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डॉक्टर साहब, आप तो भगवान हैं।

A caricature of a tired-looking doctor in a white coat gazes upwards in confusion, while a giant hand from above points down at him, symbolizing moral judgment or divine expectation.

तुम भगवान हो, तो गलती नहीं कर सकते — क्योंकि इंसान की तो गलती माफ़ होती है। अब जब भगवान बना दिया है, तो ये भी जान लो… इंसानों के हक़ मांगोगे, तो चोला उतार फेंका जाएगा। क्या कहा? छुट्टी चाहिए? भगवानों को छुट्टी नहीं मिलती… बस पूजा मिलती है या पत्थर!‘”

“पता नहीं, यह डॉक्टर के लिए कॉम्प्लिमेंट है या उससे इंसान बने रहने का अधिकार छीनने की एक कोशिश… मैं न कुछ ज्यादा ही बाल की खाल निकाल रहा हूँ शायद …”

“मुझे कहाँ ढूंढें , बंदे…”  एक भजन गाया  जा रहा था दूर कहीं किसी सत्संग में…..मुझे लग रहा था शायद वो धर्मोपदेशक जी अगली लाइन में किसी डॉक्टर की जी पि एस लोकेशन दे दे.. । मैं भी कुछ ज्यादा ही प्रतिक्रियावादी  हो गया हूँ..नहीं ,उसकी उंगली ऊपर की तरफ ही है…थँक्स गॉड..!

समाज के दिए इस  झूठ और छलावे में जी रहे डॉक्टर शायद खुद ही कन्फ्यूज़ हैं… उनकी पहचान रोज़-रोज़ बदल रही है… कभी भगवान, कभी शैतान… बस इंसान की पहचान उनसे छीन ली गई है। “तुम्हें इंसान बने रहने का हक़ नहीं। ऐसे कैसे इंसान बन जाओगे तुम इस धरती पर? यहाँ या तो भगवान रह सकते हैं या शैतान। इंसानों के लिए यह धरती बनी ही नहीं। और तुम हो की  इंसान कहलाने का हक़ माँग रहे हो?” जो तुम्हे भगवान् का दर्जा दे रहे हैं..उनकी खुद की पहचान भी अधझूल में है.. कम से कम तुम्हे तो एक तमगा दे रहे हैं न…तनिक मुस्कराओ…खुश हो जाओ..धरती के भगवान् ..!

इंसान हक़ की माँग करता है। इंसान होगा तो उसे भूख भी लगेगी, प्यास भी लगेगी, उसे परिवार चाहिए, बच्चे चाहिए, हंसी चाहिए, खुशी चाहिए, छुट्टी, आराम, नींद, मनोरंजन—ये सब की माँग करेगा। अपने इमोशन की दुहाई देगा, भावनाओं की दुहाई देगा। “नहीं! बहुत देख लिए हमने इंसान। इंसान है कि इनका रोना खत्म ही नहीं होता। नहीं, तुम भगवान ही बने रहो, क्योंकि यहाँ भगवान और शैतान बस दो ही रूप हैं, जो कभी भी अदल-बदल सकते हैं। इंसान का चोला अब रहा ही नहीं। खत्म। बस दो चोले हैं—कौन सा पसंद है? उल्टा करो शैतान का, सीधा पहन लो भगवान का।”

फिर हम हैं न, हमें सब पता है, हमें सब दिखता है… तुम कब भगवान हो, कब शैतान। “चोला कब उतार कर पकड़ा दें तुम्हे , कब तुम्हें सरेआम नंगा कर दें, कब तुम्हें मारना है, गरियाना है—सब हमारे हाथ में है।”

एक मरीज़ काउंटर पर बिल अदा कर रहा था, वह रिसेप्शनिस्ट से लड़ रहा था, “डॉक्टर भगवान होते हैं, फिर ये किस बात का बिल? भगवान तो धन-दौलत से परे होते हैं न?”

एक मरीज़ मेरे ओपीडी रूम में भगवान को गालियाँ दे रहा है, “हे भगवान, ये तूने क्या किया? मेरे साथ ही ऐसा क्यों?”

मैंने उससे कहा, “यार थोड़ा स्पष्ट करो… किस भगवान को कोस रहे हो, धरती वाले को या ऊपर वाले को?”

दरअसल मैंने उसे फ्रैक्चर बता दिया है … उसे विश्वास नहीं हुआ… बस इसी बात का दुःख है उसे… ।भगवान से यह आशा नहीं थी… मामूली चोट ही तो लगी थी… लेकिन भगवान ने ये क्या किया… मामूली चोट में ही फ्रैक्चर निकाल दिया… । “ये सारी जांचें, एक्स-रे लैब… आदमी को बीमार करने के लिए बनाई हैं… । ये धरती के भगवान की चाल है… । पहले जांचों से बीमार करो , फिर बीमारी ठीक करने के नाम पर लूटो… हे धरती के भगवानो, थोड़ा तो रहम करो…।”

“तुम्हें कोरोना काल में क्या सिर पर चढ़ा लिया, तुम्हारे लिए तालियाँ बजवा दीं, तुम तो सिर पर ही नाचने लगे… दे दिया न तुम्हें क्रेडिट … फूल-माला पहनवा दीं… सरकार ने भी कह दिया.. हाँ… धरती के भगवानो, शुक्रिया तुम्हारा… । पहली बार सरकार को लगा की कोरोना की लड़ाई में उनके वायदे ,घोषणाओं,चिंताओं,थाली बजवाने,तालियाँ बजवाने  और मगरमच्छी आंसू बहाने के आलावा धरती के भगवानों का भी हाथ था ।  तुम हो कि उसी लबादे को ओढ़े चले आ रहे हो… गया कोरोना… अब उतर जाओ चने के झाड़ से नीचे…”

डॉक्टर को भगवान का दर्जा देना भी इसलिए ज़रूरी है। “गलतियाँ इंसान से होती हैं, भगवान से नहीं। अब तुम्हें भगवान का दर्जा दे दिया है न, अब तुम गलती करके दिखाओ। हमें एक पल भी नहीं लगेगा तुम्हारे ऊपर से भगवान का चोला उतारने में।”

सुनिएगा, “हमने भगवान बनाए हैं तुम लोगों को, हम भगवान से ही उम्मीद कर सकते हैं न किसी चमत्कार जैसे नतीजे की—मौत के मुँह से भी जिंदगी को खींचकर वापस लाने की।” क्या कहा? डॉक्टर की सीमा है? आखिर वह भी इंसान है। “मजाक है क्या? भगवान हैं, उनकी कैसी सीमा?”

सीमा तो न शैतान की होती है, न भगवान की। ये रूप भी न बदलता रहता है। मरीज़ जब कैजुअल्टी में आता है, तो डॉक्टर को भगवान का दर्जा। “जब बिल देना होता है, तब शैतान का दर्जा।”

डॉक्टर भगवान हैं, उसके साथ क्या अन्याय हो सकता है?  नहीं जी..हुआ है …विशवास करो..रोज होता है..”भाई, उसके साथ अत्याचार हुआ है, उसे मारा गया है, उसका बलात्कार हुआ है।

झूठ है सब…! भला भगवान के साथ कोई ऐसा कर सकता है? निश्चित ही शैतान होगा भगवान के भेष में।”

क्या कहा, सब भगवान हड़ताल पर जाएंगे? “यह तुच्छ काम इंसान करते हैं, उनके हक़ के लिए हड़ताल होती है। यूनियन बाजी इंसानों का काम है ,डॉक्टर भगवान हैं। देखो, मरीज़ मर रहे हैं, डॉक्टर हड़ताल पर चले गए।”

भगवान को तो 24×7 ड्यूटी पर रहना चाहिए। “यह हगना-मूतना तो इंसान का काम है। भूख इंसान को लगती है। यहाँ मरीज़ मर रहे हैं और उधर देखो, भगवान खाना खा रहे हैं। बताओ!”

अरे यार, आज तो गजब हो गया। ” मैंने बीच सड़क पर चार इंसानों जैसी शक्ल वाले लोगों को एक  साथ खिलखिलाते देखा। एक दुसरे से मजाक कर रहे थे। हे भगवान, जाकर देखा तो डॉक्टर थे। यार, बताओ, हम तो इन्हें धरती के भगवान मानते हैं। थोड़ी शर्म भी है या नहीं? जो बीच सड़क पर हंसी-मजाक! अरे भगवान ऐसे करते हैं क्या? वह तो धीर, गंभीर, पत्थर सा बैठा रहना चाहिए। इसके मंदिर में उसका काम सिर्फ और सिर्फ अपने आपको भगवान कहलाने का है।”

अरे, ये तो कुछ नहीं। “मैंने अपने शहर में एक डॉक्टर को एक दिन पानी-पूरी के ठेले पर पताशी खाते देखा। वाह, गजब। डॉक्टर पताशी भी खाते हैं? वाह भाई वाह! बताओ, ये इंसानों जैसे शौक पाल रखे हैं डॉक्टर ने भी। ज़माना वाकई खराब आ गया है यार, कोई अपने चोले में रहना ही नहीं चाहता, सब इंसान बनने में लगे हैं। बताओ!”

अब इसे देखो… “आजकल लिखने का शौक चढ़ रहा है। बताओ, छोड़कर डॉक्टर, लिखने लगा है। अब कौन कहेगा इसे भगवान। थोड़ा अपने बिरादरी का तो ख्याल करता।”

तभी पीछे से किसी ने जोर से मेरे कंधे पर  थपकी मारी । मेरी तंद्रा टूटी। देखा तो मेरा एक सहकर्मी खड़ा हुआ था। मैं मुस्कुरा दिया—बिल्कुल इंसान की मुस्कराहट मेरी। “मुझे लगा जैसे मेरे भगवान का चोला खिसकता जा रहा है।”

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’

(लेखक, व्यंग्यकार, चिकित्सक)

निवास स्थान: गंगापुर सिटी, राजस्थान 
पता -डॉ मुकेश गर्ग 
गर्ग हॉस्पिटल ,स्टेशन रोड गंगापुर सिटी राजस्थान पिन कॉड ३२२२०१ 

पेशा: अस्थि एवं जोड़ रोग विशेषज्ञ 

लेखन रुचि: कविताएं, संस्मरण, लेख, व्यंग्य और हास्य रचनाएं

प्रकाशित  पुस्तक “नरेंद्र मोदी का निर्माण: चायवाला से चौकीदार तक” (किताबगंज प्रकाशन से )
काव्य कुम्भ (साझा संकलन ) नीलम पब्लिकेशन से 
काव्य ग्रन्थ भाग प्रथम (साझा संकलन ) लायंस पब्लिकेशन से 
अंग्रेजी भाषा में-रोजेज एंड थोर्न्स -(एक व्यंग्य  संग्रह ) नोशन प्रेस से 

गिरने में क्या हर्ज है   -(५१ व्यंग्य रचनाओं का संग्रह ) भावना प्रकाशन से 

प्रकाशनाधीन -व्यंग्य चालीसा (साझा संकलन )  किताबगंज   प्रकाशन  से 
देश विदेश के जाने माने दैनिकी,साप्ताहिक पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में नियमित रूप से लेख प्रकाशित 

सम्मान एवं पुरस्कार -स्टेट आई एम ए द्वारा प्रेसिडेंशियल एप्रिसिएशन  अवार्ड  ” 

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