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मैं तेरी ही कब हो गई-कविता रचना

“एक सoft रोमांटिक दृश्य जिसमें एक महिला प्रेममय प्रकाश में घुलती हुई अपने प्रिय की चमकती परछाई में समा रही है, चारों ओर हल्की पंखुड़ियों और कोमल रोशनी का वातावरण।”

मैं तेरी ही कब हो गई, ये मुझको ही पता नहीं ।
मेरा दिल कब से तेरा है ,ये मुझको ही पता नहीं ।

दिल में बस तू ही तू है, ये मुझको अब पता चला ,
दिल मेरा बस तेरा है ,ये कैसा तेरा असर डला ,
शुद् बुद खो चली हूं मैं ,ये मुझको ही पता नहीं ।

तेरा जादू मुझमें यूं चला, मैं तुझमें ही खो गई ,
मुझे न जाने कब क्या हुआ,मैं तेरी ही हो गई ,
मुझको प्यार हुआ ऐसा ,खबर मुझको हुई नहीं ।

अब तो मैं तेरी ही बनकर आई परछाई हूं,
खुद की देह छोड़कर ,तुझमें ही समाई हूं,
कब तुझमें समा गई,मुझको ये पता ही नहीं ।

Rachnakaar -Vidya Pkhariyal

विद्या दुबे स्वरचित रचना ✍️
बैकुंठपुर कोरिया
छत्तीसगढ़

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