न कर छेड़खानी तू धरती से प्यारे, ये पेड़ हैं जीवन के सच्चे सहारे। नदियों की धारा, पवन की रवानी, सब कहते हैं — “मत…
मैंने अपने क्लीनिक में प्रवेश किया। कई मरीज़ विश्राम कक्ष में बैठे हुए थे। कुछ के चेहरे पर संतोष था—शायद मेरे इलाज से उन्हें लाभ…
तुम भगवान हो, तो गलती नहीं कर सकते — क्योंकि इंसान की तो गलती माफ़ होती है। अब जब भगवान बना दिया है, तो ये…
“डॉक्टर साहब, आपकी पढ़ाई अपनी जगह… हम तो इसे ‘नस जाना’ ही मानेंगे!” ग्रामीण चिकित्सा संवादों में हर लक्षण का एक लोकनाम है — ‘चक…
“गालियों का बाज़ार” नामक उस लोकतांत्रिक तमाशे का प्रतीक है जहाँ भाषाई स्वतंत्रता के नाम पर अपशब्दों की होड़ है। हर कोई वक्ता है, हर…
पुरस्कारों की चमक साहित्यकारों को अक्सर पितृसत्ता की टोपी पहना देती है। ये ‘गुप्त रोग’ बनकर छिपाया भी जाता है और पाया भी जाता है,…
एक तीखा हास्य-व्यंग्य जो दिखावे के मदर्स डे और असल माँ के संघर्षों के बीच की खाई को उजागर करता है। सोशल मीडिया की चमक…
बेवकूफ बनना कोई साधारण काम नहीं, यह भी एक कला और तपस्या है, जिसमें सामने वाले को यह आभास भी न हो कि आप अभिनय…
A darkly humorous satire on modern-day healthcare, portraying a doctor’s hospital as a “Kaliyug temple” where survival needs CCTV, bouncers, panic buttons, and soundproof walls.…
A razor-sharp satire on today’s photo-op revolutions, Candle March – Of the Mighty “Mom-Batti Veers” mocks performative activism where grief is glamorized and protests are…