हमें दिल का ज़माना चहिए था।
ज़माने को ख़ज़ाना चाहिए था।। *
तुम्हारा दिल हो या आँखें तुम्हारी।
हमें तो बस ठिकाना चाहिए था।। *
बिल आख़िर* क़त्ल तो होना था मेरा।
शिकारी को निशाना चाहिए था।। *
अचानक कह दिया बस दिल से निकलो।।
निकलने में ज़माना चहिए था। *
हम अपनी भूख ओढ़े सो रहे थे।
शिकम* को आबो-दाना* चाहिए था।। *
ग़नीमत* है ये छप्पर आसमाॅं का।
कोई तो शामियाना चाहिए था।। *
नये उभरे हैं जो फ़िरओन* बनकर।।
इन्हें तो डूब जाना चाहिए था। *
न आया पूछने अहवाल* “अनवर”।
उसे तो बस बहाना चाहिए था।। *
शकूर अनवर
बिल आख़िर*आख़िरकार
शिकम*पेट
आबो दाना*खाना पानी
ग़नीमत*पर्याप्त फ़िरओन*मिस्र के ज़ालिम बादशाह का लक़ब
अहवाल*हाल चाल