चला ढूढ़ने जीवन को
न जाने वो किस ओर गया ।
भटक रहा हूँ खोज रहा हूँ
इस छोर से किस छोर गया ।।
स्वेत रूप या श्यामल वर्ण
न जाने क्या क्या रूप धरा
न कोई पद चिन्ह मिले
न जाने किस ओर गया ।।
किससे पूछूँ
क्या मै पूछूँ
मेरी समझ से परे रहा
ये जीवन भी क्या जीवन है
जो बिना बताये चला गया ।।
रुक रुक कर धीरे धीरे
गतिवान तेज की चाल गया
न कोई पद चिन्ह मिले
न जाने किस ओर गया ।।
उत्तम कवि की थी अभिलाषा
मिल कर जीवन से कुछ बात करूँ
ढूढ रहा था जीवन को
न जाने जीवन कहाँ गया ।।
स्वरचित मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरक्षित है ।

रचनाकार -उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम ”
लखनऊ उत्तर प्रदेश भारत
३६१ ” का पुराना टिकैत गंज लखनऊ
पिन कोड २२६०१७