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अमरूद की अमर कथा

किट्टी पार्टी में सजी-धजी संभ्रांत महिलाएं, एक आलीशान फ्लैट के वातानुकूलित ड्राइंग रूम में बाढ़ पर्यटन की तस्वीरें और वीडियो देखते हुए, एक अधिकारी की पत्नी अपने अनुभव साझा करती हुई।

अमरूद की अमर कथा

यह जो आप देख रहे हैं…

यह आप देख ही रहे हैं, और कई पहचान तो गए ही होंगे — इसे अमरूद कहते हैं, अंग्रेज़ी में इसे ग्वावा कहते हैं।

‘न्यू बोर्न अमरूद ”

आप कहेंगे, “भाई इसमें क्या ख़ास है, जो इसकी तस्वीर पोस्ट की गई है? मतलब कुछ भी पोस्ट करेंगे? कुछ भी लिखेंगे? ये तो हद हो गई!”

तो तनिक ठहरिए मित्र, आपकी जिज्ञासा अभी शांत किए देते हैं।

दरअसल, हम अभी अपना सुबह का नाश्ता लंच टाइम में निपटा रहे थे कि हमारी नज़र डाइनिंग टेबल के कोने से पीछे, एक टेबल पॉश में गुदडी के लाल की तरह लपेटे हुए इस अमरूद पर पड़ी — परिवार के सदस्य और नीचे से हमारा स्टाफ इसको बार-बार देखकर, इसे गोदी में लेकर, प्यार से पुचकारते जा रहे थे। हमारे परिवार के एक सदस्य तो पड़ोसियों तक को ख़बर कर आए। पापा गर्व से सीना फुलाए पूरे घर में चक्कर लगा रहे थे। “होशियारी से गिरन पड़े “पापा ने हिदायत भी दे दी।

मालूम चला कि जैसे पिछले साल नींबू का जन्म हुआ था, जिसका जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया था, वैसे ही इस साल अमरूद का — इसका जन्म भी यूँ मानिए कि आज ही हुआ है।

यह अमरूद पापा की हड्डी-तोड़ मेहनत का, उनके हॉर्टीकल्चर (उद्यानिकी) अभियान का रोमांचपूर्ण अंश है।

एक छोटा-सा प्लॉट है, जिसे हम अपने मन बहलाने के लिए ग़ालिब वाले ख़याल से ‘फार्म हाउस’ कह देते हैं — जयपुर रोड पर है।

पापा ने वहाँ नर्सरी विकसित करके ढेर सारे पेड़ लगाए — हर इंच-इंच ज़मीन को पेड़ों और उनकी जड़ों से भर दिया। वहीं पर बीज बोआई ,कलम लगाना (कटिंग) ,गूठन तकनीक (मार्कोटिंग),कलम बाँधना (ग्राफ्टिंग),कलिकायन (बडिंग),संकरण (हाइब्रिडाइज़ेशन),टिशू कल्चर (ऊतक संवर्धन),वर्मीकम्पोस्टिंग (केंचुआ खाद बनाना),मल्चिंग (जैविक आवरण देना),ड्रिप सिंचाई प्रणाली (बूंद-बूंद सिंचाई)

,स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणाली (फव्वारा सिंचाई),प्रूनिंग (छँटाई) ,थिनिंग (अतिरिक्त कलियों/फलियों को हटाना)

,पिंचिंग (कोमल टहनियों को चुटकी से तोड़ना),ग्रीन हाउस खेती,पॉली हाउस खेती,हाइड्रोपोनिक्स (मिट्टी रहित जल आधारित खेती),एरोपोनिक्स (हवा में पोषण देने वाली तकनीक),बोनसाई निर्माण तकनीक, वर्टिकल गार्डनिंग (दीवारों पर बागवानी),टेरेस गार्डनिंग (छत पर बागवानी)

,किचन गार्डनिंग (रसोई उपयोग हेतु सब्ज़ियाँ उगाना) cकम्पोस्टिंग (जैविक खाद बनाना),कीट प्रबंधन तकनीक (जैविक व रासायनिक उपाय),फूलों की सजावट कला (फ्लॉवर अरेंजमेंट)— जो भी हॉर्टीकल्चर की तकनीकें हैं, उन्हें पापा यूट्यूब वीडियो से देखकर, सीखकर, अपनाते हैं।

पापा ने सब पेड़ लगाए — अमरूद, नींबू, अनार, आम, कटहल, लिसौड़े तक। जब से पापा के शौक़ का पारा चढ़ा, उनके मित्र लोग भी सब तथाकथित हॉर्टिकल्चर एक्सपर्ट की तरह व्यवहार करने लगे हैं । कहते हैं न, भारत में तो वैसे भी बिना बुलाए मेहमान की तरह सलाह भी , कहीं भी, कभी भी, राह चलते मिल जाtee हैं — फिर ये तो ठहरे मित्र!

तो कहने लगे — “लिख के ले लो! अमरूद कहाँ से लग जाएँगे! यहाँ की मिट्टी ऐसी नहीं है… अमरूद तो सिर्फ मधोपुर की मिट्टी में ही लग सकते हैं!”

लेकिन पापा ने इसे चुनौती की तरह लिया।

सबसे बड़ी समस्या यह आन पड़ी — अमरूद तो बाद में आएँगे, पहले अमरूद का पेड़ बालिग तो हो जाए, जिस पर अमरूद का गर्भाधान हो सके!

सबसे बड़े विलेन बने — पापा के प्रकृति-प्रेम के फलित होने में बाधा डालने वाले मोर और बंदर।

आदमी योनि से इतर अन्य जीव अपने कर्म पर विश्वास करते हैं, फल की चिंता नहीं करते — इसीलिए वो कभी इंतज़ार नहीं करते कि पेड़ बड़े हो जाएँ, तब फल खाएँ।

तो उनके द्वारा पेड़ों को नुक़सान पहुँचाने का कार्य बदस्तूर जारी रहा।

और इसका अप्रत्यक्ष लाभ यह हुआ कि पापा का वृक्षारोपण का कार्यक्रम भी इस सीमित जगह में बदस्तूर जारी रहा, क्योंकि हर साल 50 प्रतिशत ज़मीन दोबारा वृक्षारोपण के लिए उपलब्ध हो जाती थी!

लेकिन अब जबकि बात अमरूद के पेड़ पर अमरूद ही उगाने की आन पड़ी थी, तो पेड़ों पर आए अस्तित्व के संकट से उबारने के लिए पापा ने पूरे गार्डन को जाल की कैनोपी बनाकर ढँक दिया।

पिछले साल एक नींबू का जन्म होने से अति उत्साहित पापा, इस बार हमें दूसरा सरप्राइज़ देने के लिए कमर कस चुके थे।

आख़िर एक दिन उन्होंने अमरूद के पेड़ की डाली पर इस अमरूद को भ्रूणावस्था में देखा — उस दिन पापा बड़े गदगद थे।

आँखों में चमक थी, लेकिन हमें इसके बारे में नहीं बताया।

किसी को भी नहीं — बंदरों और मोरों को भी नहीं, जो रोज़ जाल के ऊपर उछलकूद करते हैं — कहीं उन्हें पापा के गुप्त ख़ज़ाने का पता न चल जाए!

और आज — यह अपने पूर्ण परिपक्व अवस्था में आ गया था।

घर ले चलने का दिन था।

डिलीवरी रूम से बाहर निकालने का दिन।

पापा धीरे से डाली से इसे अलग करके घर पर लाए हैं।

मुख-दिखाई की रस्म हो रही है।

पड़ोसियों को भी सूचना दे दी गई है।

बधाइयाँ गाई जाएँगी।

इस अमरूद के होने की ख़ुशी में बाज़ार से अमरूद लाकर सभी को खिलाए जाएँगे — ख़ासकर उन्हें बुलाया जाएगा, जिन्होंने यह लिखकर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी — “हो ही नहीं सकता अमरूद अपने यहाँ की मिट्टी में!”

अब यह 10–15 दिन तक फ्रीज़ में रखा जाएगा — रोज़ बाहर निकालकर इसके अलग-अलग कोणों से फोटो खींचकर, इसकी ऐतिहासिक जानकारी के साथ फैमिली व्हाट्सएप ग्रुप में साझा किया जाएगा।

यह एक कालजयी अमरूद है, जिसकी गाथा हमारे परिवार में आनेवाली सात पीढ़ियों तक गाई जाएगी।

मैं सोच रहा हूँ — इस हेरिटेज अमरूद को क्यों न म्यूज़ियम में रखवा दिया जाए?

यह निरूपित करता है — एक व्यक्ति की जीवंतता, संकल्प, समर्पण और द्वैतहीन विश्वास का प्रतिरूप|

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