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मेरे घर की ये  दीवारें-कविता रचना

एक साधारण घर की दीवारें, जिन पर समय के भावनात्मक रंग चढ़े हैं — हंसी, आंसू, सपने, झगड़े, और मन की उलझनें, मानो वे सब कुछ देख-सुन रही हों।

मेरे घर की ये  दीवारें ,
मुझे रोज देखती है ।
कभी देखती नाचते गाते ,
कभी रोते देखती है ।

छोटे छोटे सपने बुनते,
तिनके तिनके रोज जुड़ते ,
बड़े सपनो को टूटते देखती है ।

कभी देखती घुल मिल रहते ,
कभी देखती लड़ते झगड़ते ,
कभी बीच की दीवार सुधार देखती है

मन का वो मरोड़ देखती है,
दिल में हो रहा शोर देखती है,
विक्षुब्ध अनचाहे खर -पतवार देखती है ।

विद्या पोखरियाल

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