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Author: डॉ मुकेश ‘असीमित’

लेखक का नाम: डॉ. मुकेश गर्ग निवास स्थान: गंगापुर सिटी, राजस्थान पिन कोड -३२२२०१ मेल आई डी -thefocusunlimited€@gmail.com पेशा: अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ लेखन रुचि: कविताएं, संस्मरण, व्यंग्य और हास्य रचनाएं प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से ) काव्य कुम्भ (साझा संकलन ) नीलम पब्लिकेशन से  काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन से  अंग्रेजी भाषा में-रोजेज एंड थोर्न्स -(एक व्यंग्य  संग्रह ) नोशन प्रेस से  –गिरने में क्या हर्ज है   -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह ) भावना प्रकाशन से  प्रकाशनाधीन -व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन )  किताबगंज   प्रकाशन  से  देश विदेश के जाने माने दैनिकी,साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित  सम्मान एवं पुरस्कार -स्टेट आई एम ए द्वारा प्रेसिडेंशियल एप्रिसिएशन  अवार्ड  ”
तारों भरे आकाश में OM की तरंगें फैलती हुईं; सात चमकते सुर नक्षत्रों की तरह तैर रहे हैं; एक ध्यानमग्न उद्गाता यज्ञाग्नि के पास गा रहा है; नदी संगीत की पाँच रेखाओं में बदलती है; मंदिर की घंटियाँ तरंगाकार प्रकाश बनकर वातावरण में घुलती हैं—समग्र दृश्य में रहस्यमय, सौम्य, और आध्यात्मिक आभा।

सामवेद—नाद ब्रह्म, ध्वनि से समाधि तक

सामवेद हमें सिखाता है कि शब्द तभी पूर्ण होते हैं जब वे सुर और लय में ढलकर कंपन बनें—वही कंपन मन को विन्यस्त करता है,…

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A crowded train labeled **“Delhi Express”** overflowing with politicians, authors, and artists—all carrying suitcases marked *Ticket, Award, Protest, Funding*. Some are climbing the roof, others hanging from the windows. In the sky above, Delhi is drawn as a giant shining washing machine, sucking them in and washing away their stains. On the ground, common people are left behind, holding empty plates and waving. A signboard reads *“Delhi Returns Bazaar – भाव दोगुना”*. The mood is humorous, exaggerated, and satirical like a political cartoon.

चलो बुलावा आया है-व्यंग्य रचना

“चलो बुलावा आया है… दिल्ली ने बुलाया है। नेता, लेखक, कलाकार—सब दिल्ली की ओर ताक रहे हैं। दिल्ली एक वॉशिंग मशीन है, जहां दाग तक…

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A plump politician with a round glowing face like the moon (Chandmal) stands on a rooftop under the night sky, staring anxiously at the real moon. Below, the street is dark except for posters of different "mini-moons" (other candidates) all with smiling faces, orbiting around a giant throne labeled *आलाकमान*. A worried rival (Cheedilal) is shown holding a net trying to catch the moonlight.

गली में आज चाँद निकला-व्यंग्य रचना

“गली में आज चाँद निकला… पर यह कोई आसमान वाला चाँद नहीं, बल्कि टिकट की दौड़ में फँसा हुआ नेता चांदमल है। चाँदनी बिखेरने का…

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कार्टून कैरिकेचर: पति बिस्तर पर लेटा “दिवाली के बाद” की तख्ती पकड़े है, जबकि पत्नी झाड़ू और बाल्टी लेकर फूलन देवी के रूप में गुस्से में खड़ी है। पृष्ठभूमि में पटाखों और मिठाइयों के बीच दुकानदार, उधार लेने वाला और डॉक्टर—सब अपने-अपने बहानों की पर्ची दिखाते हैं।

दिवाली के बाद-हास्य व्यंग्ग्य रचना

दिवाली के बाद—यह चार शब्द किसी भी अधूरे काम, टली हुई ज़िम्मेदारी और बचने की कला का ब्रह्मास्त्र हैं। शादी से लेकर कर्ज़ चुकाने तक,…

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“Surrealistic abstract mural combining all nine forms of Goddess Navdurga in one cosmic vision — Shailaputri on a bull, Brahmacharini with rosary and kamandalu, Chandraghanta with lion and bell, Kushmanda radiating the sun, Skandamata with Kartikeya, Katyayani as warrior, Kalaratri fierce and dark, Mahagauri serene in white, Siddhidatri on lotus — all merging into a cosmic tandava of light, fire, rivers, mountains, and galaxies.”

नवदुर्गा-ताण्डव स्तोत्रम्

नवदुर्गा ताण्डव स्तोत्रम् देवी शक्ति के नौ स्वरूपों का अद्भुत संगम है—शैलपुत्री की स्थिरता से लेकर सिद्धिदात्री की पूर्णता तक। यह स्तोत्र न केवल विनाश…

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एक व्यंग्यात्मक कार्टून जिसमें एक महिला, जो हिंदी भाषा का प्रतिनिधित्व कर रही है, एक ब्यूटी पार्लर की कुर्सी पर बैठी है। एक मेकअप आर्टिस्ट, जो नौकरशाही को दर्शाता है, एक बड़े पेंट रोलर से उसके चेहरे पर भारी मात्रा में मेकअप लगा रहा है, जिससे उसकी प्राकृतिक सुंदरता छिप गई है और वह असहज महसूस कर रही है।

हिंदी का ब्यूटी पार्लर

हिंदी भाषा को सरकारी दफ़्तरों और आयोगों में किस तरह से बोझिल और जटिल बनाया गया है, जिससे वह अपनी सहजता और सुंदरता खो रही…

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WhatsApp के ग्यानी और बहस का जाल

WhatsApp के ग्यानी और बहस का जाल कभी-कभी लगता है कि किसी “व्हाट्सऐप फॉरवर्डीये ज्ञानी” से बहस करना ऐसा है जैसे पानी में रेत की…

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