गजल – रिश्ते
रिश्तों में विसाल उतना है जरूरी,
मेरे लिए हर सिम्त में रिश्ते है जरूरी
पर कुछ लोग बना देते है मैदान-ए-मतकल,
मेरी ख्वाहिश है बनाना रिश्तों में खुशी हर पल
कैद-ए-बाम मिलते कुछ लोग ऐसे है,
जो पेच-ओ-खम रिश्तों में डाल देते हैं
मैं हर शाख, हर खार, हर कली से मिली,
रिश्तों में मौसम-ए-बहार लाने को हर अजनबी से मिली
पर फिर भी खतवार मुझे समझा गया,
रिश्तों में अश्को की बरसात को नही समझा गया ।