मैं बच्चा हूँ, ट्रॉफी नहीं-कविता -डॉ मुकेश असीमित

डॉ मुकेश 'असीमित' Jun 30, 2025 Poems 1

यह कविता एक बच्चे की अंतरात्मा की पुकार है—जो केवल अपने लिए जीना चाहता है, किसी की महत्वाकांक्षा की ट्रॉफी बनकर नहीं। वह अपने सपनों को जीना चाहता है, न कि दूसरों के अधूरे सपनों को ढोना। उसमें संवेदना है, विद्रोह है और मानवता की गूंज है।

बरसात में झीगुरों की आमसभा-हास्य-व्यंग्य

Pradeep Audichya Jun 30, 2025 व्यंग रचनाएं 0

बारिश की रात झींगुरों की आवाज़ को कभी ध्यान से सुनिए – वो बस टर्राहट नहीं, एक आंदोलन की गूंज है। वे मंच पर अधिकारों की मांग कर रहे हैं – आरक्षण, रॉयल्टी, बिजली के खंभे, होटल प्रवेश और एक "झींगुर अत्याचार निवारण आयोग" की स्थापना!

जब आप लड़की देखने जाए श्रीमान तो इन पांच बातों का रखें विशेष ध्यान

Mukesh Rathor Jun 30, 2025 Blogs 0

रोटी, कपड़ा, मकान के बाद अब नौकरी और छोकरी युवा की प्रमुख आवश्यकताएं बन गई हैं। लड़की देखने जाना शादी से पहले की सबसे बड़ी सामाजिक परीक्षा है, जिसमें चाय, मुस्कान और मूक संवादों के बीच कई बार ऐसा पंच पड़ता है कि रिश्ता बनने के पहले ही बिखर जाता है।

क्या होती देशभक्ति?-कविता-बात-अपने-देश-की

Dr Mahima Shreevasav Jun 30, 2025 Poems 0

देशभक्ति केवल नारों या गीतों में नहीं, बल्कि रोज़मर्रा के उन छोटे-छोटे कर्मों में छिपी होती है जो सादगी से, ईमानदारी से, कर्तव्य की भावना से जन्म लेते हैं। कविता में देशभक्ति की परिभाषा शोर में नहीं, बल्कि खामोश अच्छाइयों में मिलती है।

जगाते है-कविता-बात अपने देश की

Sanjaya Jain Jun 29, 2025 Poems 0

यह आत्मपरिचयात्मक कविता एक लेखक के अंतरमन की झलक देती है — जहाँ लेखनी के गुण-दोष, धनहीनता में भी मन की समृद्धि, और समाज को जाग्रत करने की शक्ति निहित है। यह भावनाओं, चेतना और सभ्यता को एक नए रूप में ढालने का आह्वान करती है।

द्रोपदी का चीर हरण -कविता-बात-अपने-देश-की

Uttam Kumar Jun 29, 2025 Poems 0

द्रोपदी की पुकार, कृष्ण की कृपा और महारथियों की चुप्पी — यह कविता महाभारत की उस घड़ी का चित्रण है जहाँ न्याय मौन हो गया, और एक स्त्री की पीड़ा ने देवता को पुकारा। चीरहरण नहीं रुका, पर चीर बढ़ता गया — और मौन महारथियों की हार दिखी।

एक डॉक्टर की अंतर्वेदना-कविता-बात अपने देश की

डॉ मुकेश 'असीमित' Jun 29, 2025 Poems 1

एक डॉक्टर की आत्मा में दबी हुई करुण पुकार — जो हर दिन दूसरों के लिए जीवन की लड़ाई लड़ता है, पर खुद की वेदना अनकही रह जाती है। ऑपरेशन की छुरी थामे वो दिल थामे रहता है, जीवन और मृत्यु के द्वंद्व में उलझा, पर स्वयं के दर्द का कोई उपचार नहीं।

“जय जगन्नाथ”-कविता-बात अपने देश की

Neha Jain Jun 29, 2025 Poems 0

पुरी का जगन्नाथ धाम, आस्था और अध्यात्म का अद्भुत संगम है। रथयात्रा के उत्सव में धड़कता है प्रभु का हृदय, जो भक्तों से मिलने स्वयं निकलते हैं। रथ, ढोल-नगाड़े, भक्तों का प्रेम – सब मिलकर इस दृश्य को अलौकिक बना देते हैं। यहाँ आकर आत्मा भी ‘जय जगन्नाथ’ गाने लगती है।

पानी है… मजा है! कहानी -बात अपने देश की

Wasim Alam Jun 29, 2025 कहानी 4

पटना से गाँव लौटते वक्त एक छोटे स्टेशन पर मिला वह नन्हा पानी बेचता लड़का — थकी हुई आँखें, टूटी चप्पलें और एक मासूम हँसी। उसकी बोतल में पानी था, पर आँखों में प्यास। वह हँसी आज भी याद है, जिसने सिखाया कि इंसानियत भी प्यास बुझाती है।

पंचायत सीज़न 4: फुलेरा की मिट्टी में राजनीति की महक!

डॉ मुकेश 'असीमित' Jun 28, 2025 Cinema Review 1

पंचायत सीज़न 4 फुलेरा की उसी मिट्टी से शुरू होता है, जिसमें पहले हँसी और सादगी उगती थी — लेकिन इस बार राजनीति की परतें ज़्यादा गाढ़ी हैं। सचिव जी की सीएटी में सफलता, रिंकी का प्रेम प्रस्ताव, और प्रधान जी की हार – सब मिलकर इसे इमोशन, ड्रामा और स्थानीय राजनीति का दिलचस्प मिश्रण बनाते हैं। कहानी में थोड़ी खिंचावट ज़रूर है, लेकिन अंतिम दो एपिसोड्स में जो भावनात्मक टर्न है, वो पूरी सीरीज़ को देखने लायक बना देता है। “गाँव वही है, कहानी गहरी हो गई है।”