सुसरी माया का भटकाव-हास्य व्यंग्य रचना Ram Kumar Joshi December 1, 2025 व्यंग रचनाएं 3 Comments “डा. रामकुमार जोशी की यह व्यंग्यात्मक आत्मकथा सड़कों की भीड़ से ज्यादा वैवाहिक भीड़भाड़ की कहानी कहती है। सड़क पर दिखी ‘अज्ञात मोहतरमा’ ने एक… Spread the love
अब मेरा कौन सहारा: देसी इलाज, सरकारी योजनाएँ और छेदी लाल का व्यंग्य Ram Kumar Joshi November 23, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments सरकारी अस्पताल से बाहर निकलता छेदी लाल सिर्फ़ दवा की कमी से नहीं, टूटी परंपराओं और बदलती नीतियों से भी परेशान है। संधाणा के दिनों… Spread the love
प्रथम क्रांति भारत की (लक्ष्मी बाई ) Ram Kumar Joshi November 20, 2025 Hindi poems 1 Comment यह कविता 1857 की क्रांति के उन ज्वलंत क्षणों को पुनर्जीवित करती है जब मंगल पांडे की हुंकार से लेकर झाँसी की रानी की तलवार… Spread the love
थानेदार का वादा-हास्य व्यंग्य रचना Ram Kumar Joshi November 12, 2025 व्यंग रचनाएं 2 Comments “When the bottle climbs, memories fall — and so do official scruples.” “’Promise,’ said the Thanedaar — and the ledger smiled back with five hundred… Spread the love
आधुनिक संत-व्यंग्य कविता Ram Kumar Joshi November 9, 2025 हिंदी कविता 0 Comments बैरागी बन म्है फिरा, धरिया झूठा वेश जगत करै म्होरी चाकरी, क्है म्हानें दरवेश क्है म्हानें दरवेश, बड़ा ठिकाणा ठाया गाड़ी घोड़ा बांध, जीव रा… Spread the love
हादसों का इन्तजार है Ram Kumar Joshi November 5, 2025 समसामयिकी 0 Comments देशभर में बढ़ते सड़क हादसे अब सिर्फ समाचार नहीं, बल्कि हमारी संवेदनहीन व्यवस्था का आईना हैं। जहाँ नियम पालन करने वाले मरते हैं, और व्यवस्था… Spread the love
भय मुक्त भ्रष्टाचार-हास्य व्यंग्य Ram Kumar Joshi November 3, 2025 व्यंग रचनाएं 1 Comment “He dangled his legs on a high hanger and cursed everyone — from the central government to the department engineer.” “The British-era bridges stand a… Spread the love
रिस्क और रिश्वत-हास्य व्यंग्य Ram Kumar Joshi November 3, 2025 व्यंग रचनाएं 0 Comments “Rishvat is based on risk” — this new law of modern Indian economics explains it all. Whenever risk rises, the bribe amount inflates proportionally. From… Spread the love
गालों की लाली- हो गई गाली Ram Kumar Joshi October 20, 2025 संस्मरण 0 Comments “कभी सूर्योदय से पहले नहीं उठने वाले अब मुंह-अंधेरे ‘हेलो हाय’ करते जॉगिंग पर हैं। ट्रैक सूट, डियोडरेंट और महिला ट्रेनर ने जैसे रिटायरमेंट में… Spread the love
चुनावी टिकट की बिक्री-हास्य व्यंग्य रचना Ram Kumar Joshi October 11, 2025 हिंदी कहानी 0 Comments “सर्किट हाउस की दीवारों में लोकतंत्र की गूँज नहीं — सिर्फ फ़ोटोग्राफ़ और आरक्षण की गंध है।” “माला पहनी, सेल्फी ली — और गांधी टोपी… Spread the love