क्या होती देशभक्ति?
एक दिन नींद टूटी
तो विचार एक,
भोर के सूरज की भाँति
मन के अंधेरे कोने में
उग आया।
क्या होती देशभक्ति?
समाचार पत्र उठाया
बड़े लोगों की
बड़ी बड़ी बातें
छपीं हुईं थीं ।
खिड़की से झाँका
तो
नारे लगाते देश-प्रेम के
युवक कुछ गुजर रहे थे।
रेडियो पर,
देश-भक्ति गान
के नाम पर, बेसुरे
वाद्य कुछ बज रहे थे।
सिर चकराने लगा
मन घबराने लगा।
एक कप चाय बनाई,
बालकनी में कुर्सी जमाई।
नीचे देखा, एक बच्चा
सड़क पर पड़ा
केले का छिलका उठा,
कचरे के पात्र में
फेंक रहा था।
पड़ोसी युवक
घड़ी देखता
कार पूलिंग वाले
सहयात्रियों को
समय पर आॅफिस
चलने को
कह रहा था।
काम वाली बाई
तभी आकर मुझे
सफाई में पाई ,
सोने की
अंगूठी मेरी
मुझको लौटा रही थी।
सामने वाले घर में
फौजी की पत्नी
उदास सास के सर में
तेल लगा रही थी।
लता की आवाज़
देशभक्ति महका रही थी।
विदेश की नौकरी
ठुकराने की बात
कल रात
पुत्री मेरी बता रही थी।
बाढ़ पीड़ितों की
सहायता हेतु
चैक पर लिखी राशि
किताब में रखी
लहरा रही थी।
अमर शहीदों पर लिखी
वह किताब
लेखिका का देश- प्रेम
जता रही थी।
आज शिविर में,
निशुल्क रोगी देखने ,
बगल वाली चिकित्सक
दौड़ी जा रही थी।
और,
इन सबके साथ
देशभक्ति की
पावन नदी
कलकल बहती
आ रही थी।

– डाॅ.महिमा श्रीवास्तव