गिरने में क्या हर्ज़ है-पुस्तक समीक्षा व्यंग्यकार अर्चना चतुर्वेदी द्वारा डॉ मुकेश 'असीमित' July 9, 2025 Book Review 1 Comment ‘गिरने में क्या हर्ज है’ डाक्टर मुकेश ‘असीमित’ जी का पहला व्यंग्य संग्रह है । पहले संग्रह के हिसाब से देखा जाए तो डॉक्टर साब… Spread the love
काव्य संग्रह समीक्षा-तुम मेरे अज़ीज़ हो-डॉ मुकेश असीमित द्वारा डॉ मुकेश 'असीमित' July 8, 2025 Book Review 4 Comments “तुम मेरे अज़ीज़ हो” सिर्फ प्रेम का नहीं, आत्म-संवाद, स्मृति और मौन की यात्रा है। पंकज त्रिवेदी की सरल भाषा में छिपे गहन भाव, प्रेम… Spread the love
व्यंग्य की दुनिया में एक जागरूक आमद -पुस्तक समीक्षा -डॉ अतुल चतुर्वेदी डॉ मुकेश 'असीमित' July 5, 2025 Book Review 1 Comment ‘गिरने में क्या हर्ज़ है’ एक बहुआयामी व्यंग्य संग्रह है जिसमें डॉ. मुकेश असीमित ने समाज, राजनीति, शिक्षा और चिकित्सा जैसे क्षेत्रों की विसंगतियों को… Spread the love
मैं तेरे नाम से-कविता -हिंदी Vidya Dubey July 3, 2025 हिंदी कविता 2 Comments विद्या पोखरियाल की यह कविता एक माँ की गहन भावनाओं की अभिव्यक्ति है, जो अपने बच्चे के नाम से अपना अस्तित्व गढ़ना चाहती है। वह… Spread the love
संगिनी-कविता-बात अपने देश की Aasha Pallival Purohit Aashu June 26, 2025 Poems 0 Comments यह कविता एक मौन, निःस्वार्थ संगिनी की बात करती है — परछाई की, जो जीवन भर साथ चलती है, बिना शिकायत, बिना अपेक्षा। वो सिर्फ… Spread the love
तीन रोटियों की माँ”(कमी, ममता और संघर्ष) Wasim Alam June 25, 2025 कहानी 2 Comments इस चित्र में झलकती है एक ऐसी औरत की कहानी, जो दिन भर अस्पताल की सफ़ाई करती है लेकिन असल में अपने जीवन की जद्दोजहद… Spread the love
मेडिकल का आँचलिक भाषा साहित्य – बिंब, अलंकारों, प्रतीकों से भरपूर डॉ मुकेश 'असीमित' June 8, 2025 Blogs 1 Comment “डॉक्टर साहब, आपकी पढ़ाई अपनी जगह… हम तो इसे ‘नस जाना’ ही मानेंगे!” ग्रामीण चिकित्सा संवादों में हर लक्षण का एक लोकनाम है — ‘चक… Spread the love
पुरुष्कार का दर्शन शास्त्र डॉ मुकेश 'असीमित' May 13, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments पुरस्कारों की चमक साहित्यकारों को अक्सर पितृसत्ता की टोपी पहना देती है। ये ‘गुप्त रोग’ बनकर छिपाया भी जाता है और पाया भी जाता है,… Spread the love
“Roses and Thorns” : मेरी एक नई तीखी-मीठी उड़ान! डॉ मुकेश 'असीमित' April 27, 2025 Blogs 0 Comments Roses and Thorns – a satire bouquet straight from the OT (Operation Theatre) of an orthopedic doctor turned wordsmith. No enlightenment. No “6-pack abs” philosophy.… Spread the love