कामयाबी के पदचिन्ह-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 21, 2025 व्यंग रचनाएं 0

हर कोई अपने पदचिन्ह छोड़ जाना चाहता है, लेकिन अब ये निशान कदमों से नहीं, जूतों से पहचाने जाते हैं। महापुरुषों के घिसे जूतों में वैचारिक उभार चिपका दिए गए हैं, ताकि गहरे पदचिन्ह बन सकें। नेता, जनता, डॉक्टर और यहां तक कि श्रीमती जी तक—सब अपने-अपने क्षेत्र में फुटप्रिंट छोड़ने की होड़ में हैं। पर दिशा रहित कदमों से क्या पदचिन्ह बनेंगे?

Smiles Amid Thorns — Cherished Memories of ‘Van Vihar’

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 20, 2025 News and Events 0

Lions Club Sarthak organized a joyful Van Vihar picnic at Seeta Mata Temple, Sawai Madhopur, during the monsoon season. Over 50 members with families joined in a day of spiritual visits, natural waterfalls, fun, food, and fellowship — creating cherished memories and strengthening bonds among new and old members alike.

खुदा ही खुदा है-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 20, 2025 व्यंग रचनाएं 2

गड्डापुर शहर में विकास की परिभाषा गड्ढों से तय होती है। यहाँ खुदाई केवल निर्माण कार्य नहीं, आस्था, राजनीति और प्रशासन की साझा विरासत है। गड्ढे भरने पर जनता चिंतित हो उठती है—जैसे विकास रूठ गया हो। नेता इन्हीं गड्ढों के सहारे वोट पाते हैं, और नगरवासी गड्ढों को अपना ‘खुदा’ मान लेते हैं। गड्ढे ही यहाँ पहचान हैं, परंपरा हैं—ट्रेडमार्क हैं।

स्मृतियों की छाँव में माँ-संस्मरण

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 19, 2025 संस्मरण 1

ChatGPT said: "स्मृतियों की छाँव में माँ" एक फेसबुक पोस्ट ने माँ की ममता से भरे बचपन की स्मृतियाँ फिर से जगा दीं। वो सुबह-सुबह चक्की पीसते हुए गाए भजन, वो लय में बहती चक्की की आवाज़, और हम बच्चों का आँखें मूंदे सुनते रहना—सब कुछ जैसे फिर जीवित हो उठा।

आश्वासन की खेती-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0

लोकतंत्र आश्वासनों पर टिका है, जहाँ हर पार्टी का घोषणा-पत्र वादों का कठपुतली शो होता है। जनता वोट रूपी टिकट से यह खेल देखती है, अपनी गरीबी और भुखमरी के बावजूद। नेतागण पांच साल में एक बार उन्हें खास महसूस कराते हैं, जिससे सरकारें बनती हैं। आश्वासन बाहर से मिलें या अंदर से, यही सरकार के गठन का आधार है। जनता भी आश्वासन की घुट्टी चाहती है, चाहे नेताओं से मिले या बाबाओं से, क्योंकि "अच्छे दिन" का यही आश्वासन है।

The Bachelor Son, the Miserable Father

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 17, 2025 English-Write Ups 0

In this satirical slice of clinic life, a doctor recounts the visit of an old acquaintance who barges in unannounced—not for treatment, but for tea, gossip, and emotional unloading. When asked casually about his son's marriage, the conversation spirals into irony. The man, a staunch traditionalist who once led community match-making and frowned upon ‘compromised’ unions, now pleads for any bride for his 35-year-old son—divorcee or widow included. The doctor reflects silently on the cruel poetry of life, as the man, without mentioning any ailment, exits the clinic leaving behind nothing but tea stains and truth bombs.

किराएदार की व्यथा: एक हास्य-व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 16, 2025 Blogs 0

इस रचना में किराएदार की ज़िंदगी की उन अनकही व्यथाओं को हास्य और व्यंग्य के लहज़े में उजागर किया गया है, जिन्हें हम सभी कभी न कभी भुगत चुके हैं। मकान मालिक की एक्स-रे दृष्टि, दूध की बाध्यता, रद्दी की एफडी और ‘बेटे समान’ किराएदार बनने की त्रासदी — सबकुछ इतने रोचक ढंग से बुना गया है कि हँसी के साथ एक टीस भी उभरती है।

क्रौंच पक्षी और वाल्मीकि: संवेदना से जन्मा साहित्य

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 16, 2025 हिंदी लेख 2

महर्षि वाल्मीकि और क्रौंच पक्षी का ऐतिहासिक प्रसंग संस्कृत साहित्य में भावनात्मक संवेदना का महत्व कालिदास की काव्य कृतियों का मूल्य और समकालीन साहित्य साहित्य का उद्देश्य और संवेदनशीलता

बरसात की बूंदे -कविता-रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 15, 2025 हिंदी कविता 0

बारिश की धीमी बूँदें जैसे प्रेम पत्र हों, जो धरती पर उतरते ही एक गीत बन जाएं। डॉ. मुकेश असीमित की कविता "बरसात की बूंदे" न केवल प्रकृति की कोमलता को दर्शाती है, बल्कि उसमें छिपे प्रेम, आत्मिक जुड़ाव और आशाओं को भी खूबसूरती से रचती है।

बाढ़ में डूबकर भी कैसे तरें-हास्य व्यंग्य रचना

डॉ मुकेश 'असीमित' Jul 15, 2025 व्यंग रचनाएं 6

बाढ़ आई नहीं कि सरकारी महकमें ‘आपदा प्रबंधन’ में ऐसे सक्रिय हो गए जैसे ‘मनौती’ पूरी हो गई हो। नदी उफनी नहीं कि पोस्टर लग गए, हेलिकॉप्टर उड़ गए, और राहत की थैलियाँ गिरने लगीं। मगरमच्छ तक घरों में घुस आए और मंत्रीजी बोले—“हर घर नल-जल योजना अब पूरी हो चुकी है।” प्रेस कांफ्रेंस में ठंडा पिलाकर सवाल बंद करवाना ही शायद सरकार का असली राहत प्रबंधन है।