मेरे घर की ये दीवारें ,
मुझे रोज देखती है ।
कभी देखती नाचते गाते ,
कभी रोते देखती है ।
छोटे छोटे सपने बुनते,
तिनके तिनके रोज जुड़ते ,
बड़े सपनो को टूटते देखती है ।
कभी देखती घुल मिल रहते ,
कभी देखती लड़ते झगड़ते ,
कभी बीच की दीवार सुधार देखती है
मन का वो मरोड़ देखती है,
दिल में हो रहा शोर देखती है,
विक्षुब्ध अनचाहे खर -पतवार देखती है ।
विद्या पोखरियाल

vawoo
धन्यवाद