Login    |    Register
Menu Close

हैप्पी डॉक्टर्स डे – व्यंग्य रचना

एक व्यस्त डॉक्टर की ओपीडी में घुसने की कोशिश करता हुआ घमंडी पत्रकार, बाहर लाइन में खड़े मरीज, और डॉक्टर की पीठ पीछे सम्मान और डिग्रियों से सजी अलमारी।

हैप्पी डॉक्टर्स डे – व्यंग्य रचना

अभी ओपीडी में बैठा मरीजों में व्यस्त था कि बाहर कुछ शोरगुल सुनाई दिया। शीशे से साफ़ देख सकता था — एक पहुँचे हुए पत्रकार महोदय बाकी मरीजों से हील-हुज्जत करने में व्यस्त थे। खुद को ‘स्टाफ का आदमी’ बता रहे थे, और कह भी रहे थे, “भाई, तुम जानते नहीं मुझे? मैं कौन हूँ? स्टाफ का आदमी हूँ।”

एक मरीज का रिश्तेदार, जो शायद थोड़ा दार्शनिक भाव में था, उसे समझाने लगा — “भाई, अगर तुम नहीं जानते कि तुम कौन हो, तो जाकर हिमालय में आत्मदर्शन क्यों नहीं करते? यहाँ किसलिए आए हो?”

खैर, मामला स्पष्ट था। बात फीस की नहीं थी — वह तो न देने का जन्मसिद्ध अधिकार ‘स्टाफ का आदमी’ होने के नाते पहले से सुरक्षित था। मुख्य मुद्दा ‘वीआईपी एंट्री’ का था, जो स्टाफ का आदमी होने के बावजूद उसे नहीं मिल रही थी। मरीज जो लाइन में लगे थे, वे भी बड़े ज़िद्दी निकले। जैसे ही वह दरवाज़े की ओर आता, वे उसे धक्का देकर पीछे धकेल देते।

आख़िरकार परेशान होकर एक बार उसने स्टाफ की तरफ कातर निगाह से देखा। स्टाफ ने पिघलते हुए अपने रसूख का इस्तेमाल किया और उसे ‘वीआईपी एंट्री’ दे डाली। अंदर आते ही वह बोला — “हैप्पी डॉक्टर्स डे।”

ओह! याद आया — आज तो डॉक्टर्स डे है। हमारी बदहाली, तंगहाली, फटेहाल जीवन में यह दिन जैसे पैबंद की तरह है। यह वही दिन है जब अख़बारों की हेडलाइन में कहीं हमारा नाम तक नहीं होगा। “डॉक्टर बना हत्यारा,” “डॉक्टर ने मचाई लूट,” “गलत इंजेक्शन से मरीज की मौत,” “डॉक्टर या शैतान?” — जैसे मनोरंजक शीर्षक अख़बार से नदारद होंगे।

इस बार का डॉक्टर्स डे मेरे लिए खास है। अभी दो दिन पहले ही एक जानी-मानी संस्था के कुछ पदाधिकारी आए थे — मुझे डॉक्टर्स डे पर सम्मानित करने का विचार लेकर। इसके बदले मेरी डाक्टरी के पेशे की तथाकथित लूटी गई रकम में से एक अच्छा-खासा चंदा देने की पेशकश भी कर दी है!

अब संस्थाएँ भी तो चंदे पर ही चलती हैं — ख़ासकर यह संस्था तो ‘चंदा देकर सम्मानित करने’ के क्षेत्र में अग्रणी है। आप कैसा भी शिरोमणि, विभूषण, पदवी — सब चुटकी में प्राप्त कर सकते हैं।

मैंने खास तौर पर कुर्सी के पीछे एक शोकेसनुमा अलमारी बनवाई है — अभी तक उसमें मेरे द्वारा एड़ियाँ रगड़-रगड़ कर हासिल की गई डिग्रियाँ ही सजी हैं। दिली तमन्ना है कि कोई मुझे भी सम्मानित करे और मेरी अलमारी चमकीले रंग-बिरंगे मोमेंटो से भर जाए। अब अगर संस्था इसके बदले चंदा लेती है तो इसमें बुरा क्या है? उन यूनिवर्सिटियों से तो कहीं बेहतर हैं जो फर्जी डिग्रियाँ बाँट रही हैं — रातों-रात आपको डॉक्टर बना देती हैं। मेरा मतलब, ‘थीसिस वाला डॉक्टर’। वैसे कुछ ही दिनों में ‘दवाइयों वाला डॉक्टर’ की डिग्रियाँ भी बाँटने का कार्य शुरू हो जाएगा — ऐसी संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

इसी बीच पत्रकार साहब से पूछ लिया — “कहो, कैसे तकलीफ़ दी?”

पत्रकार साहब हँसते हुए बोले — “अरे डॉक साहब, आप भी! आज डॉक्टर्स डे है, आपके हालचाल पूछने आ गए बस। मैंने तो सोचा था कि आज आपने कोई निशुल्क कैंप रखा होगा — भई, डॉक्टर्स डे पर ही सही, कुछ तो समाज सेवा कर लिया करो! या फिर दिन-रात बस पैसे ही कमाने का काम?” और फिर खी-खी करके हँसने लगे।

मैंने सोचा — डॉक्टर्स डे ही तो है, कोई डॉक्टर्स का श्रद्धांजलि दिवस तो है नहीं, फिर ये उठावने की बैठक की तरह मेरे पास आकर हालचाल पूछने की क्या ज़रूरत आन पड़ी! मैंने बड़ी मुश्किल से उसके ढीठपन का घूँट पिया और बोला — “समाज के ठेकेदारों ने डॉक्टरों के पास समाज सेवा का काम छोड़ा ही कहाँ है? क्या करें — पापी पेट का सवाल है भाई। हमारे भी बीवी-बच्चे हैं। दो रोटी का जुगाड़ हमें भी करना पड़ता है।”

बाहर मरीजों की भीड़ थी, मैं जल्दी से उन्हें विदा करना चाहता था। उनके साथ आए मरीज को देखा, कुछ दवाइयाँ लिखीं, तो पत्रकार साहब बिफर पड़े —

“अरे डॉ. साहब, सैंपल की दवाइयाँ आती हैं — उन्हें कुछ इधर सरका दिया करो। आपने खबर नहीं पढ़ी शायद? अभी दो दिन पहले की ही तो बात है — अपने ही शहर की एक नामी फार्मा कंपनी के यहाँ बड़ा छापा पड़ा है, सैंपल की दवाइयाँ बेचते पकड़े गए। अब आप ही बताइए, डॉक्टरों ने कितनी लूट मचा रखी है!”

मैं उसे कुछ दवाइयाँ फार्मेसी से मंगवाकर उसे चलता करना चाहता था, लेकिन आज तो वह अंगद के पाँव की तरह जमा हुआ था। डॉक्टर्स डे की शुभकामना उसने मुझे दी थी, लेकिन उसके बदले में मेरी ओर से कोई अच्छा-सा रिटर्न गिफ्ट न मिलने के कारण वह संतुष्ट नहीं था। उसने अपना अखबार का एक पन्ना निकालकर मेरी टेबल पर बिछा दिया और बोला—”डॉक्टर्स डे पर विशेषांक निकल रहा है, शहर के सभी डॉक्टरों के सम्मान में। आप तो इतना लिखते रहते हैं। डॉक्टरी को भूलकर लेखन का शौक चढ़ा है। डॉक्टर्स डे पर आपका एक लेख छापना चाहते हैं। बस, आपको एक बढ़िया-सा विज्ञापन हमें देना है। विज्ञापन के बराबर का ही लेख आपका छाप देंगे। वैसे भी आपके लेख पढ़ता रहता हूँ, पर अधिकतर बाहर की पत्रिकाओं और अखबारों में ही छपते हैं। अरे, जंगल में नाचा मोर—किसने देखा!”

पत्रकार महोदय साफ़ तौर पर किंगमेकर की भूमिका में अपने प्रवचन दे रहे थे—जिसे चाहें अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर पहुँचा सकते हैं।

पता नहीं क्यों, लोग डॉक्टर को भगवान का दर्जा देते हैं, जबकि मैं देखता हूँ तो मुझे ग़ुस्सा भी आता है, चिढ़ भी होती है—ये तो कोई भगवान के लक्षण नहीं हैं। उसकी इस बात पर मन आग-बबूला हो गया था; शायद दो-चार अपशब्द कहने का मन भी हुआ, लेकिन फिर सोचा कि ‘डॉक्टर लुटेरे के साथ गुंडे भी होते हैं’ का एक नया तमगा लग जाएगा—मैं हो जाऊँगा डॉक्टर के नाम पर धब्बा। इसलिए ख़ुद को संयत करके बोला—”वो… आजकल मैं थीसिस पर लगा हूँ। रिसर्च पेपर प्रकाशित करना है। तैयार हो जाएगा तो, अगर आपके अखबार में जगह मिलेगी, वहाँ भी प्रकाशित करवाऊँगा।”

पत्रकार जी बोले—”ओह, तो आपको भी थीसिस वाला डॉक्टर बनने का चस्का लग गया!”

मैंने कहा—”हाँ, अब दवाइयों के डॉक्टरों की वैसे ही हालत खस्ता हो रही है, तो क्यों न थीसिस वाला डॉक्टर बन लिया जाए?”

पत्रकार ने पूछा—”अच्छा, लेकिन आपके थीसिस का टॉपिक क्या है?”

मैंने कहा—”वो… गलत इंजेक्शन के बारे में रिसर्च कर रहा हूँ, जिसके कारण मरीज़ की मौत हो जाती है। आए दिन आपका अखबार भी छापता रहता है—’गलत इंजेक्शन लगाने से मरीज़ की मौत’। मुझे ढूँढना है कि वह गलत इंजेक्शन कहाँ मिलता है, कौन बनाता है, कौन-सा मेडिकल स्टोर उसे रखता है, उसका ड्रग लाइसेंस है या नहीं, कैसे लगाया जाता है और उसमें ऐसा क्या साल्ट होता है, जिसके लगाते ही मरीज़ तुरंत मर जाता है।”

वह तुरंत कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और बाहर दरवाज़े की तरफ भागा। मैंने पीछे से कहा—”अरे रुको! तुम्हारी दवाई की थैली तो यहीं रह गई!”

वह कहने लगा—”नहीं डॉ. साहब, रहने दीजिए। मैं फार्मेसी से ख़रीद लूँगा।”

शायद उसे अंदेशा हो गया था कि थैली में निश्चित ही कोई गलत इंजेक्शन होगा, जो मैं उसके रिश्तेदार को मारने के लिए दे रहा हूँ।

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

(लेखक, व्यंग्यकार, चिकित्सक)

📚 मेरी व्यंग्यात्मक पुस्तकें खरीदने के लिए लिंक पर क्लिक करें – “Girne Mein Kya Harz Hai” और “Roses and Thorns
Notion Press –Roses and Thorns

📧 संपर्क: [email protected]

📺 YouTube Channel: Dr Mukesh Aseemit – Vyangya Vatika
📲 WhatsApp Channelडॉ मुकेश असीमित 🔔
📘 Facebook PageDr Mukesh Aseemit 👍
📸 Instagram PageMukesh Garg | The Focus Unlimited 🌟
💼 LinkedInDr Mukesh Garg 🧑‍⚕️
🐦 X (Twitter)Dr Mukesh Aseemit 🗣️

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *