हां मैं एक औरत हूं, यही मेरी जात है ,
मैं कई रूप में हूं,मेरे कई हाथ हैं।
हां मैं एक औरत हूं ।
मुझसे ही ये दुनिया थी, और रहेगी,
फिर भी ये दुनिया ,कब तक मुझे कमजोर कहेगी ,
मैं ही सबके लिए करती मशक्कत हूं ।
हां हां मैं एक औरत हूं ।
मैं ही तुम्हारा पेट भरती,
मैं ही तुम्हारा घर संभालती,
मैं ही दुनिया में तुमको लाती,
मैं ही करती तुम्हारे सुख का इबादत हूं।
हां हां मैं एक औरत हूं ।
मुझसे ही ये दुनिया जीवित है,
यह बात जग विदित है ,
मैं ही तुम्हारी मोहब्बत हूं ,
मैं ही बहन और ममता की मूरत हूं ।
हां मैं एक औरत हूं ।
मेरे संग ही होता सारा समझौता,
मेरा ही दुनिया सर झुकाता ,
मै कभी मोम,कभी ज्वाला सी धधक जाती हूं ,
मै गोरी और काली की सूरत हूं ।
हां मैं एक औरत हूं ।
मुझसे ही अपना सुख दुख बांटते,
मुझे ही सरेआम डांटते ,
मै बेबस नहीं ,लाचार नहीं ,
मै नहीं ,तो संसार नहीं ,
मै करती तुम्हारी हिफाजत हूं ।
हां मैं एक औरत हूं ।
मुझसे ही संस्कार पाते ,
मेरी ही इज्जत तुम उतारते ,
फिर भी तुम पौरुष कहलाते ,
मै ही तुम्हारी इज्जत और शोहरत हूं
हां मैं एक औरत हूं ।
हां हां मैं एक औरत हूं ।

विद्या पोखरियाल स्वरचित रचना ✍️
बैकुंठपुर छत्तीसगढ़
Comments ( 6)
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विद्या पोखरियाल
5 months agoथैंक्यू 🙏❤️
Aadarsh
5 months agoWonderful poem
डॉ मुकेश 'असीमित'
5 months agoabhaar pratikiya ke liye
Saksham
5 months agoWaah waah
विद्या पोखरियाल
5 months agoआभार आपका आदरणीय 🙏