रात का द्वितीय प्रहर आधा बीत गया था। थानेदार जी ने जैसे ही अपनी बेंत वाली आराम कुर्सी को उठा, थाने के मुख्य दरवाजे से हटा कर खुलें मैदान में रखी तो मुंशी जी समझ गये कि रात में अब कहीं नहीं जाना है सो अर्दली को इशारा कर छोटी सी तिपाई के साथ नमकीन व देशी दारु की बोतल गिलास समेत सामने रखवा दी।
थानेदारजी को शराब के नाम देशी ही पसंद थी। उनके मुताबिक पेट में जाने पहले ही ये ऐसा दिमाग को झटका देती कि एक झटके में ही सारी थकान फ़ुर्र। एकबार में ही हिसाब-किताब सब समझ में आ जाता है कि आज कितनी खप जायेगी।
एकबार किसी ने फाॅरेन वाली स्काॅच व्हिस्की की बोतल भेंटकर अपना काम तो निपटवा लिया था पर थाने दार जी को विदेशी व्हिस्की पची नही। स्वाद जरा ठीक था सो पीते ही गये, पीते ही गये, पर चढ़ी ही नही। सारी बोतल खत्म हो गयी पर होश ओ हवाश वैसा ही। न तो ज़बान लड़खड़ाई न डबल दिखा।
देर रात बाद, ज्यों ज्यों घड़ी चली कि व्हिस्की ऐसी चढ़ी कि पूरे थाने को उपर ले लिया।
उस रात सड़क पर हंगामें के साथ सारे करतब दिखा दिये, अफसरों के खिलाफ वर्षों की दबी घुटन की उल्टियां भी हो गई। अफसरों की बीबीयों से लेकर उनकी मां बहन सब एक कर दी, भरी सर्दी में गटर की नाली के पास गीले में रात भर पड़े रहे, वर्दी फटी सो अलग। और कोई होता तो उस दिन फीत- स्टार सब उतर जाते।
अच्छा हुआ जो अफसर बड़े समझूं थे, क़ीमत लेकर बचा लिया। भूतकाल की सेवा चाकरी काम आयी। जैसे ऊपरवाला पाप पुण्य का हिसाब रखता है, वैसे अफसरों में भी कहीं न कहीं लेन-देन वाला लेखा पढ़ा ही जाता है। एक फाॅरेन की बोतल ने खर्चा तो काफी करवा दिया पर सीख भी अच्छी खासी दे गयी।
जब भी फुर्सत में होते है तो मातहतों को यदा कदा सलाह देते कहते है – “याद रखना हर विदेशी भले वह इंसान हो या बोतल, धीरे धीरे अंदर तक मार करती है। सावधान रहना। हमारे राजा- महाराजाओं ने ऐसे ही इन लाल मुंह वाले इंसानों पर विश्वास किया था सो अपना राज ही गंवा बैठे। गुलामी करनी पड़ी सो अलग। नेताओं का भी यही कहना है – स्वदेशी खाओ स्वदेशी पियो। इंपोर्टेड के चक्कर में मत रहना। यही बर्बादी का रास्ता है। देशी गधी और परदेशी चाल”।
उस घटना बाद तो थानेदारजी के घर में फाॅरेन की वस्तु से लेकर लेडी फाॅरेनर तक सब निषेध हो गये, और हर देशी चीज प्यारी हो गयी।
आज जैसे ही देशी मदिरा हलक से उतरी कि गुन गुना उठे “दारु दाखां रो”। मुंशी जी समझ गये कि थानेदार जी लाइटर मूड में है। सो भोलेपन में अपनी लंका लुटा सकते है। ध्यान रखना होगा।
इतने में एक कस्बे का मवाली छोरा भागता थाने में आया और सीधे ही थानेदार जी के पांवों में गिर पड़ा। “साहब बचालो, आपके भरोसे हूं। पहले भी आपने बचाया है जो खर्चा लगेगा दूंगा पर केस दर्ज मत करना। और हाथों हाथ बगल में टंगे थैले में से एक देशी मदिरा की बोतल निकाली और उसके चारों ओर पांच सौ का नोट लपेट सुपुर्द किया। साहब बड़े ख़ुश हुए।
“क्या है ये स्साले बोलता क्यों नही।” थानेदारजी बोले।
मवाली – “साहब, पहले वादा करो ,साहब मेरे खिलाफ केस दर्ज मत करना फिर कहूं। हम मवालियों की औकात कितनी होती है आप सब जानते ही हो। अभय दो आपकी रैय्यत हूं।” कहते कहते पैरों को और जकड़न के साथ पकड़ लिए।
अरे बोल यार, क्या बात है स्साले पैर तोड़ेंगा क्या, हराम खोर ,जा किया वादा। अब तो कह दे। नही करुंगा तेरे खिलाफ कोई कार्रवाई। इतना कहते थानेदारजी के चेहरे पर पांच सौ रुपये के कीमत की मुस्कुराहट जो आ गयी थी।
मवाली -कुछ नही साहब , राह चलते किसी से थोड़ी हाथापाई हो गईं थी। वो लोग इधर आ रहे हैं। किसी तरह से भाग के आया हूं। मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज मत करना साहब। पहले से ही कोरट ने पाबंद कर रखा है। अब तो कोरट भी आगे ज़मानत नही देगी। ज़मानत जब्ती होगी सो अलग।
फिर रुक कर बोला- “साहब! आप जो कहेंगे सब कर दूंगा। टनाटन देशी माल आपके लिए देखा है एकदम फ्रेश, पेश कर दूंगा। तबीयत खुश हो जायेगी।”
इतने कुछ संभ्रांत वर्ग वाले लोग आ गये। मवाली को वहां देखते ही जोर जोर से कहने लग गये कि इसको गिरफ्तार करो। घर में घुसकर चोरी कर रहा था। जब हमने इसको पकड़ा तो चाकू निकाल कर हमको ही धमकाने लग गया। बड़ी मुश्किल से इसको पकड़ा और आपके पास ला रहे थे कि चकमा देकर भाग गया। इसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करो।
थानेदार जी समझ गये कि आज की दारू तो अब उतर ही गयी किसी तरह निपटारा करना होगा। ये संभ्रांत वर्ग को कोई नुक़सान तो हुआ नही है इसलिए कुछ भी लेना देना तो होगा नही। मवाली तो अपना परमानेंट ग्राहक है। सुविधा शुल्क का स्त्रोत बनाये रखना चाहिए, यही फायदे का सौदा है।
मुंशी जी को इशारा होते ही सबके बैठने का इंतजाम किया और सबको बिठा चाय पानी की मनुहार की।
एफआईआर लिखने केलिए दस्ती कागज़ मंगवाये। मवाली को अपने ही पीछे खड़ा कर, दो झापड़ रसीद की और मां बहन की गालियां दी। माहौल को देख मवाली भी समझ गया। हल्के हाथ की झापड़ से केवल आवाज ही आनी थी। चोटिल करना तो दिखावटी था।
आगे जैसे ही संभ्रांत वर्ग ने एफआईआर में लिखवाना चाहा कि
हमने इसे सोने की चेन चोरी करते पकड़ा है – तो मुंशी जी बोल पड़े भाई साहब – माल बरामदगी कहां है, दिखाइये। माल कितनी कीमत का था जो चोरी हुआ है और गर चोर को रंगे हाथों पकड़ा है तो माल जमाकर दिखाना होगा। सोने की चेन फिर कोर्ट से ही छूटेगी। गर चोर को पकड़ा है तो वह थाने में आपसे पहले क्यों और कैसे आया। हमारे सीसीटीवी कैमरा रिकॉर्ड में ये आपसे पहले आया हुआ है।
आपको ठोस सबूतों गवाहों समेत पेश करना होगा। ग़लत आरोप लगाते ही केस कोर्ट में उड़ जायेगा। आपकी और हमारी फजीहत होगी सो अलग। जो इस मवाली ने उल्टे आपके उपर मानहानि केस कर दिया तो लेने के देने पड़ जायेंगे। सोच समझ कर लिखवाओ।
मुंशी जी की आवाज कर्कश होती जा रही थी।
संभ्रांत वर्ग आपस में एक दूसरे का मुंह देखने लग गया ।
आगे एक वाचाल ने लिखवाना चाहा – “चोरी को छोड़ो, मवाली शराब पिये हुए था और मुंह से शराब की बदबू आ रही थी, यहीं केस बनाइये।”
अबकी थानेदारजी ने तुरंत आब्जेक्शन करते हुए कहा कि आपकी जानकारी के लिए बताना आवश्यक है कि एक तो शराब की हमेशा गंध लिखी जाती है बदबू नही। यह सरकारी मान्यता प्राप्त पेय पदार्थ है और सरकार द्वारा स्वयं इसका उत्पादन भी किया जाता है। साथ में मार्केटिंग भी करती है अतः शराब पीना कतई जुर्म नही है। शराब पीकर दंगा फसाद करना जुर्म है। मारपीट तो हुई ही नही अतः यह आरोप तो बनता ही नही है। शराब को बुरा बताकर आप क्या सिद्ध करना चाहते हो?
अब सुनो दूसरी बात, शराब जैसे सरकारी उत्पाद केलिए बदबू वाला बताना इस लोक कल्याण कारी सरकार का अपमान है जिसे मैं थानेदार होने के नाते कभी सहन नही करुंगा। ये शब्द आपको तुरंत वापस लेने चाहिए अन्यथा मुझे आपके विरुद्ध केस दर्ज करना होगा। ये कहते हुए थानेदारजी ने टेबल पर जोर से डंडा पटक दिया।
संभ्रांत वर्ग एकदम सहम गया और जी साहब जी कर रिरियाने लग गया। जो आगे खड़े थे वो धीरे धीरे पीछे खिसकने लग गये और पीछे खड़े तो बाहर जाने केलिए मुड़ ही गये थे। संभ्रांत वर्ग की इतनी ही औकात होती है।
इतने में थानेदार जी की आवाज आकाशवाणी की तरह गूंज उठी -मुंशी जी इनको जाने देने से पहले सबके नाम नोट करलो और सरकारी समय ख़राब करने और एक सभ्य व्यक्ति पर चोरी के आरोप लगाने की चेष्टा करने केलिए कलतक इनपर मुकदमा ठोक दो। स्साले कहां कहां से उठ के आ जाते हैं? रात भर लाॅक अप रखेंगे तो होश ठिकाने आ जायेंगे। बन गये स्साले सभ्य सुसंस्कृत।
जैसे ही मुंशीजी गेट बन्द करने लगे कि संभ्रांत वर्ग के एक बुजुर्ग ने स्थिति को समझ तुरंत अपनी जेब से पांच पांच सौ के पांच नोट निकाल टेबल पर रख, बाहर निकलने की अनुमति मांगी।
मुंशीजी ने नमस्कार का जवाब दिए बिना ही मौन स्वीकृति के रूप में संभ्रांत वर्ग को थाने से बाहर जाने की अनुमति दी और थाने के गेट आम आदमी की सेवार्थ खोल दिए गए।
आज एक बार फिर मवाली से किये वादे पर थानेदार जी खरें उतरें और मुंशी जी की पाजिटिविटी बड़ी काम आयी।

bahut he sundar wit humour se bharpoor rac hna …rochak