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उठ ,चल ,फिर दौड़-Poems-Hindi

एक युवा धावक सड़क पर धूप ढलते समय पूरी ऊर्जा से दौड़ता हुआ दिखाई दे रहा है। पृष्ठभूमि में पीले-नारंगी आकाश है और उस पर हिंदी में लिखा है: "उठ, चल, फिर दौड़, अपनी राह को लक्ष्य की ओर मोड़।"

उठ ,चल ,फिर दौड़ ,
अपनी राह को लक्ष्य की ओर मोड़ ।
तू गिरेगा गिराया भी जाएगा,
कभी कोई तुझे थामेगा ,कभी खुद लड़खड़एगा ,
सोच ,समझ ,संभल ,
अपनी राह में अकेला चल ।

तू पसीने से हो जा तर बतर,
तू दौड़ में छोड़ना नहीं कोई कसर ,
तू इस पसीने को मोती सा बना दे ,
तू इस पसीने को माथे पे सजा दे ,
उठ,चल फिर दौड़ ,
अपनी राह को लक्ष्य की ओर मोड़।

तू गर्दिश में सितारा बनेगा ,
जब हर बुराई से किनारा करेगा ,
कंकड़ पथरीला रास्ता भी आएगा ,
तेरा पैर लहूलुहान हो जाएगा ,
देख ,सोच ,फिर कर ,
खोज तू अपनी नई डगर ।

ऐसे ही तुझे आगे बढ़ाना है,
निराशा से जी नहीं भरना है ,
अगर निराश तू हो जाएगा ,
डगर से निशां भी मिट जाएगा ,
तेरी मंजिल ही तेरा निशाना है ,
जो तुझे ही उसे पाना है ।

बिना संघर्ष के कोई महान नहीं होता ,
बिना जीत के कोई जयकार नहीं होता ।
उठ ,चल फिर दौड़ ,
अपनी राह को लक्ष्य की ओर मोड़ ।

विद्या पोखरियाल
बैकुंठपुर
छत्तीसगढ़

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