मैं तेरी ही कब हो गई, ये मुझको ही पता नहीं ।
मेरा दिल कब से तेरा है ,ये मुझको ही पता नहीं ।
दिल में बस तू ही तू है, ये मुझको अब पता चला ,
दिल मेरा बस तेरा है ,ये कैसा तेरा असर डला ,
शुद् बुद खो चली हूं मैं ,ये मुझको ही पता नहीं ।
तेरा जादू मुझमें यूं चला, मैं तुझमें ही खो गई ,
मुझे न जाने कब क्या हुआ,मैं तेरी ही हो गई ,
मुझको प्यार हुआ ऐसा ,खबर मुझको हुई नहीं ।
अब तो मैं तेरी ही बनकर आई परछाई हूं,
खुद की देह छोड़कर ,तुझमें ही समाई हूं,
कब तुझमें समा गई,मुझको ये पता ही नहीं ।

विद्या दुबे स्वरचित रचना ✍️
बैकुंठपुर कोरिया
छत्तीसगढ़
shandaar kavita ..
Thank you sir 🙏