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उनके होंठ-कविता -बात अपने देश की

धुएँ के छल्ले बनाते होंठ, जो मिसाइलों में बदलते जा रहे हैं — सत्ता, झूठ और युद्ध के प्रतीक के रूप में।

उनके गोल-गोल होंठ
बोलने से पहले निकलते आगे
जैसे हवा में बनते धुएँ के छल्ले
और वे इस क़दर बोलते
दोनों लब ही हों उनके दिल और दिमाग़ जैसे।

दिल और दिमाग़ नाम की कोई चीज़
हों भी यदि उनके पास
शायद काम नहीं करते वे ठीक से
मुमक़िन यह भी है कि नफ़ा-नुक़सान का
मामला हो हरदम जहाँ
खुदगर्ज़ी ही हो निशाना जहाँ
दिल के साथ दिमाग का तक़रार होती है वहाँ।

झूठ को सही और दादागिरी साबित करने में
करता रहे जिसका दिमाग़ गुना-भाग
दिल उस शख़्स का कैसे निभाए
उसके ही दिमाग का साथ
इसलिए मिला है होंठों को ही यह ज़िम्मा
जब जो मन किया उगल दिया
जब मन किया पलट लिया
कहीं सीज़फायर किया तो
कहीं एयर स्ट्राइक करवा दिया।

हर वो मुल्क़ आज ख़तरनाक है
उसकी जो नहीं सुनता
ख़तरा है वह जम्हूरियत और अमन के लिए
दूसरे का परमाणु भंडार चुनौती है
विश्व शांति के वास्ते
उसके एटमी हथियार बम नहीं
फूलों की बारिश कर अमन-चैन का संदेश देते
इसलिए उसके होंठ सोचने से पहले
तक़रीरों का गोला दागते
बयानों के रॉकेट छोड़ते
जो शांति में अशांति-रस घोलते।

और फ़िर जंग की भट्ठियों में
सेंक अपनी सियासी रोटियाँ
कर इज़ाफ़ा अपनी तिज़ारत में
दुनिया को भरमाए रहते
मक़सद अपना मुक़म्मल करने में।

परिचय
नाम: वीरेन्द्र नारायण झा।
जन्म: 1954, समया, झंझारपुर, मधुबनी, बिहार।
शिक्षा: एम. ए. (अर्थशास्त्र)।
सृजन: दर्जनों वैचारिक आलेख, कहानी, लघुकथा, व्यंग्य व कविता हिंदी-मैथिलि की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। नियमित व्यंग्य स्तम्भ लेखन का अनुभव: हिंदुस्तान दैनिक, सन्मार्ग, प्रभात खबर, आज की जनधारा, राष्ट्रीय सागर, अनुपम उपहार, युग की नई सोच, समकालीन तापमान, समकालीन अभिव्यक्ति व अन्य पत्रिकाएँ।
वागर्थ, हंस, निकट, विश्वगाथा, किस्सा कोताह, पलाश, प्राची, किस्सा, वीणा व अन्य पत्रिकाओं में कई कथाएँ व लघुकथाएँ प्रकाशित।
अट्टहास, व्यंग्य यात्रा व अन्य पत्रिकाओं में व्यंग्यकथा प्रकाशित।
कई लधुकथाएँ मराठी में अनूदित।
प्रकाशित कृतियाँ:
मैथिली: जीबाक बाट (कथा संग्रह), हास्य पर व्यंग्य फ्री, ठाँहि-पठाँहि व व्यंग्य मेकिंग इन विलेज (सभी व्यंग्य संग्रह)।
हिंदी: भगवान भरोसे (लघुकथा संग्रह)। भूख, एक स्वांग ऐसा भी और वह लड़की (सभी कहानी संग्रह)।
मस्त पस्त मुरारी जी, निंदक दूरे राखिए, दे दे राम दिला दे राम, आए दिन फूल के, राइट टु गाली, आश्वासनों की बारिश और ये ईडी ईडी क्या है (सभी व्यंग्य संग्रह)।
शीघ्र प्रकाश्य: कविताओं का संकलन।

संप्रति: निजी संस्थान से अवकाश ग्रहण करने के पश्चात ग्राम्यजीवन व्यतीत करते हुए अध्ययन, स्वतंत्र लेखन व कई तरह की साहित्यिक गतिविधियाँ। कविता और लेखन के साथ पत्र-पत्रिकाओं के लिए नियमित स्तंभ लेखन।
साहित्य के साथ संगीत में भी अभिरुचि।

संपर्क: वीरेन्द्र नारायण झा
ग्राम: समया, पत्रालय: मेंहथ-847404, वाया: झंझारपुर, जिला: मधुबनी (बिहार) मिथिला।

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