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“एक अमूर्त चित्र जिसमें ध्यानमग्न मानव आकृति के भीतर से निकलती सुनहरी किरणें बाहरी ब्रह्मांड में विलीन हो रही हैं — जो आत्म से विश्व तक की चेतना यात्रा का प्रतीक हैं।”

आत्मबोध से विश्वबोध तक — चेतना की वह यात्रा जो मनुष्य को ‘मैं’ से ‘हम’ बनाती है

“मनुष्य की सबसे लंबी यात्रा कोई भौगोलिक नहीं होती — वह भीतर जाती है। आत्मबोध से विश्वबोध तक की यह यात्रा ‘मैं’ से ‘हम’ बनने…

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“अमूर्त रेखाचित्र में एक उजली धरती के रूप में भारत, जिसके केंद्र से उठती है लाल और केसरिया रंगों की श्वास-जैसी लहर — जो ‘वंदे मातरम्’ के स्वर का प्रतीक है।”

स्वाभिमान का स्वर: 150 वर्ष वंदे मातरम्

“वंदे मातरम् केवल दो शब्द नहीं, एक दीर्घ श्वास है जो इस उपमहाद्वीप की नसों में आज भी बहती है। डेढ़ सदी बाद भी यह…

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एक व्यंग्यात्मक कार्टून चित्र जिसमें एक नेता मदारी के रूप में मंच पर खड़ा है, हाथ में डुगडुगी लिए “मुद्दे की चुहिया” को पिंजरे से बाहर निकाल रहा है। चुहिया बड़ी होकर हाथ में “लोकतंत्र” का झंडा पकड़े मंच पर नाच रही है। नीचे जनता तालियाँ बजा रही है, कुछ पत्रकार कैमरा लिए लाइव प्रसारण कर रहे हैं। पृष्ठभूमि में “संसद” का भवन दिख रहा है — और मंच पर बैनर लिखा है: “मुद्दा शो – लाइव टुडे!”

मुद्दों की चुहिया – पिंजरे से संसद तक

मुद्दा कोई साधारण प्राणी नहीं — यह राजनीति की चुहिया है, जिसे वक्त आने पर पिंजरे से निकालकर भीड़ में छोड़ दिया जाता है। झूठे…

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एक व्यंग्यात्मक चित्र जिसमें एक मोटा अमीर व्यक्ति तिजोरी के ऊपर बैठा है, तिजोरी का ताला खोलने की बजाय रोटियों के टुकड़े गिन रहा है; उसके आसपास मोमबत्ती की मद्धम रोशनी, आधा खाया बिस्किट, और नोटों के ढेर पर धूल जमी हुई है — प्रतीकात्मक रूप से “कंजूस करोड़पति” की मानसिकता दर्शाते हुए।

कंजूस मक्खीचूस-हास्य व्यंग्य रचना

कंजूस लोग धन को संग्रह करते हैं, उपभोग नहीं। मगर यह भी कहना होगा कि ये लुटेरों और सूदखोरों से फिर भी भले हैं—क्योंकि कम…

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“एक आधुनिक संत लग्ज़री कार के पास खड़ा है, भगवा वस्त्रों में, गले में रुद्राक्ष और हाथ में मोबाइल, पीछे भक्तों की भीड़ और मंदिर। व्यंग्यात्मक कला में चित्रित संत संस्कृति की विडंबना।”

आधुनिक संत-व्यंग्य कविता

बैरागी बन म्है फिरा, धरिया झूठा वेश जगत करै म्होरी चाकरी, क्है म्हानें दरवेश क्है म्हानें दरवेश, बड़ा ठिकाणा ठाया गाड़ी घोड़ा बांध, जीव रा……

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एक पंक्ति कार्टून: टोल-प्लाज़ा मजार जैसा दिखता है; टेंडर-पकड़ा अफ़सर और मुस्कुराता देवता पेटी में नोट लेते दिख रहे हैं; ड्राइवर चढ़ावा चढ़ाकर रसीद मांग रहा — व्यंग्यात्मक सैटायर।

चढ़ावा-प्लाज़ा: जहाँ देवता भी टोल टैक्स लेते हैं

सड़कों पर “देवता-तोल” का नया युग — जहाँ खतरनाक मोड़ और पुल नहीं, बल्कि चढ़ावे की रसीदें आपकी जान बचाती (या बिगाड़ती) हैं। सरकार टेंडर…

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Minimalistic artwork showing a cracked traffic light dripping a tear-shaped drop of red, representing human loss and systemic apathy toward road safety.

हादसों का इन्तजार है

देशभर में बढ़ते सड़क हादसे अब सिर्फ समाचार नहीं, बल्कि हमारी संवेदनहीन व्यवस्था का आईना हैं। जहाँ नियम पालन करने वाले मरते हैं, और व्यवस्था…

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A split-scene satirical cartoon showing Indra’s divine court on one side and chaotic modern Earth on the other, with Narad Muni holding a microphone between the two worlds, symbolizing the fall of humanity amid heavenly irony.

देवलोक का अमृतकाल बनाम मृत्युलोक का पतनकाल

देवराज इंद्र की सभा के बीच अचानक नारद मुनि माइक्रोफोन लेकर प्रकट होते हैं और देवताओं को बताते हैं कि अब असली अमृतकाल मृत्युलोक में…

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“मंच पर चमकदार ‘विपणन’ लेखक और कोने में शांत ‘विरासत’ लेखक; आगे तराजू में विपणन भारी, फिर भी जड़ों से गहराई की बूंद धरती में उतरती—मिनिमल कार्टून इलस्ट्रेशन।”

विरासत बनाम विपणन — परिमाण में वृद्धि, गुणवत्ता में गिरावट

“साहित्य के बाजार में आज सबसे सस्ता माल है ‘महानता’। पहले पहचान विचारों से होती थी, अब फॉलोअर्स और लॉन्च-इवेंट से होती है। व्यंग्य अब…

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