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Tag: साहित्य

“मंच पर चमकदार ‘विपणन’ लेखक और कोने में शांत ‘विरासत’ लेखक; आगे तराजू में विपणन भारी, फिर भी जड़ों से गहराई की बूंद धरती में उतरती—मिनिमल कार्टून इलस्ट्रेशन।”

विरासत बनाम विपणन — परिमाण में वृद्धि, गुणवत्ता में गिरावट

“साहित्य के बाजार में आज सबसे सस्ता माल है ‘महानता’। पहले पहचान विचारों से होती थी, अब फॉलोअर्स और लॉन्च-इवेंट से होती है। व्यंग्य अब…

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कार्टून चित्र जिसमें एक चिंतित लेखक लैपटॉप पर मेल इनबॉक्स देख रहा है; स्क्रीन पर लिखा है – “हम आपका लेख छापेंगे… किसी दिन!” पास में कॉफी का कप, मेज पर बिखरे अधूरे लेख और कोने में “यथासमय” लिखा हुआ कैलेंडर। लेखक के चेहरे पर उम्मीद और थकान दोनों झलक रहे हैं।

हम आपका लेख छापेंगे… किसी दिन

लेखन भेजना आसान है, लेकिन उसके बाद की प्रतीक्षा ही असली ‘कहानी’ बन जाती है। संपादक का “यथासमय” जवाब लेखकों के जीवन का सबसे रहस्यमय…

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कार्टून: मेले में ‘Made-in-Japan’ रावण का वाटरप्रूफ पुतला मंच पर चमक रहा है; सामने बच्चे खिलौने लेकर खुश, आयोजक चुपचाप चेक बाँटते; पुतले के पीछे छिपा एक मुस्कुराता शैडो-आदमी असली रावण को दर्शाता है — व्यंग्यात्मक और रंगीन।

कलियुग का रावण-व्यंग्य रचना

अख़बार ने लिखा — इस बार रावण ‘मेड-इन-जापान’! पुतला बड़ा, वाटरप्रूफ, और दोनों पैरों से वोट माँगने तैयार। हम रोते नहीं, तमाशा देखते हैं: रावण…

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मिनिमलिस्ट पोस्टर जिसमें दीये की लौ से बनता हुआ देवनागरी अक्षर “ह” है; लौ से निकली पतली सर्किट-लाइने एक छोटे ग्लोब को घेर रही हैं—हिंदी, तकनीक और विश्व सेतु का संकेत।

हिंदी हैं हम हिंदोस्ता हमारा

हिंदी दिवस कोई स्मृति-लेन नहीं, आत्मगौरव का वार्षिक एमओयू है—जिसमें हम तय करें कि अदालत, विज्ञान, स्टार्टअप और दफ्तर की फाइल तक हिंदी का सलीका…

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खद्दरधारी हिंदी गुरुजी मैग्निफाइंग ग्लास से डॉक्टर-लेखक की फेसबुक पोस्ट में बिंदी-अनुस्वार टटोलते हुए—लाइन आर्ट कार्टून कैरिकेचर, 16:9।

मैं और मेरी हिंदी-व्यंग्य रचना

मैं, अंग्रेज़ी दवा लिखने वाला डॉक्टर, अब हिंदी में लिखने लगा तो शहर के ‘हिंदी प्रहरी’ गुरुजी मेरी हर पोस्ट में बिंदी-अनुस्वार ढूंढते फिरते हैं।…

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“कार्टून छवि में बुफ़े प्लेट के कोने में सहमा हुआ छोटा कटोरा रायता, हाथ जोड़कर दया की प्रार्थना करता हुआ, चारों ओर व्यंजन शान से सजे और लोग उदासीनता से गुजरते।”

रायता पुराण : रायता फ़ैल गया

“रायतपुराण” भोजन-संस्कृति का हास्य-व्यंग्यात्मक आख्यान है। सागर-मंथन से जन्मा यह दधि-व्यंजन कभी पंगत का गौरव था, तो आज बुफ़े की प्लेट के कोने में सहमा…

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humorous and chaotic atmosphere of the doctor's clinic that doubles as his writer's den. The doctor's perplexed expression and the mix of medical and literary items highlight his comical struggle between the two vocations.

“लिखें तो लिखें क्या ?”–व्यंग रचना

एक लेखक के लिए क्या चाहिए? खुद का निठल्लापन, उल-जलूल खुराफाती दिमाग, डेस्कटॉप और कीबोर्ड का जुगाड़, और रचनाओं को झेलने वाले दो-चार पाठकगण। कुछ…

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