शहर की लेखिका श्रीमती बिंदि ढहया तो आज अड़ ही गयी थी। मै भी एक साहित्यिक मंच बनाऊंगी। वाट्सेप पर एड़मिन बनूंगी फेसबुकपेज बनाऊंगी–” बिंदिया साहित्यिक पेज” लाईव कार्यक्रम प्रारम्भ करना है मुझे भी। वरिष्ठ साहित्यकार तभी तो कहलाऊंगी।बेचारे ऑफीसर पति और इंजिनियर बेटा परेशान।
“ओह मम्मी इनफ”– बेटा माँ के रोज रोज काव्य गोष्ठी में जाने से पिज्जा-बर्गर खा खाकर के वैसे ही दुखी था।
“ये क्या नया शगूफा सूझा मोहतरमा तुम्हे?लेखिका बनना था बन गयी।कविता , कहानी लिख ली, छप भी गयी,सम्मानित हो गयी अब ये कौनसी अड़ है।”पतिदेव की खीज किसी पड़ोसी दुश्मन देश जैसी थी।
“तुम तो ब्याव में फूफा या जीजा अड़ते हैं वैसे अड़ जाती हो।बस बहुत हुआ।”
“अरे ब्याव बाद इन फूफा- जीजाओं को कोई नहीं पूछता वैसे ही सबका मतलब निकल जाएगा तो थोड़े दिन बाद तुम्हारे पेज और तुमको भी कोई नहीं पूछेगा।”
परन्तु बिंदियाजी कहां मानने वाली थी।
अब अड़ने का क्या है?आजकल जिसको देखो वही अड़ जाता है।
पाकिस्तान ने भारत से अडने की कोशिश की, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर करके ऐसी पटखनी दी कि पाकिस्तान सारी अड भूलकर अब भागता फिर रहा है, दूसरे देशों से सहायता की भीख मांग रहा है।
ओ पडोसी! अगर भारत अड लिया ना तो तेरा नामों निशां नहीं मिलेगा। ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा। सुधर जा नी तो खैर नहीं है हो।
याद है ऐसे ही जब चीन अड़ा भारत की जमीन पर तो भारत और ज्यादा अड़ लिया था। ऐसा अड़ा कि चीन की हर छोटी बड़ी वस्तुओं का बहिष्कार कर दिया। बापड़ा चीन अब खुद ही टिक टाॅक करता फिर रहा है।सारी अकल ठिकाने आ गयी। जब भारत – चीन कांड़ चल ही रहा था कि गली में दो फुरसती युवा अड़ लिये आपस मे।गाली – गलौज तक पहुंच गये। एक ने दूसरे को कह दिया– साला चीनी चपटा कहीं का।
दूसरे ने एक रेपट धर दिया–“कुछ भी गाली दे दे भाई कमीना- कुत्ता भी कह ले, लेकिन ये चीनी मत कह मुझको। अड लू़ंगा नी तो कि मैं हो।
( अब पता नहीं कुत्ते जैसे वफादार जानवर की ही गाली क्यों देवे हैं लोग?जमाना ही ऐसा है, जो वफादार है, ईमानदार है वो किसी गाली से कम थोड़े ही है।)
वैसे कैसे भूला जा सकता है कि कोरोना भी तो अड़ लिया था इस भारत देश में। आया था तो जाने का नाम ही नहीं ले रहा था। कितने घंटे बजाये,थाली पीटी, शंख फूंके और तो और दिवाली भी मना ड़ाली। दीये-पटाखे सब छोड़ लिये।
ये कोरोना भी कम नी था– सड़कों पर परिवार सहित नंगे पैर चलते भूखे नंगों पर नहीं अड़ा, इसने भी अपना स्टेंड़र्ड़ बताया। अड़ा भी तो बीग बी सेलिब्रिटी से।
लो कल्लो बात! इसको भी अड़ बतानी थी, मेरा मतलब फेमस होना था। ब्रेकिंग न्यूज बनना था। टी वी पर, फिल्म इंड़स्ट्री पर छाना था।
” आज कोरोना बिग बी के बंगले पर।सभी उसके अड़ में मतलब चपेट में।”
बेचारे गरीब मजदूरों पर अड़ता तो कौन पूछता? समाचार पत्र के किसी छोटे से कोने में पड़ा रहता।मुखपृष्ठ की सुरखी थोड़े ही न बनता।
अरे हां तो मिसेज बिंदिया ने बेटे को धमकाया।बना मेरा एफ बी पेज! नहीं तो मैं अड़ ली तो बेटा तेरी शादी सुंदर लड़की से नहीं होने दूंगी, कोई काली-कलूटी ले आऊंगी।( काले रंग में क्या कमी है,यह तो एक महिला द्वारा दूसरे का अपमान है, एक महिला की दूसरी महिला से जलन है।)
अब जलने का क्या है? ये भी अड़ है। साहित्यिक संस्थाओं में तो लेखक, साहित्यकार अड़े पड़े रहते हैं आपस में।
एक संग्रह निकला उसमें नाम नहीं है अड़ लिये।
काव्यगोष्ठी हुई उसमें आमंत्रित नहीं किया अड़ लिये।
समाचार पत्र में न्यूज छपी, तुम्हारा फोटो आया, हमारा तुमने दिया नहीं फिर अड़ लिये।
हमको ग्रुप में बधाई नहीं दी फिर अड़ लिये।
प्रयागराज कुंभ में स्नान करने पर श्रद्धालु ऐसे अडे कि करोड़ों ने अपने पाप धो लिए।
पूरे विश्व को भारत की कुंभ व्यवस्था का लोहा मानना पडा।
अब देश क्या पूरा विश्व अड़ने में लगा है। भारत ने तो पहले ही आतंकवाद को जड से उठाने की अड ले ली है।
रशिया अड रहा है, उधर यूक्रेन भी नी मान रहा है।
इधर ईराक अड रहा, उधर ईरान।
इस अड़ा अड़ी में कहीं महायुद्ध ना हो जाये। नहीं तो ये जिंदगी तो ना मिलेगी दोबारा।
इन सबसे बेपरवाह मिसेज बिंदिया बड़ी सी लाल टिकी लगाये , लिपस्टीक पावड़र थेपकर , सुंदर परिधान में एड़मिन बनकर लाईव कार्यक्रम देने पर अड़ी ( जुटी) हुई है।
परन्तु वह कोई हंसी की पात्र नहीं है, अब लोग तो अच्छा कार्य करो या मत करो सबमें अपनी टांग अडाते (मीनमेख निकाल ही देते) है। नारी पर वैसे भी हंसना आसान है। परन्तु बिंदिया जी तो कृत संकल्पित है,एक अड( जुनून) है उनकी भी।
अनेक सखियों को इकट्ठा कर चुकी है।
महिला सशक्तिकरण का बिगुल बजा चुकी है।
अपना आसमान, अपनी उडान– का नारा गुंजायमान है।
कोई कितने ही गाॅसिप करे, हंसी उडाये या मनोबल कम करने की कोशिश करे परन्तु मिसेज बिंदिया तो नहीं मानने वाली, अब वो नई क्रांति की राह पर निकल चुकी है, शहर की महिलाओं को अपनी पहचान बनाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। महिला मंच से सबको जोड रही है, उन्हें खुद के लिए भी जीना सीखा रही है।
साहित्य में ही क्यों अनेक बिंदिया हैं, जो समाज के हर क्षेत्र में अपनी अड यानि योग्यता साबित कर रही है, मर्दों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है, मेहनत लगन से, अपने साहस और हौंसले से
तो
अड़ी रहो, अड़ी रहो,,,, सखियों—
क्योंकि ये जिंदगी ना मिलेगी दोबारा—–
सुषमा व्यास ‘राजनिधि’
इंदौर, मध्यप्रदेश

सुषमा व्यास’राजनिधि’
*लेखिका संग सुधि पाठक
एम ए हिन्दी साहित्य
सदस्य —
इंदौर लेखिका संघ
क्षितिज साहित्य मंच
विश्व मैत्री मंच भोपाल
उपाध्यक्ष — विचार प्रवाह साहित्य मंच इंदौर