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क्रौंच पक्षी और वाल्मीकि: संवेदना से जन्मा साहित्य

महर्षि वाल्मीकि नदी के तट पर क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखकर द्रवित होते हैं।

क्रौंच पक्षी और वाल्मीकि: संवेदना से जन्मा साहित्य

महर्षि वाल्मीकि एक दिन अपने शिष्य भरद्वाज के साथ तमसा नदी के तट पर भ्रमण कर रहे थे। नदी का जल शांत था, वातावरण में एक सघन निस्तब्धता थी। तभी उनकी दृष्टि एक अद्भुत दृश्य पर पड़ी—क्रौंच पक्षियों का एक प्रेममग्न जोड़ा आकाश में उड़ता हुआ, जैसे प्रकृति की लयबद्ध कविता हो।

परंतु तभी उस सौंदर्य की छवि को एक क्रूर तीर ने चीर डाला। एक बहेलिए ने उस नर क्रौंच को निशाना बनाकर मार गिराया। वह पक्षी कराहता हुआ धरती पर गिर पड़ा और उसकी संगिनी विलाप करती हुई, व्याकुल होकर मंडराने लगी।

महर्षि वाल्मीकि इस दृश्य से भीतर तक द्रवित हो उठे। करुणा और पीड़ा की उस तीव्र अनुभूति से उनके अंतर्मन से स्वतः एक श्लोक फूट पड़ा—

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।

यत् क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥

भावार्थ:

“हे बहेलिए!

तूने जो प्रेम में लीन क्रौंच पक्षी के युगल में से एक की हत्या की,

उसके कारण तुझे कभी शाश्वत प्रतिष्ठा प्राप्त न हो।”

कहा जाता है कि यही संस्कृत साहित्य का पहला छंदबद्ध काव्य है—संवेदना से उपजा, शोक से जन्मा। इसीलिए वाल्मीकि को आदिकवि कहा गया।

अब यह कथा ऐतिहासिक है या प्रतीकात्मक, इस पर बहस हो सकती है। कुछ इसे मिथक मान सकते हैं, पर साहित्य का उद्देश्य केवल ऐतिहासिकता सिद्ध करना नहीं होता—बल्कि वह जीवन के गूढ़ सत्यों को उजागर करने का माध्यम होता है। एक ‘कहानी’ चाहे सत्य हो या मिथक, यदि वह पाठक के भीतर किसी अनुपलब्ध संवेदना की पहचान करा दे, तो वह अपने उद्देश्य में सफल मानी जाती है।

साहित्य में संवेदना का यही महत्व है—संवेदनशील हृदय के बिना सृजन संभव नहीं।

यह विचार मुझे तब और तीव्रता से छूते हैं, जब मैं प्राचीन रचनाओं की ओर लौटता हूँ। हाल ही में मैंने कालिदास रचित कुमारसंभव, मेघदूतम्, अभिज्ञान शाकुंतलम् और रघुवंशम्—इन चारों महान काव्य कृतियों के हिंदी अनुवाद अमेज़न से मंगवाए। मूल्य देखा तो चौंक गया—चारों मिलाकर मात्र 400 रुपये।

और उधर कुछ समकालीन तथाकथित साहित्यकारों की ‘कृतियाँ’—बाजार में 10 हज़ार रुपये की ‘रचनावलियाँ’।

यही है शायद आज के ‘साहित्य का मूल्य’ — जो संवेदना नहीं, ब्रांडिंग और बुकमार्किंग पर टिका है।

साहित्य शिल्पकारों से एक विनम्र विनती:

कृपया आलोकित करें—क्या यह स्वीकार्य है कि वाल्मीकि का यह श्लोक ही संस्कृत का पहला छंदबद्ध काव्य है?

या कालिदास और अन्य काव्यग्रंथों की संरचना इस अनुक्रम को पुनर्परिभाषित करती है?

संवेदना के इस शाश्वत प्रसंग में, आपके विचारों की प्रतीक्षा रहेगी।

— डॉ. मुकेश असीमित

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

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