आजाद गजल
देश पर एहसान उनके
देखो कितना मोद में है
बच्चा मां की गोद में है!
निर्भय निर्मल है सहज
व्यक्ति सच के ओज में है!
मानव हुआ महा उद्दण्ड
प्रकृति प्रचंड विनोद में है!
सनातन से जो प्रमाणित
विज्ञान उन पर शोध में है!
फर्ज निभाता,प्यार बांटता
जिंदगी के बोध में है!
बहुत दिनों से घने बादल
अवश्य सूरज क्रोध में है!
कटते जंगल देख-देख
पत्ता-पत्ता प्रतिरोध में है!
सुनकर अपनी प्रशंसा
अपनी कमी की खोज में है!
हंसी खुशी उत्साह उमंग
सारे खजाने सोच में हैं!
जब से जिम्मेदारी छोड़ी
मन बड़े भारी बोझ में है!
मेहनत के पसीने में जो
वह सुगंध कहां सरोज में है!
हार-जीत से ऊपर उठकर
खरा खिलाड़ी मौज में है!
अफवाहों के बाजार गरम
ठंडी हवाएं आक्रोश में हैं!
साजिशों की हालत खस्ता
हिम्मत हौसले जोश में हैं!
राजनीति का रूप निराला
अपने मतलब के होश में है!
धरती की धधकती धड़कन
अन्याय के विरोध में है!
तन के सारे घाव कुंठित
दर्द दिल की खरोंच में है!
मुखर हो रहा देशद्रोह
देशभक्ति संकोच में है!
देश पर एहसान उनके
जिनके सपूत फौज में हैं!
-प्रहलाद श्रीमाली