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साल की विदाई: क्या भूलूं, क्या याद करूं?

saal ki vidaai

यह वर्ष अपने अंतिम पायदान पर है, और हम सब एक नई छलांग लगाने की तैयारी में हैं। कल एक नया सवेरा, नया साल, और नया सूरज लेकर आएगा। पर मन पूछता है—क्या भूलूं, क्या याद करूं? समय की इस गहरी घाटी में झांकते हुए, ऐसा लगता है जैसे हर बीतता साल हमारे जीवन की एक नई परत उधेड़कर हमें आत्मचिंतन का मौका देता है।

यह साल, जो अब अतीत बनने को है, अपने साथ कुछ मधुर स्मृतियों का उपहार लेकर आया, तो कुछ टूटे हुए वादों का गवाह भी बना। कुछ हासिल हुआ, तो कुछ करने का सपना अधूरा ही रह गया।मसलन इस बार पोस्ट कम हुईं, रीलें भी फीकी रहीं। यात्रा के फोटोग्राफ्स जो साझा होने थे, वे फोन की गैलरी में ही धूल फांकते रहे। कुछ लोगों को जरूर निराश किया, खासकर वो जो सिर्फ मेरे फैमिली फोटोज़ देखने के लिए मेरे दोस्त बने थे। आर्काइव में पड़े हुए पुराने फोटोज़ से ही उन्होंने किसी तरह यह साल काटा। क्या करें, दोस्तों? शायद अगले साल भी आपको निराशा हाथ लगे, क्योंकि मैं वही दिखाऊंगा जो मुझे अच्छा लगेगा।

हाँ, अगर आप लिखने-पढ़ने के शौकीन हैं, तो मेरी वॉल पर दिल से आपका स्वागत है।

साल बीते, पर स्मृतियां हमेशा जिंदा रहेंगी। नए साल में नए रंग भरें, और जो अधूरा है, उसे पूरा करें। कुछ वादे थे, जो साल की शुरुआत में किए थे। उनमें से कुछ तो पहले महीने की ठंड में ही दम तोड़ गए, और कुछ दो-चार महीने साथ चले, फिर अलविदा कह गए। फ़ोटोग्राफ़ी जैसे पुराने शौक इस साल भी मेरे वर्क डेस्क की शेल्फ पर धूल खाते रहे। साल के अंत में, ऐसा लगा जैसे दिसम्बर जामवंत रूप में हनुमान जी को याद दिला रहा था —‘अरे, तुम्हारे भीतर कितना सामर्थ्य है!’ वैसे ही मैंने खुद को याद दिलाया कि इस शौक को फिर से जिंदा करना है।

वज़न घटाने और सुबह की सैर के इरादे तो इस साल भी “सेंसेक्स” की तरह ऊपर-नीचे होते रहे। कभी पूरे जोश के साथ, तो कभी बिलकुल ठंडे। दोस्त कुछ पुराने छूटे, कुछ नए जुड़े। भ्रम टूटे, और कुछ रिश्तों ने अपना असली रंग दिखा दिया। संस्थाएं बदलीं, तेवर बदले ,लेकिन जो अपने थे, उन्होंने अपनापन बनाए रखा।

भूल-चूक लेनी-देनी, साल २०२४ । दिल पर मत लेना साल…अलविदा । कोशिश तो बहुत की थी कि हर रिश्ते का साथ अच्छे से निभाऊं, हर फिक्र को धुएं में उड़ाऊं। लेकिन धुआं उड़ाने का जोश श्रीमती जी ने कोरोना समय से ही ठंडा कर रखा है ।

इस “डिजिटल उदासी” का असर कुछ ऐसा हुआ कि कई मित्र नाराज़ होकर अनफ्रेंड कर गए। लेकिन जो बचे, वे शायद उन्हीं रुचियों के साथी थे, जिनमें साहित्य, कला और विचारों की गहराई थी। यह साल जैसे एक सफाई अभियान बन गया—सोशल मीडिया की दीवारों पर जमी धूल झाड़ी गई, पुराने रिश्तों के जाले हटाए गए, और इसके साथ ही मन की दीवारों को नए रंग-रोगन से तैयार किया गया।

अब, यह नया साल आएगा। शायद यह साल किसी गरमाहट भरी धूप की तरह हो, जो हमारी ठिठुरी हुई उम्मीदों को तपाकर उन्हें ऊर्जा में बदल दे। मन की इस दीवार पर अब नई स्मृतियों के रंग बिखेरने हैं, उन लम्हों को उकेरना है, जो सजीव हों, जीवंत हों।

उम्मीदों की दहलीज़ पर खड़ा अगली सुबह के सूरज का इंतज़ार । एक ऐसी रोशनी, जो मन को रोशन करे और जीवन के अंधेरों को हर ले।

आइए, इन दीवारों को तुम और मैं मिलकर नए रंगों से उकेरें , एक ऐसी कहानी लिखें जो हमें हर पल याद दिलाए कि यह जीवन हमारी अपनी बनाई हुई कलाकृति है।

सभी को नववर्ष की अग्रिम शुभकामनाएं !

सादर

डॉ मुकेश असीमित

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