अब ए.आई. भी ‘आई‘ बन सकती है!
✍️ डॉ. मुकेश असीमित
सुबह अख़बार हाथ में लिया तो एक खबर ने जैसे चाय में बिस्किट गिरा दिया —
“अब ए.आई. से पैदा होंगे बच्चे!”
मतलब अब ‘प्यार में धोखा’ नहीं, सीधा ‘कोड की कोख में होगा गर्भधारण!’
कृत्रिम बुद्धि अब कृत्रिम बुद्धिपुत्र को जन्म देगी।
इस दुनिया में हम क्यों आए… इसका कोई “नियर-टु-ट्रूथ” उत्तर हो सकता है तो यही कि शायद शादियाँ करने…
और शादियाँ क्यों कराई जाती हैं? ताकि महिला ‘माँ’ यानी कि ‘आई’ बन सके।
हमारे समाज में आज भी बिना ब्याही लड़की और बिना औलाद की स्त्री को अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता।
शादी होते ही लड़के और लड़की दोनों के माँ-बाप इस आस में लग जाते हैं कि घर में किलकारियाँ गूंजें, बधाइयाँ गायी जाएँ।
एक साल बीतते न बीतते ही पड़ोसी और रिश्तेदार रबर की तरह खिंचते हुए कानों में फुसफुसाने लगते हैं।
महिला के बाँझ होने की आशंका पर ‘शंका संवाद’ शुरू हो जाता है।
पति-पत्नी ने अब तक बच्चा क्यों नहीं किया — इस पर विचार-गोष्ठियाँ सजने लगती हैं।
“अभी तक बेबी प्लान नहीं किया?” — यह वाक्य जैसे लांछन बन जाता है। अपनी मर्दानगी को छुपाने का आधिकारिक बहाना माना जाने लगता है।
लड़की के घरवाले लड़के को दोष देते हैं, और लड़के के घरवाले लड़की को।
“शादी क्यों की अगर बच्चा ही नहीं करना था?”
शादी यहाँ होती ही है बच्चे पैदा करने के लिए।
फिर माँ-बाप को गंगा भी नहाना होता है — बिना पोते के मुँह देखे भला कोई गंगा कैसे नहा पाएगा?
फिर मरने के बाद माँ-बाप को स्वर्ग की सीढ़ियाँ भी चढ़नी हैं — वो भी तो उनका पोता ही पकड़कर चढ़वाएगा…वरना सीढ़ियाँ लुढ़क न जाएँ कहीं!
ए.आई. ने इस समस्या से निजात दे दी है — यह एक ‘खुशखबरी’ वाली खबर है।
ज़रा कल्पना कीजिए —
पति सुबह-सुबह ए.आई. लैब की ओर दौड़ रहा है।
पत्नी ने रोमांटिक मूड में पति को पुकारा —
“सुनिए! आज तो ए.आई. से हमारी प्रॉपर सेटिंग करवा ही दीजिए न?”
पति-पत्नी के बीच अब ए.आई. वह ‘वो ‘नाम का बिचौलिया बनकर आ गया है।
ए.आई. पति की मौजूदगी में ही पति के प्रतिपादन को लानत देते हुए कान में फुसफुसाता है —
“हैलो डार्लिंग! इमोशन 2.0 मॉडल से आज ओव्यूलेशन सिम्युलेशन कराऊँगा… आर यू रेडी ना?”
सोचिए, कितना अद्भुत होगा ये भविष्य —
अब विरहिणी की विरह की पीड़ा ख़त्म!
“रात भर करवटें बदलते रहे हम… आपकी कसम…” —ख़तम ..टाटा बाय बाय ..
तकिए से चिपककर आँसुओं की बारात निकालना — सब पुरानी बातें हो जाएँगी।
अब कोई पत्नी, विदेश गए सजनवा को ‘ज़ालिम सनम’ नहीं कहेगी।
अब न प्रेम-पत्र की ज़रूरत, न महबूब की गली!
न सुहागरात, न घूँघट उठाने की झिझक।
न बादाम-केसर वाला दूध, न फूलों से सजी सेज।
न चाँद, न सितारे, न बारिश की फुहार —
बस एक पेन ड्राइव, थोड़ी रैम और थोड़ा भावनात्मक एल्गोरिद्म —
बस, संतान तैयार है!
अब सात जन्मों का बंधन यूएसबी पोर्ट में “कनेक्शन एस्टैब्लिश्ड” से होगा।
डॉक्टर अब ये नहीं कहेगा —
“बधाई हो, बेटा हुआ है!”
बल्कि बोलेगा —
“बधाई हो! आपके ए.आई. गर्भाशय में सफलतापूर्वक जेएसओएन फाइल इम्प्लांट हो गई है। बच्चा स्वस्थ है — 512 जीबी का!”
(डिजिटल बधाई हो!)
यह नारी स्वतंत्रता की नई परिभाषा है।
अब कोई पति यह पूछने की हिम्मत नहीं करेगा —
“क्या आज मूड ठीक है? आज तो सरदर्द नहीं है तुम्हारा?”
पत्नी पहले ही कह देगी —
“ए.आई. से डेट फिक्स है, तुम घोड़े बेचकर सो जाओ।”
गृहस्थी के झगड़े भी समाप्त हो जाएँगे।
सासों को बहुओं की गोद भराई के लिए नौ महीने इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा।
डिलीवरी?
अब होम डिलीवरी, ऑफिस डिलीवरी, कार में डिलीवरी, ट्रेन या हवाई जहाज़ में — चलते, रोते, सोते, जागते — २४x७, जहाँ चाहे, वहाँ!
नर्सिंग होम की जगह अब खुलेंगे — ए.आई.-असिस्टेड आई क्लीनिक!
हर गली में एक “ए.आई. फर्टिलिटी कैफ़े” —
जहाँ मेन्यू कुछ ऐसा होगा —
• “बॉय विद पोएटिक इंस्टिंक्ट्स” — ₹4 लाख
• “गर्ल विद इंस्टाग्राम माइंडसेट” — ₹3.5 लाख
• “ट्विन्स विद आई.आई.टी. पैकेज” — ₹6.99 लाख (जी.एस.टी. शामिल)
सबसे मज़ेदार बात — अब हनीमून की भी ज़रूरत नहीं!
महंगे और लंबे हनीमून पैकेज की जगह बस एक हनीमून सॉफ़्टवेयर अपडेट कीजिए।
ए.आई. बोलेगा —
“आई फील योर इमोशन ,सिमुलेशन सक्सेसफुल !”
बस कमर कस लीजिए —
डिजिटल उड़ान की इस फ़्लाइट में आप बिना टिकट ही सवार हो चुके हैं।
यह उड़ान उड़ चुकी है — बेल्ट बाँध दी गई है — चाहकर भी अब उतर नहीं सकते!
मैं तो कहता हूँ —
“ख़याल इतना बुरा भी नहीं यार…”
बस डर इस बात का है कि
जमा बच्चा ए.आई. अपनी ‘आई’ से ये न पूछ बैठे —
“आई, मेरा असली बाप कौन है?”

— डॉ. मुकेश ‘असीमित’
(लेखक, व्यंग्यकार, चिकित्सक)
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बहुत ही अद्भुत और गजब का व्यांग
बेमिसाल कल्पना, चुटीली भाषा में और करारा व्यंग्य प्रतिस्थापित करते हुए — आधुनिकता की गोद में बैठी परंपरा की गहन और मार्मिक परख!
डॉ. असीमित की लेखनी फिर एक बार चौंकाती भी है, हँसाती भी है, और सोचने को मजबूर भी करती है। हार्दिक अभिनंदन साधुवाद डॉक्टर साहब आपकी लेखनी को लाखों नमन।
आभार आपका आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए
एआई पर बहुत ही करारा व्यंग्य है डा. साहब !! विश्वास नहीं होता कि एक चिकित्सक भी एक सुघड़ मन कवि भी होता है ।
किराएदार….भी पढ़ा व अन्य कविताएँ लेख भी पढ़ती रहती हूँ ।
करारे व्यंग्य के साथ सच्चाई से रुबरु किया है।धन्य है आपकी लेखनी व साहित्य की चीर फाड़ ।
आभार आपका ,आपकी स्नेहपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए..यह मंच आप सभी का है,आपके रह्च्नात्मक सहयोग के लिय इभी आभारी रहूँगा