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हमें दिल का ज़माना चाहिए-गजल

A figurative abstract painting with a large red heart, blue-toned human figures, and a soft aura of yearning and solitude, inspired by an Urdu ghazal.

हमें दिल का ज़माना चहिए था।

ज़माने को ख़ज़ाना चाहिए था।। *

तुम्हारा दिल हो या आँखें तुम्हारी।

हमें तो बस ठिकाना चाहिए था।। *

बिल आख़िर* क़त्ल तो होना था मेरा।

शिकारी को निशाना चाहिए था।। *

अचानक कह दिया बस दिल से निकलो।।

निकलने में ज़माना चहिए था। *

हम अपनी भूख ओढ़े सो रहे थे।

शिकम* को आबो-दाना* चाहिए था।। *

ग़नीमत* है ये छप्पर आसमाॅं का।

कोई तो शामियाना चाहिए था।। *

नये उभरे हैं जो फ़िरओन* बनकर।।

इन्हें तो डूब जाना चाहिए था। *

न आया पूछने अहवाल* “अनवर”।

उसे तो बस बहाना चाहिए था।। *

शकूर अनवर

बिल आख़िर*आख़िरकार

शिकम*पेट

आबो दाना*खाना पानी

ग़नीमत*पर्याप्त फ़िरओन*मिस्र के ज़ालिम बादशाह का लक़ब

अहवाल*हाल चाल

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