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जय भारत वंदेमातरम्!वंदेमातरम्!!

यह कविता भारत-जन के महा स्वरों की गूंज “वंदेमातरम्” से शुरू होकर राष्ट्रहित, देशभक्ति, असल–नकली देशप्रेम, मीडिया की गिरावट, आतंकी तत्वों की धूर्तता और नागरिक कर्तव्यनिष्ठा जैसे मुद्दों पर तेज़ और सीधी चोट करती है। व्यंग्य और राष्ट्रभाव का मेल इसे और प्रभावी बनाता है। यह रचना केवल भावुक नहीं—एक चेतावनी, एक संदेश और एक सख्त सामाजिक निरीक्षण भी है।

जय भारत
वंदेमातरम्!वंदेमातरम्!!

भारत-जन का महा स्वरम्, वंदेमातरम्!
हर देशभक्त का प्रथम धरम्, वंदेमातरम्!
करें राष्ट्रहित में सदा शुभ करम्, वंदेमातरम्!
जनशत्रुओं को सन्निपात ज्वरम्,वंदेमातरम्!!

नमक हरामों गद्दारों की भारत में है भरमार!
डॉक्टरों के भेष में भी छिपे हैं आतंकी खूंखार!
समुचित सुरक्षा व्यवस्था में सक्रिय है सरकार!
देशभक्ति कर्तव्यनिष्ठा की नागरिकों से दरकार!!

समाचारों की कमीनी मंडी कड़ी कंगाल है!
झूठी खबरें यहां बहुत बड़ा बिकाऊ माल है!
बाजारू तत्व पत्रकार के रूप में दलाल हैं!
कानूनी शिकंजा क्यों नहीं!मासूम सवाल है!!

नमकहरामों ने बडी खतरनाक मनमानी कर डाली!
देश में आग लगेगी!कह-कह भयंकर आग लगा ली!
जागरूकता संग बढ़ रही वीरों की आंखों की लाली!
दोषियों को कठोर दंड देकर होगी भारत की रखवाली!!

जो जितना ज्यादा भोग रहा एशोआराम!
वो बेईमान उतना ही मचाता है कोहराम!
उनके लिए कुदरत ने लिखा है बडी बेदर्दी से!
महा भयंकर बहुत-बहुत खतरनाक अंजाम!!

दरिंदों की जिदंगी का सफर खतरनाक खूनी है!
इंसानियत विरोधी फितरत सनकी जुनूनी है!
आतंकियों की दिमागी हालत भटकी सूनी है!
कुदरती व्यवस्था जबरदस्त रूप से कानूनी है!!

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