के लिए घर के कोने-दरवाजे, चौखाने, खाली कर लिए हैं, महत्वाकांक्षाओं की लंबी लिस्ट तैयार है, पड़ोसी के बंगले से ऊँचा बंगला, फ्लैट एडवांस बुक कर लिया, पड़ोस की गाड़ी से महंगी गाड़ी की टेस्ट ड्राइव कर ली, बस इंतज़ार है कब घर में पहले उपरी कमाई आए। उपरी कमाई के आते ही उसका 10 प्रतिशत मंदिर में चढ़ावा चढ़ाया जाएगा , भगवान भी इस रिश्वत की गिरफ्त में ऐसे फंस गए हैं कि निगलते नहीं बनबने , उगलते नहीं बने। बड़े-बड़े मंदिरों की हुंडी में काली कमाई के हज़ारों करोड़ों तो गुप्त दान में आ रहे हैं, देने वाला इतना लो प्रोफाइल कि वो दान देता है लेकिन बखान नहीं करता सिर्फ उसे पता है या भगवान को पता है। अब ये काली कमाई ही तो है जिसे आदमी कभी भी बखान नहीं करता अपने नाम प्रॉपर्टी नहीं खरीदता, रिश्तेदारों के नाम सब कुछ, अपने लिए कुछ भी नहीं, हमारे शहर में तो कई प्रॉपर्टी डीलर इस काली कमाई की आपूर्ति से ही फल-फूल रहे हैं, देने वाला कोई हिसाब ही नहीं रखता, बेचारा काली कमाई ढ़ब लगाते लगाते पता नहीं कब एक दिन कालजयी हो जाता है और पीछे उसके घरवाले भी उसकोका नहीं सुख भोग पाते,क्यों की कोई लेखा जोखा की डायरी कही पकड़ में ना आ जाए । काली कमाई वाला निस्वार्थ भाव से अपने लिए नहीं अपने आगे वाली पीढ़ियों के लिए इंतज़ाम करता है।

रिश्वतखोरी नहीं तो फिर ये पार्टी फंड कहाँ से आए, इस रिश्वतखोरी के काले धन में नहीं चाहते हुए भी हाथ काले करने पड़ेंगे| आप निकल ही नहीं सकते ,नीचे से लेकर ऊपर तक सभी का कमीशन फिक्स है, जितनी बड़ी मछली उसका उतना ही हिस्सा, तभी तो पार्टिया अपने मनिफेस्तो में चिल्ला चिल्ला कर कह ररही हैं ,जिसका जितना बड़ा मुँह उसे उतना ही हिस्सा मिलना चाहिए, बड़े मुँह छोटी बात होगी लेकिन कहना जरूरी है रिश्वत तो फिर भी इस भ्रष्टाचार का सबसे निचले पायदान का सिपाही है, अब घोटाले स्कैम देखिए ना, वहां तो सिर्फ लेना ही है ,सिर्फ लेने का काम ,देने का का कोई काम नहीं ,वो भी करोड़ों में !छोटे मोटे स्कैम का नाम तो न्यूज़ पेपर भी लेने वाले नहीं, हजारों करोड़ों में, और फिर आप उस वि आई पि श्रेणी आ जायेंगे में जहाँ आपको कोई पूछने वाला तो होगा बरना न तो CBI और न ED आपके चक्कर लगाएगी, न आपको तड़ी पार जाने का मौका मिलेगा ,विदेश में बसने का मौका मिलेगा, अरे कुछ घोटाला करने के लिए पहले आप ने जो रिश्वत का खेला खेला ना, उसके बदलत आप ने ये पदवी पाई है तो निश्चित ही हक तो बनता है ना रिटर्न ऑफ इन्वेस्टमेंट में एक के 100 करने का। रिश्वत लेने वाला तो बेचारा हमेशा लो प्रोफाइल में रहता है, उसे तो इस रिश्वात की कमाई के हाथ लगाने से भी डर लगता है, इतना भोला की उपरी कमी के नोटों को गिनता भी नहीं ,सीधा ही अपनी जेब में रखवाता है,या फाइल के अन्दर डलवाता है , कहीं कोई पकड़ न ले ! एक डर जो हमेशा उसे रात को सोने नहीं देता, BP शुगर बढ़ जाते हैं, इधर घरवाली हर महीने का हिसाब लगा कर अलग से प्राण संकट में डाल देती है कि -इस बार क्या हुआ ? बहुत कम रही उपर की कमाई, वो बंगले की EMI भी चुकानी है, तुम्हारे नौकरी के पैसे तो घर में आते ही कहाँ हैं, Income Tax वाले पहले ही डकार जाते हैं। इधर बेचारा खुद लेने से डरता है, एजेंट नियुक्त करता है तो वो भी उसमें से आधी रकम भी इसके हाथ में नहीं आने देता, उपर से एजेंट पकड़ में आ गया तो नाम उगल देगा, अब रिश्वत का खेल भी सेफ नहीं रहा साहब , न ये रंगे हाथों पकड़ने वाले घर ऑफिस के चक्कर लगाते रहते हैं, लिफ्ट भी सेफ नहीं रही वहाँ भी छदम भेष में घूमे रहते हैं,बेचारा ले तो ले कहाँ ।

वैसे देखा जाए तो सरकार को रिश्वत को एक स्वीकृत मुद्रा विनिमय का साधन कर देना चाहिए सरकारी नौकरियों में वेतन की जगह सिर्फ रिश्वत लेन देन। फिर कॉम्पिटिशन होगा, डिपार्टमेंट में जो सबसे ज्यादा रिश्वत ले सकता है या दे सकता है बस उसी अफसर और महकमे को पृरस्कृत किया जाए , जब रिश्वत की डिमांड और सप्लाई बैलेंस हो जायेगी तो अपने आप अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जायेगी। अभी रिश्वत लेने वाले ज्यादा और देने वाले कम है इसलिए रिश्वत का खेल ज्यादा फल फूल नहीं रहा। खैर राजनीति के दाँव-पेंच की तरह रिश्वत ही अपने दाँव-पेंच खूब चला रही है ,हर महकमे में घुसी है, कहीं नेताओं की खरीद फरोख्त के नाम पर, कहीं टेंडर पास कराने के लिए, कहीं ठेकेदारों को बिल पास कराने, कहीं मकान की रजिस्ट्री करवाने, बिलों पर आई पेनल्टी कम करवाने के नाम पर, हर जगह रिश्वत का डंका बज रहा है, भ्रष्टाचार का पुरजोर सिपाही रिश्वत ,भ्रष्टाचार की नींव को मजबूती करने के लिए इसकी नींव में रिश्वत की ईंट लगा रहा है इतनी प्रखर मजबूत दीवार की कोई व्यंग की चोट भला इसे कैसे तोड़ सकती है, फिर भी प्रयास जारी है।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

(लेखक, व्यंग्यकार, चिकित्सक)

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