भाईदूज — तिलक की रेखा में स्नेह, उत्तरदायित्व और रोशनी

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 23, 2025 Culture 0

“भाईदूज सिर्फ़ माथे का तिलक नहीं, रिश्ते की आत्मा में बसे भरोसे का पुनर्स्मरण है।” “जब बहन तिलक लगाती है, वह केवल दीर्घायु नहीं मांगती—वह भाई की सजगता और संवेदना की प्रार्थना करती है।” “तिलक की लाल रेखा विश्वास की नीति बन जाती है—जहाँ असहमति भी आदर के साथ संभव होती है।” “भाईदूज का असली दीप वह है जो रिश्ते के अंधकार में भी एक-दूसरे को देखने की रोशनी देता है।”

अन्नकूट महाप्रसाद — स्वाद, परंपरा और साझेपन की कथा

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 22, 2025 Culture 0

दीवाली और गोवर्धन के बीच का दिन केवल त्योहार का अंतराल नहीं, बल्कि साझेपन की परंपरा का उत्सव है। पहले अन्नकूट में हर घर का स्वाद एक प्रसाद में घुलता था — अब प्लेटें बदल गईं, मसाले डिब्बाबंद हो गए, परंपरा जीवित है, बस आत्मा में ‘मॉडर्न टच’ आ गया है। स्वाद अब स्मृति में है — और स्मृति ही असली प्रसाद है।

गोवर्धन पूजा — धरती, धारण और धारणा का उत्सव

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 21, 2025 Important days 0

गोवर्धन लीला केवल एक पौराणिक प्रसंग नहीं, बल्कि मानव चेतना की यात्रा है—जहाँ कृष्ण भक्त के रक्षक, गुरु और प्रेमस्वरूप हैं। इंद्र का गर्व, ब्रजवासियों की श्रद्धा और गिरिराज का सहारा—ये सब मिलकर बताते हैं कि ईश्वर हमें संकट से नहीं, अहंकार से मुक्त करते हैं। यह कथा सामूहिक शरणागति, भक्ति की सरलता और धर्म के जीवंत दर्शन का उत्सव है—जहाँ पर्वत केवल पत्थर नहीं, बल्कि करुणा का प्रतीक बन जाता है।

विवेकानंद और आधुनिक प्रायोगिक वेदान्त की प्रासंगिकता

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 21, 2025 People 0

स्वामी विवेकानंद ने वेदान्त को ग्रंथों से निकालकर जीवन के प्रत्येक कर्म में उतारा — उन्होंने कहा, “यदि वेदान्त सत्य है, तो उसे प्रयोग में लाओ।” उनका “प्रायोगिक वेदान्त” हमें सिखाता है कि पूजा केवल मंदिरों में नहीं, बल्कि मनुष्य की सेवा में है; ध्यान केवल मौन में नहीं, बल्कि कर्म और करुणा में है। आज जब समाज भेदभाव, स्वार्थ और मानसिक असुरक्षा से जूझ रहा है, तब विवेकानंद का यह संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है — “हर आत्मा संभावित रूप से दिव्य है; उस दिव्यता को प्रकट करना ही जीवन का लक्ष्य है।”

प्रकाश है सनातन-कविता रचना

Prahalad Shrimali Oct 20, 2025 Hindi poems 0

“बहती प्रकाश की ओर अगर है ज़िंदगी, तो हर अंधकार भी एक पड़ाव मात्र है। जो दीप भीतर जलता है — वही अमर है, वही सत्य है, वही जीवन का उजास।”

गालों की लाली- हो गई गाली

Ram Kumar Joshi Oct 20, 2025 संस्मरण 0

“कभी सूर्योदय से पहले नहीं उठने वाले अब मुंह-अंधेरे ‘हेलो हाय’ करते जॉगिंग पर हैं। ट्रैक सूट, डियोडरेंट और महिला ट्रेनर ने जैसे रिटायरमेंट में नई जवानी फूंक दी हो। पर पत्नी का वीटो जब लगा, तो प्रभात भ्रमण से सीधा ‘लिहाफ भ्रमण’ पर लौटे।”

दीपावली — अंधकार के गर्भ से ज्योति का जन्म

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 20, 2025 Important days 1

“दीपावली अमावस्या की निस्तब्धता से जन्मी वह ज्योति है जो केवल घर नहीं, हृदय की गुफाओं को आलोकित करती है। यह बाह्य उत्सव से अधिक आत्मदीपकत्व का अनुष्ठान है — अंधकार को मिटाने नहीं, उसमें दीप जलाने का साहस।”

नरक चतुर्दशी — रूप, ज्योति और आत्म-शुद्धि की यात्रा

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 18, 2025 Important days 0

“नरक चतुर्दशी केवल एक तिथि नहीं, बल्कि भीतर के नरक से मुक्ति का पर्व है। यह मन की अंधकारमय प्रवृत्तियों से प्रकाशमय चेतना की ओर यात्रा का क्षण है — जहाँ स्नान शरीर का नहीं, आत्मा का होता है; और दीप केवल मिट्टी का नहीं, मन का।”

जीनीयस जनरेशन की ‘लोल’ भाषा

Vivek Ranjan Shreevastav Oct 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0

“जेन ज़ी की ‘लोल भाषा’ ने व्याकरण के सिंहासन को हिला दिया है। अब भाषा नहीं, भावना प्राथमिक है। अक्षरों का वजन घट रहा है, इमोजी विचार बन रहे हैं — यह सिर्फ बातचीत नहीं, एक सांस्कृतिक क्रांति है।”

जा तू धन को तरसे — एक व्यंग्यात्मक धनतेरस कथा

डॉ मुकेश 'असीमित' Oct 18, 2025 व्यंग रचनाएं 0

धनतेरस के शुभ अवसर पर जब जेबें खाली हैं और बाज़ार भरा पड़ा है, तब लेखक हंसी और व्यंग्य से पूछता है — “धनतेरस किसके लिए शुभ है?” यह रचना बताती है कि असली उल्लू कौन है — वह जो लक्ष्मी जी के साथ उड़ता है या वह जो उनकी प्रतीक्षा में खाली वॉलेट थामे बैठा है। हास्य, कटाक्ष और सटीक सामाजिक टिप्पणी से भरा व्यंग्य।