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धरती मां की पुकार: पर्यावरण संरक्षण पर प्रेरणादायक बाल कविता

एक रंग-बिरंगी बाल चित्रकथा शैली की चित्र में बच्चे पौधे लगा रहे हैं, पानी बचा रहे हैं, और कूड़ेदान में कचरा डाल रहे हैं। पीछे नीला आसमान, हरी धरती और चमकती धूप है — प्रकृति की गोद में बच्चों की पर्यावरण संरक्षण की सीख।

धरती हमारे जीवन की आधारशिला है — नीला अम्बर, हरी ज़मीन, और प्रकृति के अनमोल रंगों से सजी यह दुनिया हमें जीवन, शांति और सुख देती है। लेकिन बदलते समय के साथ मानव गतिविधियों ने इस संतुलन को खतरे में डाल दिया है। प्रस्तुत बाल कविता “धरती मां की पुकार” नन्हे मनों की जुबानी एक सशक्त संदेश देती है कि कैसे छोटी-छोटी आदतों के माध्यम से हम अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं। इसमें स्वच्छता, जल संरक्षण, पौधारोपण और प्रदूषण नियंत्रण जैसे विषयों को सरल व सुंदर भाषा में पिरोया गया है। यह कविता बच्चों को न केवल जागरूक बनाती है, बल्कि उन्हें प्रकृति प्रेमी भी बनाती है।

धरती मां की पुकार

नीला अम्बर, हरी ज़मीन,

यही तो है दुनिया रंगीन।

फूल, पेड़ और बहती नदियाँ,

इनसे ही तो है खुशियाँ पक्की सच्चियाँ।

पंछी गाएँ, तितली नाचे,

बोलें – “हमसे मत तुम कचरा फेंको आके!”

पेड़ लगाओ, जल बचाओ,

धरती मां को हंसाओ।

धुआँ नहीं, हवा को साफ़ रखो,

जहाँ रहो, वहां पेड़-पौधे रखो।

बिजली-पानी व्यर्थ न जाए,

बचपन से हम सीख अपनाएं।

धरती हमारी प्यारी है,

सबसे सुंदर सवारी है।

आओ मिलकर इसे बचाएं,

हरा-भरा संसार बनाएँ।

डॉ. मुल्ला आदम अली,

तिरुपति, आंध्र प्रदेश

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