Login    |    Register
Menu Close
एक हास्य व्यंग्य कार्टून जिसमें एक आधुनिक दंपत्ति अपने कुत्ते टॉमी को गोद में लेकर सेल्फी ले रहा है, पीछे घर का ए.सी. चल रहा है, डॉग-स्पा के पोस्टर लगे हैं, और टेबल पर डॉग केक रखा है। मजदूर खिड़की के बाहर पसीने में तर हैं — दृश्य में वर्गीय और भावनात्मक विडंबना झलकती है।

पालतू कुत्ता — इंसान का आख़िरी विकास चरण

अब मनुष्य “सामाजिक प्राणी” से “पालतू प्राणी” में विकसित हो चुका है। पट्टा अब कुत्ते के गले में नहीं, बल्कि उसकी ईएमआई और सोशल मीडिया…

Spread the love
एक साधारण रेखाचित्र जिसमें केंद्र में ध्यानमग्न व्यक्ति की आकृति हो — उसके चारों ओर छह गोलाकार परतें: 1️⃣ तर्क (Justice – न्याय) — प्रकाश की किरण जैसी। 2️⃣ तत्व (Vaisheshika – वैशेषिक) — परमाणुओं के प्रतीक बिंदु। 3️⃣ चेतना (Sankhya – सांख्य) — अर्ध खुली आँखें, भीतर दृष्टि। 4️⃣ साधना (Yoga – योग) — शांत श्वास का लयबद्ध प्रवाह। 5️⃣ कर्म (Mimamsa – मीमांसा) — हाथ जोड़ते हुए कर्मशील आकृति। 6️⃣ एकत्व (Vedanta – वेदांत) — ऊपरी आभामंडल में विलय होती ऊर्जा। रंग: मृदु सुनहरा, हल्का नीला और मिट्टी का टोन; कोई टेक्स्ट नहीं।

भारतीय दर्शनशास्त्र: जब प्रश्न व्यवस्था माँगते हैं — आत्मबोध से विश्वबोध तक

भारतीय दर्शन उस अनूठी यात्रा का नाम है जो व्यक्ति के “मैं” से शुरू होकर “हम” तक पहुँचती है। न्याय बुद्धि को कसौटी देता है,…

Spread the love
“ध्यानमग्न मानव आकृति जिसके हृदय से प्रकाश की तरंगें निकलकर ब्रह्मांड में फैल रही हैं — आत्मबोध से विश्वबोध तक की यात्रा का प्रतीकात्मक चित्र।”

आत्मबोध से विश्वबोध तक — चेतना की वह यात्रा जो मनुष्य को ‘मैं’ से ‘हम’ बनाती है

“जब मनुष्य अपने भीतर के ‘मैं’ से जागता है, तभी उसके बाहर का ‘हम’ जन्म लेता है। आत्मबोध से विश्वबोध की यह यात्रा केवल ध्यान…

Spread the love
कार्टून चित्र जिसमें एक चिंतित लेखक लैपटॉप पर मेल इनबॉक्स देख रहा है; स्क्रीन पर लिखा है – “हम आपका लेख छापेंगे… किसी दिन!” पास में कॉफी का कप, मेज पर बिखरे अधूरे लेख और कोने में “यथासमय” लिखा हुआ कैलेंडर। लेखक के चेहरे पर उम्मीद और थकान दोनों झलक रहे हैं।

हम आपका लेख छापेंगे… किसी दिन

लेखन भेजना आसान है, लेकिन उसके बाद की प्रतीक्षा ही असली ‘कहानी’ बन जाती है। संपादक का “यथासमय” जवाब लेखकों के जीवन का सबसे रहस्यमय…

Spread the love
काले सूट में अमिताभ बच्चन का हाफ-प्रोफाइल पोर्ट्रेट; बैकग्राउंड में फिल्म रील, ‘दीवार’ और ‘शोले’ के प्रतीक, एक तरफ जया और रेखा की सिल्हूट, दूसरी तरफ संसद और टीवी स्टूडियो की झलक।

अमिताभ: स्टारडम से सरोकार तक — एंग्री यंग मैन की जर्नी, रिश्ते और विवाद

चार पीढ़ियों को मोहित करने वाली आवाज़ से लेकर राजनीति, रिश्तों और 1984 के आरोपों तक—अमिताभ बच्चन की जर्नी जहां स्टारडम चमकता है और सरोकार…

Spread the love
ग्राम्य यादों का कोलाज: बच्चे मिट्टी में खेलते, तालाब में तैरते, थैलों में बाजरे-ज्वार के खेत, आँगन में खाट पर बैठे चाँद-तारों से बातें करते लोग; दादी हाथ में चटाई लेकर चिड़ियों की कहानी सुना रही है; बैकग्राउंड में खादी टोपी, पारम्परिक स्नैक्स और बाग़ की हरियाली — सेफ़िया-नॉस्टैल्जिया, प्रकृति-कनेक्शन और ग्रामीण जीवन की गर्माहट का दृश्य।

हम उस ज़माने के थे -हास्य व्यंग्य रचना

“हम उस ज़माने के थे — जब ‘फ्री डिलीवरी’ मतलब रामदीन काका के बाग़ के अमरूद थे।” “खेतों की हवा, खाट पर रातें और दादी…

Spread the love
सर्किट हाउस के पोर्च पर लक्ज़री कार से उतरते काले चश्मे और सफेद कुर्ते-पायजाम में बड़े नेता; पीछे सफेद टोपी और खादी पहने कार्यकर्ता माला-पहनाने, सेल्फी और टॉवेल से मुंह पोंछने की होड़ में; मैदान में पट्टे-बैनरों और नारेबाज़ी के बीच बूढ़े गांधीवादी नेता की टोपी गिरकर कालीन पर पड़ी है — सत्ता, दिखावा और रस्मों की विडम्बना का कार्टूनैरिक दृश्य।

चुनावी टिकट की बिक्री-हास्य व्यंग्य रचना

“सर्किट हाउस की दीवारों में लोकतंत्र की गूँज नहीं — सिर्फ फ़ोटोग्राफ़ और आरक्षण की गंध है।” “माला पहनी, सेल्फी ली — और गांधी टोपी…

Spread the love
संसद में उड़ता हुआ जूता, मंत्री के भाषण के दौरान मीडिया कैमरे से कवर करते हुए — व्यंग्यात्मक कार्टून दृश्य।

जूता पुराण : शो-टाइम से शू-टाइम तक

इन दिनों जूते बोल रहे हैं — संसद से लेकर सेमिनार तक, हर मंच पर चप्पलें संवाद कर रही हैं। कभी प्रेमचंद के फटे जूतों…

Spread the love