राजनीति के मैदान में भी धमाके हो रहे हैं।बम यहां भी फूट रहे हैं।राजनीति वाले बम का चरित्र देखकर वास्तविक बम बेचैन हैं।असली वाले बम कभी फूटना नहीं चाहते।बेचारे जबरन फोड़े जाते हैं।राजनीति के बम इन जैसे नहीं हैं।ये ऐसे-वैसे हैं। जैसे-तैसे फटना चाहते हैं।यह बम राजनीतिबाजों के दिल में बनते हैं।बनने के बाद फूटने के लिए मचलने लगते हैं।राजनीति के बम का फूटने के लिए मचलना इसके जन्मदाता के लिए मनचाहा वरदान है।इस बात पर उनके मन में खुशी के लड्डू फूटने लगते हैं।खुशी के ये लड्डू फूटते-फूटते ही खाने का मजा ही कुछ और है। विशेष स्वादिष्ट लगते हैं।ऊपर से इनकी तासीर में करारा नशा भी है।नशे के असर से राजनीतिबाज मन के लड्डू अपनी पाचन शक्ति से बहुत ज्यादा खा जाते हैं। ऐसे में मन के लड्डू इन्हें बहकाते हैं।नशे की तरंग में ये मानते हैं,दावा करते हैं।कि उनके बनाए राजनीति के बम फूटते ही तहलका मचा देंगे!धमाकों का रिकॉर्ड बना डालेंगे!अर्थात राजनीति के बम फोड़ कर जनसेवा का अनोखा आयाम प्रदान करने का प्रयोग किया जा रहा है।धमाकों के लिए आतुर जनता को तृप्त संतुष्ट करने के लिए।वाह!
आतंकी बम फोड़ कर धमाका करते हैं।धमाके के बाद आतंक फैलता है।राजनीति की बम फोड़े जाने की बाकायदा घोषणा होती है।घोषणा से ही जनता की नब्ज तेज हो जाती है। वैसे आशंकित लोग खुद आतंकित होने से मुकर जाते हैं। अलबत्ता दूसरों को खूब आतंकित देखना चाहते हैं।इसके लिए सलीके से प्रयास करते हैं।ताकि अधिक से अधिक लोग राजनीति के बम की सनसनी का सुख पा सकें।अनुभवी तत्व बम फूटने के बाद होने वाले मनोरंजन के ग्राफ की अटकलें लगाते हैं। दुविधावादी अनाड़ी बंदे तीव्र जिज्ञासु हो जाते हैं।बम के तेवर कलेवर की गुप्त चर्चा मुखर होकर करने की बेगार में लग जाते हैं।
बम राजनीति का हो चाहे आतंकी का दोनों का उद्देश्य है धमाका।धमाका करना बम का धर्म है।जो बम धमाका नहीं कर पाता फुस्स हो जाता है।उस बम का मजाक उड़ाया जाता है।बम फुस्स हो जाने पर जनता खुश होती है।चैन की सांस लेती है।खैर मनाती है कि अच्छा हुआ धमाका नहीं हुआ।बाल-बाल बच गए।लेकिन बम फोड़े़ने वाले आतंकी दुखी हो जाते हैं।और राजनीति वाले तो महा दुखी हो जाते होंगे!ऐसा सोचना,कहना या मानना अच्छी बात नहीं।लोकतंत्र में राजनीति जनसेवा के लिए ही की जाती है!जनता को यह बात मान लेनी चाहिए।बिना शक किए। नेताओं के चुनावी वादों से भी ज्यादा विश्वास के साथ।कि राजनीति के बम तो जनता को खुश करने के लिए ही फोड़े जाते हैं!रिकॉर्ड देख लें।राजनीति के बम फोड़ते फुस्स हो जाते हैं।यह देखकर जनता राहत पाती है।बम के फुस्स हो जाने का जश्न मनाती है। दुनियाभर में युद्ध आतंक जल-प्रलय हवाई-दुर्घटना महंगाई बेरोजगारी का भीषण दौर चल रहा है।ऐसी स्थिति में राजनीति के बम फोड़े जाते हैं।अत्यंत सावधानी रखकर उनको फुस्स होने दिया जाता है।अपना मजाक उड़वाया जाता है।ताकि कई परेशानियों से घिरी जनता को खुशी के पल हासिल हों।तो राजनीति की ऐसी बमबारी करने वाले महान हुए कि नहीं!
राजनीति केवल राजनीति के क्षेत्र की ही बपौती नहीं रही।अब राजनीति इधर-उधर हर जगह होती है।जहां नहीं होती दिख रही,वहां और अधिक हो रही होती है।सो अब राजनीति के बम यहां-वहां जहां-तहां जमानेभर में बनाएं फोड़े जा रहे हैं।यह आदमी का आदमी से राजनीतिबाज होते जाने का सुहाता दौर है।
-प्रहलाद श्रीमाली